सामा-चकेवा क्या है? जानें इससे जुड़ी कथा और खेलने की विधि

भाई बहन के अटूट प्रेम का त्योहार न सिर्फ रक्षाबंधन और भाई दूज है, बल्कि सामा चकेवा भी है भाई बहन के प्रेम का त्योहार है। भले ही इस त्योहार को देशभर में न मनाया जाता है, लेकिन यह मिथिला और बिहार का महत्वपूर्ण पर्व है।

 
sama chakeva festival of which state

भाई बहन के प्रेम का त्योहार सामा चकेवा मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व है। पर्यावरण, पशु-पक्षी और भाई बहन के स्नेह संबंधों को गहरा करने का प्रतीक है। भाई और बहन के प्यार का त्योहार सात दिनों तक चलता है। इस सामा चकेवा त्योहार की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष के सप्तमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा की रात तक चलता है। बता दें कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी को महिलाएं सामा चकेवा बनाती हैं। इस पर्व को मनाने के दौरान महिलाएं लोक गीत गाती हैं और अपने भाई के मंगल कामना के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। गांव में इस पर्व को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है, चलिए जानते हैं इस सामा चकेवा के बारे में विस्तार से।

कब मनाया जाता है सामा चकेवा पर्व

sama chakeva in bihar

सामा चकेवा एक लोक उत्सव है, जो कि सालों से चले आ रहा है। यह पर्व छठ महापर्व के समाप्त होने के बाद शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि को खत्म हो जाता है। इस पर्व को मनाने के दौरान महिलाएं गाना गाती हैं और पर्व का उत्सव मनाती हैं। सभी बहने इस पर्व को अपने भाई के मंगल कामना के लिए मनाती हैं और रोजाना मैथली गीत गाकर त्योहार का उत्साह मनाती हैं।

सामा चकेवा की कथा क्या है?

इस पर्व को लेकर लोगों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण और जाम्बवती की एक बेटी सामा और बेटा चकेवा थे। सामा के पति का नाम चक्रवाक था। एक बार चूडक नाम के सूद्र ने सामा के ऊपर वृंदावन में ऋषियों के संग रमण करने का अनुचित आरोप भगवान श्री कृष्ण के सामने लगाया था, जिससे श्री कृष्ण क्रोधित होकर सामा को पक्षी बनने का श्राप दे देते हैं। श्राप के बाद सामा पंछी बन वृंदावन में उड़ने लगती है, सामा के पक्षी बनने के बाद सामा के पति चक्रवाक भी स्वेच्छा से पक्षी बनकर सामा के साथ भटकने लगते हैं। भगवान के श्राप के कारण ऋषियों को भी पक्षी का रूप धारण करना पड़ता है। सामा का भाई इस श्राप से अनजान जब लौटकर आता है और उसे अपनी बहन सामा के पंछी बनने की कथा के बारे में पता चलता है तो वह बहुत दुखी होता है और कहता है कि श्री कृष्ण का श्राप टलने वाला नहीं है और अपनी बहन को वापस मनुष्य रूप में पाने के लिए चकेवा भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करने चले जाता है। जिसके बाद भगवान चकेवा की तपस्या से प्रसन्न होकर सामा को श्राप से मुक्त करते हैं। सामा चकेवा का यह पर्व इस घटना के बाद हर साल मनाया गया।

इसे भी पढ़ें : Kartik Purnima 2023 Kab Hai: कब है कार्तिक पूर्णिमा? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

कैसे खेलते हैं सामा चकेवा का खेल

sama chakeva date

सामा चकेवा का खेल खेलने के लिए महिलाएं सामा और चकेवा की मिट्टी की मूर्ति बनाती हैं। फिर उसे सुखाकर बांस की डलिया में रखती हैं। सूखने के बाद मूर्तियों को रंग से रंगाई करती हैं और सजाती हैं। सजाने के बाद सभी बहने उन मूर्तियों के संग खेलती हैं और गीत गाते हुए अपने भाई की सलामती की प्रार्थना करती हैं। महिलाएं एवं लड़कियां सिर के ऊपर उस बांस की डलिया को लेकर चांदनी रात में गीत गाते हुए गलियों में घूमाती हैं। पूर्णिमा के दिन सभी मूर्ति और खिलौनों को विसर्जित किया जाता है।

अगर हमारी स्टोरी से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो आप हमें आर्टिकल के ऊपर दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको यह स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहे हर जिंदगी से।

Image Credit: Freepik and Shutterstock

HzLogo

HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!

GET APP