इन दिनों हर कोई शेयर बाजार में इन्वेस्ट कर रहा है और हर किसी को ज्यादा रिटर्न की चाह भी है। जब हम एक जगह पर ज्यादा इन्वेस्टमेंट करते हैं, तो हम उम्मीद करते हैं कि हमें रिटर्न भी ज्यादा ही मिलेगा। जब हम शेयर खरीदते हैं, तो उनका भाव जितना ऊपर जाता है, हमें उतना ही फायदा मिलता है। इसके अलावा, कैपिटल मार्केट में ऐसे कई इन्वेस्टमेंट तरीके हैं, जिससे आप मुनाफा कमा सकते हैं। आजकल, हर कंपनी प्रोफिट कमाने के लिए काम करती है। जब कंपनी को मुनाफा होता है, तो वह समय-समय पर अपने शेयरहोल्डर्स को अपने मुनाफे में से हिस्सा देती है, जिसे डिविडेंड कहा जाता है। वहीं, कंपनियों के इस तरह के शेयरों को डिविडेंड यील्ड स्टॉक्स कहा जाता है। हालांकि, डिविडेंड यानी लांभाश देना या न देना पूरी तरह कंपनी के फैसले पर आधारित होता है, क्योंकि ये जरूरी नियम नहीं है। आमतौर पर, PSU सेक्टर की कंपनियां अपने शेयरहोल्डर्स को डिविडेंड देती हैं।
डिविडेंड का पेमेंट शेयर के मौजूदा वैल्यू की जगह शेयर की फेस वैल्यू के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर किसी कंपनी के शेयर की मार्केट वैल्यू 2000 रुपये हैं और उसकी फेस वैल्यू 10 रुपये है। अगर आपने उस कंपनी के 1000 शेयर्स लिए हुए हैं और कंपनी 10 रुपये प्रति शेयर का डिविडेंड देने का ऐलान करती है। ऐसी सिचुएशन में आपको 1000 शेयर्स पर टोटल 10 हजार रुपये का डिविडेंड मिलेगा। आपको डिविडेंड आपके बैंक अकाउंट में मिल जाएगा, जिसे आपने डिमैट खाता खुलवाते वक्त दिया था।
फेस वैल्यू कंपनी की ओर से शेयर्स की संख्या निर्धारित करते समय तय की गई वैल्यू होती है, जो 1 से 10 रुपये के बीच हो सकती है। हमेशा कंपनियां फेस वैल्यू को परसेंट के हिसाब से बताती हैं। मान लीजिए कोई कंपनी के शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपये है और कंपनी 10 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से डिविडेंड का ऐलान करती है, तो इसका मतलब है कि 100% डिविडेंड देगी। वहीं, अगर कंपनी ने 40 रुपये प्रति शेयर के डिविडेंड का ऐलान किया है, तो कंपनी ने 400% डिविडेंड दिया है।
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अगर कंपनी चाहे तो शेयर के लांभाश को शेयरहोल्डर्स को दिए बिना, बिजनेस को आगे बढ़ाने में कर सकती है। डिविडेंड देना पूरी तरह से कंपनियों पर निर्भर करता है। कई कंपनियां अपने मुनाफे को शेयरहोल्डर्स को न बांटकर उसकी रकम को बिजनेस ग्रोथ में लगा देती हैं और उनका मानना है कि अगर मुनाफे की रकम को कंपनी की ग्रोथ में लगाते हैं, तो आने वाले समय में कंपनी के शेयर की वैल्यू बढ़ेगी, जिसका फायदा शेयरहोल्डर्स को वैसे भी होगा।
जब कंपनियां अपने शेयरहोल्डर्स को डिविडेंड देती हैं, तो उनका मानना है कि ऐसा करने से लोगों के अंदर शेयर में इन्वेस्ट करने के लिए प्रोत्साहन आता है। अगर शेयरहोल्डर्स को उनके निवेश पर समय-समय पर रिटर्न मिलता रहता है, तो वे कंपनी में अपना इन्वेस्टमेंट बनाए रखते हैं। वहीं, कुछ कंपनियों का कहना है कि शेयरहोल्डर्स भी कंपनी के मालिक होते हैं, ऐसे में कंपनी के मुनाफे का हिस्सा उन्हें भी मिलना जरूरी है।
आमतौर पर कंपनी अपने मुनाफे के आधार पर डिविडेंड अमाउंट और पेमेंट डेट तय करती है। वैसे तो हर तीन महीने के बाद शेयरहोल्डर्स को डिविडेंड दिया जाता है, लेकिन कुछ कंपनियां मासिक या सालाना भी लाभांश देती हैं।
कंपनी एक्ट 1956 के तहत, अगर कंपनियों को घाटा होता है तो भी कंपनियां फ्री कैश रिजर्व या पिछले साल के प्रोफिट में से डिविडेंड दे सकती हैं। फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में करीब 20 से अधिक कंपनियों ने घाटे के बावजूद भी डिविडेंड दिया था।
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आपको बता दें कि डिविडेंड देने का निर्णय कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स करते हैं। शेयरहोल्डर्स को कितना डिविडेंड दिया जाएगा और कब दिया जाएगा, इस बात का फैसला पूरी तरह से कंपनी का होता है। डिविडेंड देने के लिए कंपनियां शेयरहोल्डर्स की पहचान करती हैं और उनकी पात्रता की जांच भी करती हैं।
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