
घरेलू हिंसा (Domestic Violence) एक बहुत ही गंभीर समस्या है, जो महिलाओं को न सिर्फ शारीरिक, बल्कि मेंटली और इमोशनली भी तोड़ देती है। इस अनुभव के बाद, कई महिलाओं का आत्मविश्वास (Self-confidence) पूरी तरह से डैमेज हो जाता है। वे खुद को कमजोर और अकेला महसूस करने लगती हैं। अपने आप पर भरोसा करना, अपनी पहचान वापस पाना और एक नई और बेहतर जिंदगी शुरू करना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है।
अच्छी बात ये है कि इस मुश्किल से बाहर निकला जा सकता है। मनोचिकित्सक (Psychiatrist) और थेरेपिस्ट ऐसे तरीके बताते हैं, जिनसे महिलाएं धीरे-धीरे अपने जख्माें को भर सकती हैं। दिल्ली के आकाश हेल्थकेयर की एसोसिएट कंसल्टेंट-मनोचिकित्सक डॉ. पवित्रा शंकर ने बताया है कि घरेलू हिंसा से प्रभावित महिलाएं अपने टूटे हुए आत्मविश्वास को कैसे री-बिल्ड (Re-build) कर सकती हैं। हीलिंग के रास्ते पर कैसे आगे बढ़ सकती हैं। आइए जानते हैं-
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साइकाइट्रिस्ट ने बताया कि घरेलू हिंसा सिर्फ शरीर पर चोट नहीं करती, ये महिलाओं के मन और आत्मसम्मान को भी गहराई से तोड़ देती है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के अनुसार, भारत में हर तीन में से एक महिला किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा का सामना कर चुकी है। ये एक ऐसा ट्रॉमा है जिसे अगर समय रहते संभाला न जाए तो इसका असर कई सालों तक रह सकता है।
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उन्होंने बताया कि जो महिलाएं घर में हिंसा झेलती हैं, वे हमेशा डरी हुई, खुद को दोषी मानने वाली और बेबस महसूस करती हैं। ऐसी बहुत-सी महिलाओं को डिप्रेशन, एंग्जायटी या किसी बुरे हादसे के बाद होने वाले तनाव (PTSD) की परेशानी हो जाती है। कई बार शरीर के घाव तो भर जाते हैं, लेकिन मन पर लगे गहरे जख्म बहुत लंबे समय तक नहीं जाते हैं।
घरेलू हिंसा का मतलब सिर्फ मारपीट करना नहीं होता है। किसी को बार-बार बेइज्जत करना, हर बात पर रोक-टोक करना या पैसे के लिए किसी को अपने पर निर्भर रखना, ये सब भी मानसिक हिंसा है। ये चीजें भी महिला के भरोसे (आत्मविश्वास) को पूरी तरह खत्म कर देती हैं।
ऐसी महिलाएं अक्सर खुद को अलग-थलग कर लेती हैं, लोगों से बातें करना कम कर देती हैं और कई बार खुद को ही दोषी मानने लगती हैं। लंबे समय तक तनाव में रहने से नींद की समस्या, भूख में कमी, मूड स्विंग्स, यहां तक कि ब्लड प्रेशर और माइग्रेन जैसी दिक्कतें भी हो सकती हैं।
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डॉ. पवित्रा शंकर ने बताया कि ज्यादातर महिलाएं समाज या परिवार के डर से चुप रहती हैं, लेकिन किसी भरोसेमंद, काउंसलर या हेल्पलाइन से बात करना ही रिकवरी की शुरुआत होती है। काउंसलिंग और थेरेपी से महिलाएं अपने आत्मसम्मान को फिर से पा सकती हैं, डर और चिंता को संभाल सकती हैं।
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घरेलू हिंसा झेल चुकी महिलाओं को जजमेंट नहीं, समझ और सहारा चाहिए। समाज अगर संवेदनशीलता दिखाए तो वे जल्दी ठीक हो सकती हैं। हर महिला को ये याद रखना चाहिए कि जो भी कुछ हुआ, उसमें आपकी गलती नहीं थी। आप फिर से खुश रह सकती हैं।
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