क्या है अंबुबाची मेला? जब 3 दिन तक इस मंदिर में पुरुषों की एंट्री हो जाती है बैन... जानिए इसके पीछे की मान्यता

भारत में अनगिनत मंदिर हैं और उनमें से कुछ तो बहुत ही चमत्कारी माने जाते हैं। इन्हीं में से एक है असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर, जिसे बहुत पवित्र माना जाता है। यहां हर साल जून-जुलाई के महीने में अंबुबाची मेला लगता है। इस दौरान तीन दिनों के लिए मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। 
what is ambubachi mela and why are men not allowed in kamakhya temple for 3 days

भारत के लगभग हर राज्य में आपको कोई न कोई चमत्कारी मंदिर जरूर मिल जाएगा। लेकिन, आज हम आपको एक ऐसे खास मेले के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हर साल जून के महीने में असम के गुवाहाटी शहर में कामाख्या मंदिर में लगता है। इस मेले का नाम अंबुबाची मेला है और इसकी सबसे खास बात ये है कि तीन दिनों तक इस मंदिर में पुरुषों का प्रवेश वर्जित रहता है। आज हम आपको इस आर्टिकल में बताने वाले हैं किअंबुबाची मेला क्या है, इसे क्यों मनाया जाता है और आखिर क्यों तीन दिनों के लिए मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।

अंबुबाची मेला क्या है?

असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या मंदिर में हर साल आषाढ़ के महीने (जून-जुलाई में) में अंबुबाची मेला लगता है। यह मंदिर देवी काोमाख्या को समर्पित है, जिन्हें स्त्री शक्ति का प्रतीक माना जाता है। यह भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है, जो बहुत पवित्र माने जाते हैं।

अंबुबाची मेला देवी कामाख्या के मासिक धर्म (पीरियड्स) के सम्मान में मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इन तीन दिनों में देवी खुद मासिक धर्म से गुजरती हैं। इस दौरान मंदिर में किसी भी तरह की पूजा-पाठ नहीं होती और मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। इन तीन दिनों को माता के शरीर के शुद्धिकरण और विश्राम के रूप में देखा जाता है।

अंबुबाची मेला क्यों मनाया जाता है?

Ambubachi Mela meaning

हमारे देश में आज भी मासिक धर्म या पीरियड्स पर लोग खुलकर बात करने से झिझकते हैं, वहीं अंबुबाची मेला एक ऐसी खास मिसाल है, जहाँ मासिक धर्म को न सिर्फ स्वीकार किया जाता है, बल्कि उसका सम्मान भी किया जाता है। इसे एक प्राकृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जो स्त्री और धरती की उर्वरता का प्रतीक है।

मंदिर 3 दिनों के लिए क्यों बंद रहता है?

जब मां कामाख्या मासिक धर्म में होती हैं, तो मंदिर के दरवाजे तीन दिनों के लिए पूरी तरह से बंद कर दिए जाते हैं। इन दिनों में पुजारी भी मंदिर के अंदर नहीं जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में देवी को आराम और विश्राम की जरूरत होती है।

साथ ही, मंदिर के आस-पास के गांवों में लोग इन तीन दिनों में खेती, खाना पकाना या शारीरिक संबंध बनाने जैसी चीजों से दूर रहते हैं। यह सिर्फ़ एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह मेला हमें सिखाता है कि हर किसी को, यहां तक कि प्रकृति और देवी मां को भी, आराम की जरूरत होती है। यह महिलाओं के मासिक चक्र का सम्मान करने का भी एक तरीका है।

इन 3 दिनों में पुरुषों को मंदिर में जाने की अनुमति क्यों नहीं होती?

अंबुबाची मेला के दौरान, इन तीन दिनों तक कामाख्या मंदिर के अंदर कोई भी नहीं जा सकता है। यहाँ तक कि जो पुरुष पुजारी रोजाना मंदिर में पूजा-पाठ करते हैं, उन्हें भी इन दिनों में अंदर जाने की इजाजत नहीं होती है। यह परंपरा स्त्री शक्ति और प्राकृतिक प्रक्रियाओं के प्रति गहरे सम्मान को दिखाती है, जब मां कामाख्या मासिक धर्म से गुजरती हैं।

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तीन दिन बाद क्या होता है?

ऐसी मान्यता है कि अंबुबाची मेले के तीन दिनों के दौरान पास की ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का रंग लाल हो जाता है। चौथे दिन, जब मंदिर के दरवाजे खुलते हैं, तो दूर-दूर से भक्त देवी के दर्शन के लिए आते हैं। उन्हें प्रसाद के तौर पर पहला झरने का पानी और एक खास कपड़ा जिसे अंगवस्त्र कहते हैं, दिया जाता है। अंगवस्त्र वह कपड़ा होता है जिसका इस्तेमाल मासिक धर्म के दौरान योनि चट्टान (मंदिर के गर्भगृह में) को ढकने के लिए किया जाता है।

अंबुबाची मेले में कौन-कौन आते हैं?

Ambubachi Mela Kamakhya Temple

यह मेला खास तौर पर तांत्रिकों के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि कामाख्या मंदिर को तांत्रिक पूजा का एक बड़ा केंद्र माना जाता है। इन तीन दिनों के दौरान, देश भर से साधु, सन्यासी, तांत्रिक, और अघोरी यहां इकट्ठा होते हैं और खास तरह की पूजा करते हैं। यह पूजा बहुत गोपनीय होती है और इसमें केवल वही लोग शामिल हो सकते हैं जिन्होंने इसकी दीक्षा ली हो।

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Image Credit - wikipedia, social media
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