हर साल की तरह इस साल भी विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर मंगलवार को मनाया जाएगा। विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति के दिन मनाया जाता है, जो 17 सितंबर के दिन ही पड़ता है। यह मान्यता है कि विश्व के आदि शिल्पकार भगवान विश्वकर्मा का आज ही के दिन जन्म हुआ था। शास्त्रों के अनुसार, भगवान विश्वकर्मा का जन्म माघ शुक्ल त्रयोदशी को हुआ था, इसलिए इनको भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। तकनीकी जगत के भगवान विश्वकर्मा की पूजा को विश्वकर्मा जयंती भी कहा जाता है।
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सनातन धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है। विश्वकर्मा को दुनिया का पहले वास्तुकार और इंजीनियर की उपाधि दी गई है। कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही देवताओं के लिए अस्त्रों, शस्त्रों, भवनों और मंदिरों का निर्माण किया था। शिल्पकार खासकर इंजीनियरिंग काम में लगे लोग उन्हें अपना आराध्य मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल में 17 सितंबर के दिन विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया जाता है, जबकि दिल्ली और उसके आस-पास के इलाकों में दिवाली के दिन इस पर्व को मनाया जाता है। तो आइए जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।
विश्वकर्मा पूजा का महत्व:
ऐसी मान्यता है कि विश्वकर्मा पूजा के दिन अपने मशीनों, वाहनों की पूजा करने से आपको किसी भी तरह के हादसे का सामना नहीं करना पड़ता है, ऐसा माना जाता है कि स्वंय भगवान विश्वकर्मा आपकी रक्षा करते है। साथ ही, ये भी मान्यता है कि विश्वकर्मा पूजा के दिन मशीनों और औजारों की पूजा करने से वे जल्दी खराब नहीं होते, भगवान विश्वकर्मा की कृपा उन पर बनी रहती है। इसलिए भगवान विश्वकर्मा की पूजा के दिन फेक्ट्रियों, ऑफिस और उघोगों में लगी हुई मशीनों की पूजा की जाती है।Horoscope and tarot prediction 16-22 September: एक्सपर्ट से जानें अपना भविष्य।
विश्वकर्मा पूजा का शुभ मुहूर्त:
कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा पूजा का आयोजन किया जाता है। संक्रांति का पुण्य काल सुबह 7 बजकर 2 मिनट से है। इस समय पूजा आरंभ की जा सकती है। सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक यमगंड रहेगा। 12 बजे से 1 बजकर 30 मिनट तक गुलिक काल है और शाम 3 बजे से 4 बजकर 30 मिनट तक राहुकाल रहेगा। इन समयों को छोड़कर दिन में कभी भी पूजा शुरू और संपन्न की जा सकती हैं।इस हफ्ते 05,14,23 बर्थडेट वालों के साथ कुछ होगा खास, जानेंं कैसे रहे तैयार।
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विश्वकर्मा पूजा की विधि:
विश्कर्मा पूजा करने के लिए स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहने और भगवान विश्कर्मा की स्थापित की गई मूर्ति या तस्वीर सामने बैठें। इसके बाद अष्टदल की बनी रंगोली पर सतनजा बनाएं। सबसे पहले भगवान विश्वकर्मा की पूजा आरती करें, फिर पूजा सामग्री जैसे- हल्दी, फूल, अक्षत, पान, लौंग, सुपारी, मिठाई, फल, धूप, दीप, दही और रक्षासूत्र आदि से विधिवत पूजा करें। भगवान विश्वकर्मा की पूजा के बाद सभी हथियारों को हल्दी चावल लगाएं। इसके बाद कलश को हल्दी चावल और रक्षासूत्र चढ़ाएं। इसके बाद पूजा मंत्रों का जाप करें। पूजा संपन्न होने के बाद लोगों को प्रसाद वितरण करें।
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