हिन्दू धर्म में प्रत्येक व्रत और त्योहार को बड़ी ही धूमधाम और रस्मों रिवाजों के साथ मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि किसी भी व्रत और पूजन को करने के अपने अलग नियम होते हैं जिनसे घर में खुशहाली बनी रहती है। यही नहीं हिन्दू पंचांग की प्रत्येक तिथि भी अलग तरह से मायने रखती है। ऐसे ही व्रत और त्योहारों में से एक है वट सावित्री का व्रत। इस दिन हर सुहागन महिला अपने पति की लंबी उम्र की कामना में व्रत करती है और बरगद के वृक्ष की पूजा करती है।
मान्यता है कि यह व्रत करने से पति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और उसकी उम्र बरगद के वृक्ष के समान ही लंबी होती है। इसी कामना में सुहागिनें पूरे विधि विधान के साथ पूजन करती हैं। हर साल यह व्रत ज्येष्ठ महीनेके कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। आइए अयोध्या के पंडित राधेशरण पाण्डेय, शास्त्री जी से जानें इस साल यह व्रत कब पड़ेगा, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है और किस विधि से पूजन आपके लिए शुभ होगा।
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प्राचीन काल से चली आ रही वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार राजर्षि अश्वपति की एक पुत्री सावित्री थीं। उनके पिता ने शादी के लिए उन्हें यह विकल्प दिया कि वो अपने लिए योग्य पति का चुनाव स्वयं करें। सावित्री ने राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पति के रूप में चुना। लेकिन जब नारद जी को इस बात का पता चला तब उन्होंने सावित्री को बताया कि सत्यवान की मृत्यु कम उम्र में हो जाएगी, लेकिन सावित्री अपने निर्णय पर अडिग रहीं। सावित्री ने अपना राज सुख छोड़कर सत्यवान के साथ जीवन यापन का निर्णय ले लियाऔर जंगल में रहने लगीं। धीरे -धीरे जब समय बीत गया तब एक दिन सत्यवान की मृत्यु का दिन आ गया और वो बेहोश होकर गिर गए। उस समय जब यमराज सत्यवान को लेने आये तब सावित्री भी उनके पीछे चलने लगीं। कई बार मना करने पर भी सावित्री नहीं मानीं तो यमराज ने उन्हें तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने अपने दृष्टिहीन सास ससुर के लिए नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छिना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा। यमराज ने तथास्तु कह दिया लेकिन तभी उन्हें ज्ञात हुआ कि पति सत्यवान के बिना सावित्री के पुत्र कैसे हो सकते हैं, इसलिए उन्होंने सत्यवान को छोड़कर सावित्री को अखंड सौभाग्य का वरदान दिया और वहां से चले गए। मान्यता है कि उस समय सावित्री पति सत्यवान को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थीं तभी से वट वृक्ष की पूजा का चलन शुरू हो गया।(घर में उग आए पीपल का पौधा तो क्या करें)
ऐसी मान्यता है कि जो सुहागन स्त्री वट सावित्री व्रत करती है और बरगद के वृक्ष की पूजा करती है उसे अखंड सौभाग्य का फल मिलता है और उसके सभी कष्ट दूर होते हैं। इस व्रत को करने से पति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और घर में सुख समृद्धि आती है। सनातन धर्म में घर की खुशहाली के लिए ये व्रत करने की सलाह दी जाती है।पंडित जी के अनुसार सुहाग रक्षा, पति की आयु वृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है।
बांस का पंखा, कच्चा सूत या धागा, लाल रंग का कलावा, बरगद का फल, धूप, मिट्टी का दीपक (अखंड दीपक जलाने की सही विधि), फल, फूल, रोली, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, भीगे चने, मिष्ठान, घर में बने पकवान, जल से भरा कलश, खरबूजा फल, चावल के आटे का पीठ, व्रत कथा की पुस्तक आदि।
वट सावित्री व्रत में मुख्य रूप से बरगद के वृक्ष की परिक्रमा की जाती है और पति की लंबी उम्र की कामना की जाती है। आइए मान्यता है कि बरगद में तीनों देवताओं ब्रह्मा,विष्णु , महेश का वास होता है। इसलिए इस वृक्ष की परिक्रमा करने से त्रिदेव प्रसन्न होते हैं और परिक्रमा करने वाली स्त्री के सुहाग को दीर्घाऊ देते हैं। बरगद की परिक्रमा कच्चे सूत से 7 बार की जाती है और पति की लंबी उम्र का आशीर्वाद लिया जाता है। शास्त्रों में भी इस वृक्ष की परिक्रमा को बहुत ही लाभकारी बताया गया है और इसे मनोकामनाओं की पूर्ति का मार्ग बताया गया है।
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मान्यता है कि यह व्रत सुहगन स्त्रियों के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होता है इसलिए यह व्रत पूरी श्रद्धा से करने और पूजन करने की सलाह दी जाती है। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
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