प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने तीन तलाक पर अध्यादेश पारित कर दिया है, जिससे अब अचानक तीन तलाक देना गैर कानूनी हो गया है। गौरतलब है कि संसद के मॉनसून सत्र में राज्यसभा में राजनीतिक सहमति नहीं बन पाने के कारण ट्रिपल तलाक पर संशोधन बिल पास नहीं हो पाया था।
मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट ने इस बिल में 9 अगस्त को तीन संशोधन किए हैं। इसमें ज़मानत देने का अधिकार मजिस्ट्रेट के पास होगा और अदालत की इजाज़त पर दोनों पक्षों के बीच समझौते भी संभव हो सकेगा। इस अध्यादेश को औपचारिक मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा अब इसे 6 महीने के भीतर दोनों सदनों से पारित कराना जरूरी है। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 15 अगस्त के लाल किले से दिए अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में कहा था कि तीन तलाक प्रथा मुस्लिम महिलाओं के साथ अन्याय है। इससे बहुत सी महिलाओं की जिंदगी बर्बाद हुई है, वहीं बहुत सी महिलाएं इसकी वजह से अभी भी डर में जी रही हैं।
संसद के मॉनसून सत्र के दौरान जब राज्यसभा में हंगामे और राजनीतिक सहमति न बन पाने की वजह से तीन तलाक पर संशोधन बिल पास नहीं हो सका था, उसी वक्त मोदी सरकार की तरफ से तीन तलाक पर अध्यादेश लाने के कयास लगाए जा रहे थे।
पहला संशोधन: पहले प्रावधान था कि इस मामले में पहले कोई भी केस दर्ज करा सकता था। यही नहीं, पुलिस खुद भी संज्ञान लेकर मामला दर्ज कर सकती थी, लेकिन नए संशोधन में पीड़िता या सगे रिश्तेदार की तरफ से ही केस दर्ज कराया जा सकता है।
दूसरा संशोधन: इसमें पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती थी, लेकिन नए संशोधन में मजिस्ट्रेट को ही ज़मानत देने का अधिकार होगा।
तीसरा संशोधन: इसमें समझौते का कोई प्रावधान नहीं था, लेकिन नए संशोधन में कहा गया है कि मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते भी संभव है।
2011 की जनगणना के मुताबिक देश में मुस्लिम महिलाओं की संख्या तकरीबन 8.4 करोड़ है। इस गणना के अनुसार हर एक तलाकशुदा मर्द के मुकाबले 4 तलाक़शुदा औरतें हैं। 13.5 प्रतिशत लड़कियों की शादी 15 साल की उम्र से पहले हो जाती है, वहीं 49 प्रतिशत लड़कियों का 14 से 29 की उम्र में निकाह करा दिया जाता है। एक तथ्य यह भी है कि 2001-2011 तक मुस्लिम औरतों को तलाक़ देने के मामले में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। इससे देखते हुए साफ है कि मुस्लिम महिलाओं के हितों की सुरक्षा के लिए उन्हें कानूनी रूप से अधिक संरक्षण दिए जाने की जरूरत है। ऐसे में केंद्र सरकार का यह अध्यादेश एक सकारात्मक कदम माना जा सकता है।
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