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SC On Abortion: बलात्कार की श्रेणी में आया मैरिटल रेप, हर महिला को मिला अबॉर्शन का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन के कानून में संशोधन कर हर महिला को इसका अधिकार दिया है। 
Editorial
Updated:- 2022-09-29, 18:33 IST

सुप्रीम कोर्ट द्वारा आज एक अहम फैसला लिया गया है। यह फैसला गर्भपात से संबंधित है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 में संशोधन किया गया है, जिसके तहत अब अविवाहित महिलाएं भी गर्भपात का अधिकार चुन सकती हैं। चलिए विस्तार से जानते हैं क्या कहता है यह नया कानून।

क्या है मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट?

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मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 के अनुसार भारत में गर्भपात को लीगल कर दिया गया था। हालांकि अब तक यह कानून केवल विवाहित महिलाओं के लिए ही था।

क्या कहता है नया कानून?

इस एक्ट के तहत विवाहित और अविवाहित महिलाएं दोनों ही 20 हफ्तों के भीतर अबॉर्शन करा सकती हैं। यह अवधि 24 हफ्ते भी हो सकती है, अगर विवाहित महिला का तलाक हो गया हो या वह विधवा हो गई हो। इसके अलावा, रेप, मानसिक बीमारी, शारीरिक शोषण को भी इसके भीतर शामिल किया गया है।

अविवाहित महिलाओं को मिला गर्भपात का अधिकार

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सुप्रीम कोर्ट ने प्रेग्नेंसी एक्टको बदलते हुए अविवाहित महिलाओं को भी अबॉर्शन का उतना ही समान अधिकार दिया गया है, जो अब तक केवल विवाहित महिलाओं तक सीमित था। ऐसा देखा गया था कि कई बार उन जरूरतमंद महिलाओं को मेडिकल कारणों के चलते भी अबॉर्शन चुनने का कानूनन अधिकार नहीं था।

अपने इस अहम फैसले में कोर्ट ने बयान दिया कि सभी महिलाएं, चाहे वह विवाहित हो या नहीं, गर्भपात की हकदार हैं

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गर्भपात, बच्चे और कॉन्ट्रासेप्शन

कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल महिला को इस बात का अधिकार है कि वह गर्भपात कराना चाहती है या नहीं। न केवल ये बल्कि उसको इस बात का भी पूरा हक है कि वह अपने मुताबिक कॉन्ट्रासेप्शन चुने, और बच्चों के प्रजनन को लेकर भी निर्णय ले। यह सभी मौलिक अधिकार समाजिक दबाव के बिना लिए जाने चाहिए। (जेनेटिक काउंसलिंग क्यों है जरूरी)

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मैरिटल रेप को माना गया अपवाद

abortion supreme court new verdictमैरिटल रेप पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस स्थिती में महिला 24 हफ्ते में अबॉशर्न का अधिकार चुन सकती है। यह नियम उन महिलाओं के लिए लाभकारी साबित होगा जो किसी कारण के चलते अबॉर्शन नहीं कर पाती हैं।

गर्भपात के लिए सबूत की जरूरत नहीं

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात की स्थिती में महिला को किसी भी तरह के सबूत देने की जरूरत नहीं है। यानि अब उन्हें इसके लिए किसी भी तरह के रिपोर्ट दर्ज नहीं करवानी पड़ेगी।

अगर आपको याद हो तो बता दें कि कुछ समय पहले US सुप्रीम कोर्ट ने 50 साल पुराने कानून (Roe v. Wade judgment) को पलट दिया था जो महिलाओं को गर्भपात की मंजूरी देता था। इस निर्णय के बाद से ही पूरी दुनिया में महिला अधिकारों को लेकर सरगर्मी शुरू हो गई। इस बीच भारत के सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रगातिशील प्रतीत हो रहा है, जो पूरी तरह से महिलाओं के हित में है।

आपके सुप्रीम कोर्ट के गर्भपात के इस निर्णय पर क्या राय है? क्या आपको लगता है कि इस कानून का गलत इस्तेमाल किया जा सकता है? अपनी राय हमें कमेंट कर जरूर बताएं। महिलाओं अधिकारों से जुड़े ऐसे ही अन्य आर्टिकल पढ़ने के फॉलो करें हरजिंदगी।

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