हमारे समाज में कई तरह के नियम हैं जो अच्छे हैं, लेकिन कई ऐसे भी हैं जिनका पालन न ही किया जाए तो सही है। ऐसे ही कुछ नियम पेरेंटिंग से जुड़े भी हैं। अब भारत को ही ले लीजिए, बच्चों पर सख्ती बरतने और बच्चों को बिना बात चिल्लाने या उनकी कुछ आदतों के लिए किसी गलत तरह से रिएक्ट करने से बच्चों के मन में बुरा असर पड़ सकता है। कई बार माता-पिता तो ये सोचकर बच्चों पर ज्यादा सख्ती कर जाते हैं कि शायद वो किसी वजह से बिगड़ रहे हैं, लेकिन यहां भी माता-पिता को ये समझने की जरूरत है कि बच्चों का मन कोमल होता है और उनका डांट या मार का असर उल्टा हो सकता है।
cnbc.com ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के साइकोलॉजिकल एक्सपर्ट्स की मदद से एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें बच्चों की तीन जरूरतों के बारे में बताया गया है। इस रिपोर्ट में ये बताया गया है कि बच्चों को क्या चाहिए होता है जो माता-पिता उन्हें नहीं दे पाते। बच्चों की जरूरतों के बारे में जानना बहुत जरूरी है।
बच्चों को भी होती है मनोवैज्ञानिक जरूरतें-
जैसे मानव शरीर को न्यूट्रिएंट्स, प्रोटीन आदि की जरूरत होती है वैसे ही मानव की अपनी मनोवैज्ञानिक जरूरतें भी होती हैं। ऐसे ही बच्चे भी होते हैं। उनकी भी अपनी मनोवैज्ञानिक जरूरतें होती हैं। ये उनके स्वस्थ्य व्यवहार के लिए बहुत जरूरी है। ये उन्हें सैटिस्फाई करता है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चों की मनोवैज्ञानिक जरूरतें क्या होती हैं। ये जरूरतें पूरी होने पर आगे चलकर बच्चों में मानसिक तनाव की स्थिति नहीं बनती है।
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1. खुद से फैसला लेने की आज़ादी
भले ही ये सुनकर बहुत अजीब लग रहा हो, लेकिन यकीनन बच्चों पर अपना फैसला थोपने से बेहतर है कि उन्हें इतनी आज़ादी दी जाए कि वो अपने फैसले खुद ले सकें। दो साइकोलॉजी प्रोफेसर Marciela Correa-Chavez और Barbara Rogoff ने माया सभ्यता के बच्चों पर एक स्टडी की। उनका मानना है कि जिन बच्चों को ज्यादा फॉर्मेलिटी का सामना करना पड़ा है उनकी मानसिक ग्रोथ थोड़ी कम रही है और जिन्हें नहीं करना पड़ा उनकी ज्यादा।
इस स्टडी में आज के समय में ग्रोथ को भी देखा गया है। Rogoff की स्टडी में अमेरिका और ऐसे ही देशों की जानकारी भी है जहां बच्चों को अपने फैसले लेने की आज़ादी दी जाती है। स्टडी में सामने आया है कि ऐसे देशों के बच्चे वयस्क होने पर अपने ध्यान को सही तरह से केंद्रित कर सकते हैं।
क्या कर सकते हैं माता-पिता
बच्चों पर ज्यादा सख्त नियम लागू करने की जगह माता-पिता उन्हें सही ढंग प्यार से भी सिखा सकते हैं। अगर तकनीक को लेकर आपको चिंता है कि बच्चे उसे ज्यादा इस्तेमाल कर बिगड़ जाएंगे तो वो खुद बच्चों को सही तरीका सिखाएं। स्क्रीन का लिमिटेड समय निर्धारित कर सकते हैं, लेकिन हमेशा उन्हें डांटना या फटकारना सही नहीं है।
2. अपनी क्षमता के हिसाब से काम
हर बच्चा, हर चीज़ में अच्छा नहीं हो सकता। ये माता-पिता को समझना होगा। आप खुद सोचिए कि आप किस चीज़ में अच्छे हैं? मान लो आपको खाना बनाने का शौख है या आप ड्राइविंग अच्छी कर लेते हैं और उसपर कोई तारीफ करे तो आपको अच्छा लगता है न? ऐसे में मन में कुछ अच्छा करने की भावना आती है।
बच्चों के लिए भी यही जरूरी होता है और बच्चों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार करना चाहिए। बच्चों को अक्सर ये मैसेज दिया जाता है कि वो किसी चीज़ में अच्छे नहीं हैं। चाहें वो कोई स्पोर्ट हो चाहें वो कोई टेस्ट का नतीजा हो या फिर वो किसी अन्य तरह की चीज़ हो पर अक्सर माता-पिता को बच्चों को ना कहना पड़ता है या उन्हें डांटना पड़ता है। ऐसा कम किया जाए तो बेहतर है।
क्या कर सकते हैं माता-पिता
बच्चों के स्कूल टेस्ट रिजल्ट, स्पोर्ट्स आदि का प्रेशर उनपर थोड़ा कम करें। बच्चों से बैठकर बात करना जरूरी है। उन्हें प्रेशर में डालेंगे तो मानसिक तनाव बढ़ेगा। उन्हें उनकी क्षमता के हिसाब से ही परखें। हर कोई क्लास में फर्स्ट नहीं आ सकता। उन्हें वो करने के लिए कहें जिनमें उनकी क्षमता बेहतर है।
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3. संपर्क
बड़ों की तरह ही बच्चों को भी किसी के साथ की जरूरत होती है। अगर आपको अकेलापन लगता है तो बच्चों को भी लगता है। आजकल लाइफस्टाइल बदल गई है। बच्चे अब सड़कों पर नहीं खेलते हैं। वो अब नजदीकी सोशल बॉन्ड्स में नहीं रहते हैं। ऐसे में उन्हें अकेलापन लगना स्वाभाविक है। इसके पहले वाली जनरेशन तक बच्चों को स्कूल के बाद खेलने की इजाजत होती थी। पर अब उनके पास भी समय की कमी है। ऐसे में कई तरह के सोशल स्किन नहीं बन पाते हैं।
क्या कर सकते हैं माता-पिता
अपने बच्चों को थोड़ा समय दें। इसी के साथ, उन्हें उनके दोस्तों के साथ खेलने का भी समय दें। वो अगर अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ घुल-मिल पाएंगे तो उनकी जिंदगी ज्यादा बेहतर हो पाएगी।
नोट: ये स्टोरी CNBC.com के इनपुट्स से बनाई गई है।