अक्सर मेरे साथ ऐसा हुआ कि साबुन की खुशबू से बचपन के दिनों की यादें ताजा हो गईं, किसी डियो की खुशबू से हॉस्टल के दिनों की यादें ताजा हो गईं तो वहीं किसी के परफ्यूम से कॉलेज में दोस्तों के साथ होने वाली मस्ती याद आ गई। अब इसी बात को एक ताजा अध्ययन भी प्रमाणित कर रहा है। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मैकेनिज्म खोज लिया है जिससे दिमाग में तरह-तरह के सेंसरी एक्सपीरियंस (सुनने, देखने, महसूस करने आदि से जुड़े) क्रिएट होते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के न्यूरोबायोलॉजिस्ट्स ने इस बारे में बताया कि किस तरह सेंसरी ऑर्गन्स मैमोरी क्रिएट करते हैं और ये हमारे दिमाग में स्टोर होती हैं। इस स्टडी में खुशबू को मॉडल के तौर पर इस्तेमाल करके यह बताने की कोशिश की गई है कि दिमाग में मेमोरी किस तरह से बनती है और जब हमारी सूंघने की क्षमता चली जाती है तो यह अल्जाइमर डिजीज होने का शुरुआती संकेत भी हो सकता है।
इस स्टडी के लीड ऑथर अफीफ अकराबावी का कहना है, 'हमारी फाइंडिंग्स से यह बात सामने आई है कि हम जिन भी खुशबुओं से रूबरू होते हैं, वो हमारी यादों का हिस्सा बन जाती हैं।' मेमोरी और हमारी सूंघने की प्रक्रिया में गहरा संबंध है। चूहों में इस कनेक्शन की स्टडी करने पर पाया गया कि दिमाग के एक हिस्से में किसी स्पेस और टाइम से जुड़ी जानकारी स्टोर हो जाती हैं, जिसका हमारी गंध सूंघने की शक्ति (एंटीरियर ओलफेक्ट्री न्यूक्लियस-एओएन ) से गहरा नाता है। आपको बता दें कि एल्जाइमर बीमारी में एओएन का इन्वॉल्वमेंट होता है, लेकिन इसके फंक्शन के बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं है।
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अल्जाइमर में मरीजों के सूघंने की क्षमता में कमी आ जाती है। इस नाते यह स्टडी इस बारे में संकेत करती है कि गंध सूंघने में कमी आना मरीजों का कब और कहां जैसी चीजों को याद रख पाने में होने वाली मुश्किलों से जुड़ा हुआ है।
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