हिन्दू धर्म के अनुसार एकादशी तिथि का विशेष महत्त्व है। यह तिथि महीने में दो बार पड़ती है पहली शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। इस प्रकार पूरे साल में 24 एकादशी तिथियां होती हैं जिनका अपना अलग महत्त्व है। ऐसी ही एकादशी तिथियों में से एक है ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि। हिन्दू धर्म में ज्येष्ठ मास का विशेष महत्व है क्योंकि हिंदू कैलेंडर के अनुसार ज्येष्ठ मास साल का तीसरा महीना होता है और माना जाता है कि इस महीने में सूर्य की सीधी किरणें धरती पर पड़ती हैं और इसके प्रभाव से दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं।
मान्यता है कि निर्जला एकादशी पर व्रत रखकर भगवान विष्णु की विशेष पूजा अर्चना करने से कई पापों से मुक्ति मिलने के साथ धन लाभ भी होता है। आइए विश्व के जाने माने ज्योतिर्विद पं रमेश भोजराज द्विवेदी जी से जानें इस साल कब है निर्जला एकादशी और इसका क्या महत्त्व है।
निर्जला एकादशी तिथि व मुहूर्त
- इस साल ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 21 जून को मनाई जाएगी और इसी दिन भगवान् विष्णु की पूजा अर्चना करना लाभकारी होगा।
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 20 जून, रविवार को सायं 4 बजकर 21 मिनट से शुरू
- एकादशी तिथि समापन: 21 जून, सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक
- चूंकि उदया तिथि में एकदशी तिथि 21 जून को है इसलिए इसी दिन व्रत करना श्रेष्ठ है।
- एकादशी व्रत का पारण समय: 22 जून, सोमवार को सुबह 5 बजकर 13 मिनट से 8 बजकर 1 मिनट तक
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है। ख़ास तैर पर ज्येष्ठ महीने की एकादशी तिथि जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को अन्न जल बिना ग्रहण किये हुए करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है। इस व्रत का विशेष फल व्यक्ति को उसकी आर्थिक स्थिति में भी दिखाई देता है और कभी भी धन की हानि नहीं होती है। रमेश भोजराज द्विवेदी जी के अनुसार शास्त्रों में ऐसा विधान है कि निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशी तिथियों में सबसे श्रेष्ठ है। इस एक एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को 24 एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त होता है। शास्त्रों में विधान है कि निर्जला एकादशी को निर्जला रहकर व्रत उपवास करना चाहिए परंतु यदि कोई निर्जल रहकर व्रत नहीं कर पाए तो नीरअन्न या एक समय भोजन कर इस व्रत को भी कर सकता है।
निर्जला एकादशी व्रत की पूजा विधि
- निर्जला एकादशी के दिन स्नान करने के बाद पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ़ करें।
- पूजा स्थान पर बैठकर व्रत का संकल्प लें और पूजा आरम्भ करें।
- भगवान विष्णु की तस्वीर या या मूर्ति को अच्छी तरह से साफ़ करें और पीले वस्त्रों से सुसज्जित करें।
- विष्णु जी का पूजन माता लक्ष्मी के साथ करना अच्छा माना जाता है इसलिए लक्ष्मी जी की तस्वीर को भी सुसज्जित करें।
- पूजा में पीले फूलों का प्रयोग करें और भोग में भी पीला भोजन अर्पित करें। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु को पीला रंग अधिक प्रिय है।
- पूरे दिन निर्जला व्रत करें और अन्न जल का सेवन न करें।
- अगले दिन सुबह पारण समय में व्रत खोलें और ब्राह्मण को भोजन कराएं व् दक्षिणा दें।
निर्जला एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत काल के समय एक बार पाण्डु पुत्र भीम ने महर्षि वेद व्यास जी से पूछा कि " मेरे परिवार के सभी लोग एकादशी व्रत करते हैं और मुझे भी व्रत करने के लिए कहते हैं। लेकिन मैं भूखा नहीं रह सकता हूं अत: आप मुझे कृपा करके बताएं कि बिना उपवास किए एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है। भीम के अनुरोध पर वेद व्यास जी ने कहा- पुत्र! तुम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जल व्रत करो। इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। जो भी मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पिए रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसे साल में जितनी एकादशी आती है उन सब एकादशी का फल इस एक एकादशी का व्रत करने से मिल जाता है। तब से ही निर्जला एकादशी व्रत का चलन शुरू हुआ।
निर्जला एकादशी में व्रत करने विष्णु जी का पूजन करने से अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। इसलिए पाप मुक्ति और मनोकामनाओं की पूरी के लिए ये व्रत जरूर करें।
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