
(mahakaleshwar jyotirlinga mahakal bhasm aarti facts) मध्य प्रदेश के उज्जैन को भगवान शिव की नगरी कहा जाता है। यह 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित हैं। उनके दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दुनिया भर से आते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त यहां आता है। उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। यहां की भस्म आरती विश्व प्रसिद्ध है। अब ऐसे में आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से महाकाल की भस्म आरती से जुड़ी खास बातों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार दूषण नाम के एक राक्षस ने उज्जैन नगरी में तबाही मचा दी थी। यहां के ब्राह्मणों ने भगवान शिव से उसके प्रकोप को दूर करने के लिए विनती भी की। भगवान शिव ने दूषण को चेतावनी दी, लेकिन वह माना नहीं। क्रोधित शिव जी ने यहां महाकाल के रूप में प्रकट होकर अपने क्रोध से दूषण नामक राक्षस को भस्म कर दिया। ऐसा माना जाता है कि बाबा भोलेनाथ ने यहां दूषण के भस्म से अपना श्रृंगार किया था। इसलिए आज भी यहां भगवान भोलेनाथ का श्रृंगार भस्म से किया जाता है।

यह पहला ऐसा मंदिर है, जहां भगवान भोलेनाथ (भोलेनाथ मंत्र) की दिन में कुल 6 बार आरती की जाती है। जिसमें पहली आरती भस्म से की जाती है। महाकाल बाबा का सुबह 04 बजे भस्म से आरती किया जाता है। इसे मंगला आरती भी कहा जाता है। ऐसा कहते हैं कि महाकाल भस्म आरती से प्रसन्न होते हैं। वहीं भस्म आरती महाकाल को उठाने के लिए की जाती है। महाकाल की आरती केवल और ढोल, नगाड़े बजाकर किया जाता है।
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ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में महाकाल की आरती के लिए श्मशान से भस्म लाने की परंपरा थी, लेकिन कुछ सालों से अब कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी (शमी के उपाय) पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर की लकड़ियों को जलाकर तैयार किया जाता है। पश्चात उसी से भस्म आरती की जाती है। ऐसी मान्यता है कि ज्योतिर्लिंग पर चढ़े भस्म को प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति को रोग दोष से छुटकारा मिल सकता है।
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महाकाल की भस्म आरती के पीछे ऐसी भी मान्यता है कि भगवान शिव श्मशान के साधक हैं। भस्म महाकाल का श्रृंगार है। भस्म से आशय है राख देह का अंतिम सत्य और सृष्टि का सार भी है। बाबा महाकाल को भस्म लगाने से संसार के नाशवान होने का संदेश देता है।
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