नाच-गाना और फोटोशूट से बिल्कुल अलग शादियों को जो पूरा करता है वह है रस्में और रीति रिवाज। रीति रिवाज और रस्मों के बिना शादी संपन्न नहीं होती है। शादियों में कई अलग-अलग तरह की रस्में निभाई जाती है। सभी राज्यों में शादी की अलग-अलग रस्में होती है। साउथ इंडिया हो या नॉर्थ इंडिया देश के विभिन्न राज्यों में शादियों के अलग अलग रस्में होती है, शादियों की कुछ रस्में सभी जगह एक ही होती है, तो वहीं कुछ रस्म अलग होती है।
ऐसे में आज हम आपको बिहारी शादी में निभाई जाने वाले एक खास रस्म के बारे में बताएंगे। बिहार में भोजपुरी और मैथिली भाषा ही खास नहीं है, बल्कि यहां की अलग-अलग रीति रिवाज और खानपान भी अनोखी और खास है। यहां जितनी उत्साह और भव्यता के साथ छठ महापर्व का त्योहार मनाया जाता है, उससे कहीं ज्यादा यहां की शादियों में निभाई जाने वाली रस्मों रिवाज है। आज के इस लेख में हम आपको बिहारी शादियों में निभाई जाने वाली एक खास रस्म कोहरात का भात के बारे में बताएंगे, जो किसी भी दुल्हन के लिए खास है।
क्या है कोहरात का भात की रस्म?
कोहरात का भात रस्म किसी भी होने वाली दुल्हन के लिए बेहद खास है। इस रस्म में होने वाली दुल्हन को दही चावल खिलाया जाता है। दही चावल दुल्हन के लिए बेहद खास होता है। इस रस्म में बनने वाला यह चावल लड़की के मामा के घर से आता है और उसे आंगन में चूल्हा जलाकर मिट्टी के नए बर्तनमें पकाया जाता है। चावल पकाने के बाद उसमें दही डालकर लड़की को आंगन में बैठाकर खिलाया जाता है। कोहरात का भात शादी के पहले और हल्दी के बाद का रस्म है।
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कोहरात का भात की रस्म का महत्व और मान्यता क्या है?
कोहरात का भात की रस्म को लेकर बिहारी लोगों में यह मान्यता है कि इस भात और दही को खाने से होने वाली दुल्हन के जीवन में सब कुछ अच्छा और शुभ हो। दही को शुभता का प्रतीक माना गया है इसलिए दही और भात को दुल्हन को खिलाया जाता है। साथ ही यह भी मान्यताएं हैं कि लड़की जब इस रस्म को निभाती है तो उसके जीवन में एकाग्रता, संपन्नता और शुभता आती है। यह रस्म किसी भी होने वाली दुल्हन के लिए बेहद खास है, क्योंकि इसमें मामा के घर से आया हुआ चावल आंगन में नए मिट्टी के बर्तन में पका कर खिलाया जाता है और कुवांरी स्वरूप में लड़की अपने मायके में आखिरी बार भोजन करती है।
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