शादी ब्याह का सीजन चल रहा है, ऐसे में हर जगह शादियां हो रही है। शादी-ब्याह में नाचने-गाने और पहनने-ओढ़ने के अलावा और रस्मों- रिवाज होती है, जो किसी भी शादी के लिए बहुत जरूरी है। बिना रस्मों-रिवाज के शादी अधूरी होती है, अलग-अलग जाति, राज्य, समुदाय और धर्म की अपनी ही अलग रस्म होती है, जिससे शादी संपन्न होती है। ऐसा ही एक रस्म है खोइछा, जो बिहारी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। खोइछा भरने की परंपरा बिहारी संस्कृति का अनूठा हिस्सा है, जो नवरात्रि में अष्टमी के दिन मां दुर्गा की विदाई के दिन और बेटी की विदाई के वक्त बांध कर दिया जाता है।
क्या है खोइछा भरने की रस्म?
खोइछा एक ऐसी रस्म और परंपरा है, जो विदाई के वक्त दिया जाता है। बिहारी शादियों (बिहारी शादियों के रस्मों रिवाज) और नवरात्रि में मां दुर्गा के विसर्जन से पहले महिलाएं खोइछा भरकर विदाई करती हैं। खोइछा को लेकर यह मान्यता है कि इससे सुख समृद्धि का वास होता है, यह खास रस्म बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बेटी की विदाई के वक्त खोइछा भरने की रस्म की जाती है। इस रस्म में नवविवाहित बेटी को मायके से ससुराल जाते वक्त मां या बाभी उन्हें एक पोटली में धान, चावल, जीरा, सिक्का, फूल और हल्दी भरकर दी जाती है। इस सामग्री को ही खोइछा कहा जाता है, जिसे विदाई के वक्त एक रस्म के तौर पर अदा की जाती है।
खोइछा भरने की क्या विधि है?
बेटी के जीवन में खुशहाली हो, उसका सुखी वैवाहिक जीवन अच्छे से चले इसलिए खोइछा भरा जाता है। खोइछा में पान, सुपारी, मिठाई, चावल, हल्दी, अक्षतआदि शामिल किया जाता है। मां दुर्गा के लिए खोइछा भरने के लिए माता रानी का सोलह श्रृंगार कर मां का खोइछा भरती है। माता रानी को चुनरी में खोइछा और श्रृंगार का सामान भरकर दिया जाता है।
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क्या है खोइछा की मान्यता
खोइछा से लेकर यह मान्यता है कि लोग धर्म-कर्म, आस्था से जुड़ते गया और इससे ईश्वर की कृपा मिलती है। पहले के समय में लोग माता रानी के सामने आंचल फैलाकर कुछ मांगते थे, जब भक्तों के ऊपर माता की कृपा होती थी तब भक्त अपने आंचल में माता रानी को कुछ रख के माता को अर्पण करते थे और प्रार्थना कर उन्हें शुक्रिया अदा करते थे, जिसके बाद से ये रस्म में बदल गया और विदाई के वक्त बेटी और माता रानी को खोइछा भरने का रिवाज शुरू हो गया।
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Image Credit: Freepik,Shaanscorner
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