हर धर्म की अलग मान्यता होती है और हर मान्यता के पीछे कोई ना कोई लॉजिक जरूर होता है। धार्मिक मान्यताओं के साथ आस्था जुड़ी होती है और लोगों का विश्वास उसी आस्था पर टिका होता है। दुनिया के कई धर्मों के रिवाज बाकियों के लिए अजीब हो सकते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि उस रिवाज का कोई महत्व नहीं। कुछ ऐसा ही है पारसी धर्म के अंतिम संस्कार के साथ।
क्या आपको पता है कि पारसी अंतिम संस्कार का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका था। यह कोविड महामारी के दौरान हुआ था जब पारसियों ने कहा था कि उन्हें कोविड संक्रमित व्यक्तियों का अंतिम संस्कार भी धार्मिक तरीके से करना चाहिए, लेकिन कोर्ट ने मामला खारिज कर दिया था क्योंकि इसके कारण कोरोना संक्रमण फैलने की गुंजाइश थी।
आखिर क्यों पारसी अंतिम संस्कार को लेकर होती है इतनी बहस?
इसका कारण है अंतिम संस्कार का तरीका। दरअसल, पारसी धर्म में पृथ्वी, अग्नि, वायु और जल को बहुत ही पवित्र माना जाता है। इतना पवित्र कि उन्हें दूषित करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है। यही कारण है कि पारसी धर्म में ना तो शव को दफनाया जाता है, ना ही जलाया जाता है और ना ही पानी में बहाया जाता है। इस धर्म में शवों को एक ऐसी जगह छोड़ दिया जाता है जहां गिद्ध, पशु और पक्षी उन्हें खा लें।
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पारसी या जोरास्ट्रियन धर्म में जिंदगी को लाइट यानी रोशनी और डार्क यानी अंधेरे के बीच का संघर्ष माना जाता है। जब एक व्यक्ति की मौत होती है तब व्यक्ति अंधेरे की ओर चला जाता है और इसलिए उसका अंतिम संस्कार भी किसी पवित्र वस्तु जैसे अग्नि, पानी, जल आदि के जरिए नहीं होता है। ऐसा माना जाता है कि शरीर को अब अंधेरे ने घेर लिया है और अब शरीर की वजह से यह पवित्र चीजें दूषित हो सकती हैं।
मुंबई का टावर ऑफ साइलेंस भी इसी रस्म के लिए फेमस था। यहां के बारे में अगर आप गूगल करेंगे, तो तरह-तरह की कहानियां सामने आएंगी। दाखमा (Dakhma) दरअसल, टावर ऑफ साइलेंस का नाम है जो एक सर्कुलर प्लेटफॉर्म था जिसमें पारसी कम्युनिटी के लोगों के शव रखे जाते थे। पर धीरे-धीरे गिद्धों की कम होती संख्या ने इन टावर ऑफ साइलेंस को खत्म कर दिया।
यही कारण है कि पारसी कम्युनिटी के अंतिम संस्कार में गिद्धों को महत्व दिया जाता है। एक समय था जब मुंबई की पारसी कम्युनिटी सिर्फ गिद्धों के जरिए ही अपने शवों का खत्मा करवाती थी। पर 2006 के बाद सब कुछ बदल गया।
आखिर क्यों बंद होने लगे हैं पारसी समुदाय के टावर ऑफ साइलेंस?
बात 2006 की है जब धुन बारिया नामक एक पारसी महिला ने टावर ऑफ साइलेंस में जाकर एक वीडियो रिकॉर्ड किया था। धुन बारिया एक जानी मानी पारसी सिंगर और सोशल एक्टिविस्ट थीं जिनकी मौत 2022 में हुई है।
धुन और एक फोटोग्राफर टावर ऑफ साइलेंस में जाकर तस्वीरें और वीडियो खींचकर लाए थे जिसने कोहराम मचा दिया था। दरअसल, कुछ समय पहले बारिया की मां नरगिस का देहांत हुआ था। बारिया ने मुंबई मिरर को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने खांडिया (वो लोग जो शरीर को टावर ऑफ साइलेंस में ले जाते हैं) से पूछा था कि उनकी मां तो गई ना (मतलब उनकी मां का शरीर तो खत्म हो गया ना) तब खांडिया ने जवाब दिया था कि उनकी मां तो अभी दो साल तक वहीं रहेंगी।
बारिया ने यह बात आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन वहां बताया गया कि अब टावर ऑफ साइलेंस में सोलर पैनल लगाए गए हैं और शरीर ठीक से डिस्पोज हो रहा है, लेकिन ऐसा नहीं था।
बारिया ने कभी ये नहीं बताया कि वो कैसे टावर ऑफ साइलेंस तक पहुंची, लेकिन उनके द्वारा खींची गई तस्वीरों और वीडियो ने कोहराम मचा दिया था। कई लाशें बिना कपड़ों के फूलकर वहीं पड़ी हुई थीं, धीरे-धीरे सड़ रही थीं और वहां कोई पक्षी उन्हें खाने के लिए मौजूद नहीं था।
इसके बाद कई पर्यावरणवादियों ने रिसर्च की और पता चला कि मवेशियों को दी जाने वाली दवा के कारण गिद्धों की मौत हो रही है और उनकी 99% आबादी घट गई है। उस दवा पर बैन लगाया गया, लेकिन फिर भी टावर ऑफ साइलेंस का उपयोग कम किया गया और पारसियों को अन्य तरीके से शरीर का अंतिम संस्कार करने की सलाह दी गई।
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क्या अभी भी पारसियों का होता है ऐसे ही अंतिम संस्कार?
देश में अब बहुत ही कम टावर ऑफ साइलेंस बचे हैं। स्टडी.कॉम की एक रिपोर्ट कहती है कि मुंबई में तो टावर ऑफ साइलेंस के बंद होने का कारण ऊंची इमारत बना जिनकी खिड़कियों से इस टावर के अंदर दिखता था। लंबे समय तक लाशों के वहां रहने के कारण बदबू भी आने लगी थी जिसके कारण टावर को बंद किया गया। हालांकि, अभी भी वेस्टर्न इंडिया में कुछ टावर ऑफ साइलेंस मौजूद हैं पर अधिकतर में अब सोलर पैनल लगाए गए हैं जिससे शवों को आसानी से डिस्पोज किया जा सके।
वैसे अब कई पारसी अन्य तरीकों से शरीर को डीकंपोज करने के बारे में सोच रहे हैं। अब धीरे-धीरे हिंदू रिवाजों द्वारा भी शरीर का अंतिम संस्कार किया जा रहा है।
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Image Credit: Wikipedia/ NBC News/ Live Nagpur
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