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घर से नंगे पैर मंदिर जाना ज्यादा सही है या चप्पल पहनकर?

शास्त्रों में बताया गया है कि मंदिर जाने से घर में सुख-समृद्धि एवं सकारात्मकता बनी रहती है और जीवन में शांति का वास स्थापित होता है, लेकिन आप में से कितने लोग हैं जो मंदिर नंगे पैर जाते हैं या फिर मंदिर चप्पल पहनकर जाते हैं। 
Editorial
Updated:- 2025-02-20, 12:31 IST

आप में से बहुत से लोग मंदिर जाते होंगे। कभी रोजाना तो कभी सप्ताह में एक-आध बार। मंदिर जाना भी चाहिए क्योंकि शास्त्रों में बताया गया है कि मंदिर जाने से घर में सुख-समृद्धि एवं सकारात्मकता बनी रहती है और जीवन में शांति का वास स्थापित होता है, लेकिन आप में से कितने लोग हैं जो मंदिर नंगे पैर जाते हैं या फिर मंदिर चप्पल पहनकर जाते हैं। असल में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि घर से मंदिर जाते समय नंगे पैर जाना चाहिए या फिर चप्पल पहनकर, तो चलिए जानते हैं इस विषय में विस्तार से।

घर से मंदिर चप्पल पहनकर जाएं या नंगे पैर?

kya ghar se mandir chappal pahan kar jana chahiye

आप में से बहुत से लोग ऐसे होंगे जो घर से मंदिर नंगे पैर जाते होंगे। वहीं, कुछ लोग मंदिर तक चप्पल पहनकर जाते हैं और मंदिर के बाहर चप्पल उतार देते हैं। इसके अलावा, कुछ लोग किसी संकल्प या नियम का पालन करते हुए नंगे पैर तो मंदिर जाते ही हैं लेकिन एक वस्त्र धारण करने के कठोर प्रण के साथ।

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ऐसे में आपको बता दें कि शास्त्रों में यह वर्णित है कि मंदिर हमेशा नंगे पैर ही जाना चाहिए। घर से निकलते समय पैरों को एकदम खाली रहने देना चाहिए यानी कि पैर सीधा धरती को छू रहे हों ऐसी अवस्था में ही मंदिर जाना चाहिए। इसके पीछे 2 कारण हैं जिनका उल्लेख पूजा-पाठ पद्धति में वर्णित किया गया है।

kya ghar se mandir nange pair jana chahiye

पहला कारण है कि घर से मंदिर जाते समय अगर आप नंगे पैर जाते हैं तो ऐसे में धरती को छूते हुए आपके पैरों के माध्यम से शरीर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा निकलती जाती है और मंदिर पहुंचने तक शरीर की स्वतः ही शुद्धि हो जाती है और मंदिर से नंगे पैर लौटते समय शरीर में सकारात्मकता का प्रवाह होता है।

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वहीं, दूसरा कारण यह है कि मंदिर के बाहर हम चप्पल या जूते उतारते हैं। अब होता क्या है कि शरीर से निकलने वाली नकारात्मक ऊर्जा को चप्पल या जूते का स्रोत मिल जाता है मंदिर से बाहर जाने पर व्यक्ति के भीतर दोबारा प्रवेश करने का। ऐसे में मंदिर जाने के बाद भी व्यक्ति बुरे विचारों से मुक्ति नहीं प्राप्त कर पाता है।

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