तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे जुबान लड़ाने की, 'ज्यादा बोलोगी तो दूसरी शादी कर लूंगा...'। पति-पत्नी के झगड़े में ऐसे सुनना एक आम बात है। शायद हममें से कई महिलाऐं इसे सुनकर भूल जाती होंगी और जिंदगी फिर से उसी तरह चलने लगती होगी।
अक्सर देखा जाता है कि जब भी पति -पत्नी के बीच किसी भी बात को लेकर लड़ाई होती है तब अंत में हार पत्नी की ही होती है और उसे झगड़े में उसे बार-बार ये एहसास दिलाया जाता है कि वो कितनी आलसी है, वो बच्चों का ध्यान नहीं रख सकती, वो पति के लिए पसंद का खाना नहीं बना सकती और वो परिवार की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पा रही है।
ये सभी ताने न सिर्फ पति बल्कि जाने अंजाने में महिलाओं को परिवार के अन्य लोगों से भी सुनने पड़ते हैं। वास्तव में मैंने भी अपने परिवार और कई रिश्तेदारों को भी अपनी पत्नी से ऐसे कहते हुए सुना कि यदि वो पति और परिवार की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरीं तो उनका पति दूसरी शादी कर लेगा।
मेरा एक सावल आप सभी से है कि आखिर पति को ये हक़ किसने दिया है कि पति के होते हुए भी वो दूसरी शादी करे? जी हां, मेरा एक सवाल है कि क्या हम महिलाएं बाजार से लाया हुआ कोई ऐसा सामान हैं जो पसंद न आने पर बदल लिया जाए? आखिर क्यों ज्यादातर मध्यम वर्गीय परिवारों में महिलाओं को ये ताने बार-बार सुनने पड़ते हैं ?
क्या महिलाएं कोई सामान हैं?
अक्सर देखा जाता है कि हम बाजार से कोई चीज या कपड़े खरीदकर लाते हैं और घर में आकर जब उसका ट्रायल लेते हैं तब पसंद न आने पर उसे एक्सचेंज कर लेते हैं। मेरे हिसाब से तो ये किसी सामान के साथ आजमाई जाने वाली प्रक्रिया ही है।
फिर क्यों बार-बार पत्नियों को पति के मुंह से ये सुनना पड़ता है कि अगर वो उनके हिसाब से नहीं चलेंगी तो उन्हें घर से बाहर करके दूसरी पत्नी ले आई जाएगी। मैं आजकल की पीढ़ी के सभी पुरुषों से यही पूंछती हूं कि क्या हम महिलाएं कोई बाजार से लाया कपड़ा हैं जिसका ट्रायल लेने पर पसंद न आने पर बदला जा सके? आखिर ये अधिकार पुरुषों को किसने दिया है ? आखिर क्यों बार-बार ऐसे ताने सुनाए जा सकते हैं? आखिर क्यों और कब तक?
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महिलाओं से मेरे कुछ सवाल
मेरे कुछ सवाल उन सभी महिलाओं से हैं जिन्हें अक्सर या कभी भी अपने पति से ऐसा सुनने को मिला है।
- जरा बताइए कि क्या आपके पेरेंट्स ने आपकी परवरिश में अपनी मेहनत और पैसा नहीं लगाया है?
- क्या आप बाजार से लाया हुआ कोई ऐसा सामान हैं जो बदला जा सके?
- अगर पति ऐसी बातें बोल सकता है तो आप क्यों नहीं?
- क्या आपको ऐसी बातों से कोई फर्क ही नहीं पड़ता है?
वास्तव में सवाल बहुत से हैं लेकिन जवाब की खोज अभी भी बाकी है। दरअसल मुझे ऐसा लगता है कि यदि पुरुषों को समाज ने ऐसा अधिकार दिया है कि वो पत्नी को कभी भी ऐसी धमकी दे सकें, तो महिलाएं क्यों नहीं अपने अधिकार के लिए आवाज उठा सकती हैं।
जब आपके भीतर कोई कमी नहीं है तो आपका पति दूसरी शादी का ताना बार-बार कैसे दे सकता है? क्या वास्तव में पत्नी के जीवित होने पर बिना तलाक के दूसरी शादी करना आसान है?
पत्नी की मौजूदगी में दूसरी शादी करने पर मिलने वाली सजा
वास्तव में भारत का कानून इतना भी कमजोर नहीं है कि कोई भी कुछ भी करे और उसे सजा भी न मिले। ऐसे ही एक कानूनों में से एक है पत्नी की मौजूदगी में पति का दूसरी शादी करने पर मिलने वाली सजा।
दरअसल भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत यदि कोई पुरुष पत्नी को बिना तलाक दिए हुए दूसरी शादी करता है तो उसे कम से कम 7 साल की सजा हो सकती है और जुर्माना भी हो सकता है।
वहीं हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के अनुसार किसी भी पुरुष या महिला के पति या पत्नी की मौजूदगी में बिना तलाक लिए दूसरी शादी करना कानूनन अपराध है। दूसरी शादी करने से पहले पुरुष या महिला को तलाक के कागजात लेना जरूरी होता है। ये कानून हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों पर लागू होता है, हालांकि मुस्लिम समुदाय में शादी को लेकर अलग नियम हैं।
अब मेरा सवाल ऐसे पुरुषों से है जो दूसरी शादी की बातों को आम मानते हैं। क्या आप वास्तव में पत्नी की मौजूदगी में दूसरी शादी करके सजा काटने के लिए तैयार हैं? यदि नहीं तो आपको ऐसी बातें बोलने का भी कोई हक़ नहीं है।
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क्या समाज के डर से दुल्हन की मौत पर उसकी बहन से दूल्हे की शादी करना ठीक है
हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया जिसने मुझे समाज की मानसिकता पर प्रश्न चिह्न लगाने के लिए मजबूर कर दिया। ये मामला गुजरात के भावनगर शहर का है जहां शादी के दिन बारात आने पर दुल्हन हेतल की हार्ट अटैक से मौत हो गई।
परिवार की इज्जत बनाए रखने के लिए और बारात को वापस न लौटाने के लिए मृत दुल्हन के घर वालों से उसकी बहन से दूल्हे विशाल की शादी करा दी। रिपोर्ट की मानें तो मृत दुल्हन का अंतिम संस्कार भी उसकी बहन की शादी और विदाई के बाद किया गया।
हो सकता है सामाजिक प्रतिष्ठा बचाने के लिए परिवार के द्वारा उठाया गया ये कदम कुछ लोगों को ठीक भी लगे। मेरा एक सवाल है कि क्या मृत दुल्हन की बहन जिसे परिवार की मजबूरी की वजह से दुल्हन बनना पड़ा उसकी कोई इच्छाएं नहीं रही होंगी?
हो सकता है वो ये शादी न करना चाहती हो, लेकिन परिवार के दबाव में हां की हो? हो सकता है कि वो अपनी बहन की मौत पर दुखी रही हो और खुद को सिर्फ इसलिए संभाल पाई हो कि परिवार की प्रतिष्ठा बनी रहे। कुछ भी कहा जाए लेकिन बात फिर वहीं आकर रुक जाती है कि क्या लड़कियां कोई सामान हैं जो कभी भी बदल दी जाएं?
क्या है मेरी राय
बचपन से एक खुली सोच वाले परिवार में पली-बढ़ी मैं हमेशा से महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरुक थी। मुझे आज भी उस समाज की मानसिकता पर शर्म आती है जो पुरुषों को ऐसा अधिकार देता है, कि वो महिलाओं को एक रिप्लेसमेंट का सामान तक समझने से पीछे नहीं हटते हैं।
अपनी बात करूं तो मुझे यही लगता है कि कहीं न कहीं महिलाओं को भी जागरूक होते हुए अपने सभी अधिकारों को जानने की जरूरत है। ऐसे समाज को बदलने की जरूरत है जहां यदि पुरुष पत्नी की मौजूदगी में दूसरी शादी की बात करता है तो उसे अधिकार कहा जाता है और यदि महिलाएं ऐसा गलती से भी बोल दें तो उन्हें चरित्रहीन कहा जाता है।
आज जब महिलाएं किसी मामले में पुरुषों से कम नहीं हैं , तो क्यों ये मानसिकता बदल नहीं रही है? आखिर क्यों और कब तक? वास्तव में ऐसे समाज की सोच को बदलने की जरूरत है जो हम महिलाओं को कोई चीज मानते हैं।
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