छोटी उम्र में बच्चों का डरना स्वाभाविक बात है। अगर आपकी 10 साल से कम उम्र की बच्ची हर छोटी बात पर डर जाती है या किसी भी नई चीज से घबराती है, तो उन्हें समझाना बेहद जरूरी होता है। खासकर जब उसके जीवन का एक बड़ा शारीरिक बदलाव, यानी पीरियड्स शुरू होने वाला हो। ऐसे में, उसे मानसिक रूप से मजबूत बनाना बेहद जरूरी है, क्योंकि मासिक धर्म हर लड़की के लिए एक बड़ी बदलाव होता है, जो कि बच्चियों को शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक रूप से भी प्रभावित करता है। अगर आपकी बेटी अभी से हर छोटी चीज में घबराती है, तो पीरियड्स जैसे बड़े बदलाव के दौरान उसे और भी ज्यादा सपोर्ट की जरूरत होगी। यह समय उसे सशक्त बनाने, आत्मविश्वास जगाने और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करने का है। तो आइए, बिना देर किए कुछ ऐसे प्रभावी तरीकों के बारे में जान लेते हैं, जिनसे आप अपनी बेटी को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बना सकती हैं।
बच्चियों को पीरियड्स शुरू होने से पहले ही ऐसे बनाएं स्ट्रॉन्ग
छोटी उम्र से ही अपनी बेटी में आत्मविश्वास और लचीलापन विकसित करना उसे जीवन के किसी भी बदलाव, खासकर पीरियड्स जैसे शारीरिक परिवर्तन के लिए तैयार करने में मदद करेगा।
पीरियड्स के बारे में खुलकर बात करें
यह सबसे पहला और महत्वपूर्ण कदम है। डर अक्सर अनभिज्ञता से पैदा होता है। पीरियड्स को एक सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रिया के रूप में समझाएं। पीरियड्स के बारे में बात करने के लिए सही समय और जगह चुनें, खासकर जब आप दोनों कहीं अकेले हों। सरल और स्पष्ट भाषा का प्रयोग करें। बताएं कि यह क्या है, क्यों होता है, और यह एक लड़की के शरीर का एक सामान्य हिस्सा है। उन्हें बताएं कि खून आना डरावना नहीं है, और यह शरीर के स्वस्थ होने का संकेत है।
पीरियड्स के दौरान होने वाले सामान्य लक्षणों जैसे- पेट दर्द, मूड स्विंग्स आदि के बारे में बताएं और आश्वस्त करें कि यह सामान्य है। इससे बच्ची के मन से झिझक दूर होगी और उसे लगेगा कि वह किसी भी सवाल के लिए आप पर भरोसा कर सकती है। जानकारी होने से डर कम होता है।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता विकसित करें
अपनी बेटी को अपनी भावनाओं को पहचानने, समझने और व्यक्त करने में मदद करें। उसे अपनी भावनाओं को नाम देना सिखाएं। उसे बताएं कि सभी भावनाएं ठीक हैं और उन्हें व्यक्त करना महत्वपूर्ण है। उसे दूसरों की भावनाओं को समझने में मदद करें। किसी भी नकारात्मक भावना जैसे डर या गुस्सा को शांत करने के तरीके सिखाएं। इससे फायदा ये होगा कि अपनी भावनाओं को समझने वाली आपकी बच्ची शारीरिक बदलावों के दौरान होने वाले मूड स्विंग्स और नई अनुभूतियों से बेहतर ढंग से निपट पाएगी।
निर्णय लेने और समस्या-समाधान सिखाएं
छोटी-छोटी चीजों में उसे खुद के निर्णय लेने दें। इससे उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा। उसे अपनी पसंद के कपड़े चुनने दें। किसी समस्या का सामना करने पर उसे खुद समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करें, फिर आप उसकी मदद करें। इससे फायदा यह होगा कि जब बच्ची को लगेगा कि वह अपनी छोटी-छोटी समस्याओं को सुलझा सकती है, तो वह पीरियड्स जैसी बड़ी शारीरिक चुनौती का सामना करने के लिए भी मानसिक रूप से तैयार रहेगी।
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शारीरिक गतिविधियों में प्रोत्साहित करें
शारीरिक रूप से सक्रिय रहने से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे अपने शरीर के बारे में अधिक सहज महसूस करते हैं। उसे खेलकूद, डांस, साइक्लिंग या किसी भी शारीरिक गतिविधि में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करें। उसे बताएं कि उसका शरीर कितना मजबूत और सक्षम है। यह पीरियड्स के दौरान होने वाली असुविधा से निपटने और शारीरिक दर्द के डर को भी कम कर सकता है।
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रोल मॉडल बनें और सकारात्मक रहें
बच्चे अपने माता-पिता से सीखते हैं। आपकी सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास उन्हें भी मजबूत बनाएगा। अपनी बेटी के सामने अपनी शारीरिक प्रक्रियाओं जैसे अपनी पीरियड्स या अन्य स्वास्थ्य संबंधी बातें के बारे में सकारात्मक और खुले रहें। जब आप खुद किसी चुनौती का सामना कर रही हों, तो उसे बताएं कि आप कैसे शांत रह रही हैं और समाधान खोज रही हैं। उसे बताएं कि बदलाव जीवन का हिस्सा है और हर बदलाव के साथ अवसर आते हैं। आपकी सकारात्मकता और खुलापन उसे यह सिखाएगा कि बदलावों से डरने की बजाय उन्हें स्वीकार करना और उनसे निपटना सीखें।
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