भारतीय संस्कृति में शादी सात फेरों, सात वचनों और जीवनभर का रिश्ता माना जाता है। लेकिन, जब रिश्ते में दरार आने लग जाए और उसे निभाना बोझ बन जाए तब हम से मैं का सफर तय करना पड़ता है। कोई भी अपना रिश्ता तोड़ना नहीं चाहता है पर अलग होना ही कई बार आखिरी और अकेला रास्ता होता है। इसी मुश्किल रास्ते को ही तलाक कहा जाता है। तलाक एक मुश्किल और भावनाओं से भरी प्रक्रिया होती है, जिसमें सिर्फ दो लोगों का अलग होना नहीं बल्कि उनसे जुड़ी हर चीज यानी प्रॉपर्टी, बच्चों और अन्य मामले भी शामिल होते हैं।
हालांकि, जब भी हम तलाक शब्द सुनते हैं तो इसे दो लोगों के अलग होने का मुद्दा समझकर छोड़ देते हैं। लेकिन, क्या आप जानती हैं तलाक सिर्फ एक तरह का नहीं होता है। जी हां, तलाक एक या दो नहीं, बल्कि पूरे 8 तरह का होता है। यह सभी कानूनी ढांचे और शादी की परिस्थितियों पर निर्भर करते हैं। आइए, यहां जानते हैं कि तलाक कितने तरह के होते हैं और एक-दूसरे से कैसे अलग होते हैं।
तलाक कितनी तरह के होते हैं?
अनकनटेस्टेड तलाक
जब दोनों पार्टीज तलाक के लिए राजी होती हैं और उनके बीच किसी तरह का बड़ा मुद्दा नहीं होता है जैसे प्रॉपर्टी का बंटवारा, बच्चे की कस्टडी या एलुमनी आदि तब अनकनटेस्टेड तलाक होता है। यह ज्यादातर तेज और कम खर्चीला माना जाता है।
इसे भी पढ़ें:तलाक लेने के लिए कितने सालों तक अलग रहना जरूरी है? जान लीजिए क्या कहता है कानून
कनटेस्टेड तलाक
यह तब होता है जब पति-पत्नी एक या उससे ज्यादा मुद्दों पर सहमत नहीं होते हैं। कनटेस्टेड तलाक में अक्सर विवादों को सुलझाने के लिए लंबी बातचीत, मध्यस्थता और लंबे ट्रायल्स शामिल होते हैं। यह ज्यादातर लंबा समय लेता है और महंगा भी पड़ सकता है।
फॉल्ट तलाक
फॉल्ट डायवोर्स उस स्थिति में होता है जब पति या पत्नी एक-दूसरे पर धोखेबाजी, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, वायलेंस या नशे की वजह से शादी टूटने का आरोप लगाते हैं। ऐसी स्थिति में कोर्ट में दोष यानी फॉल्ट साबित और संपत्ति, बच्चों की कस्टडी आदि पर फैसला लेने में समय लगता है। हालांकि, आज के समय में ज्यादातर कोर्ट फॉल्ट तलाक की जगह नॉन फॉल्ट तलाक को बढ़ावा देते हैं।
नो-फॉल्ट तलाक
यह फॉल्ट तलाक से पूरी तरह से उल्टा होता है। नो-फॉल्ट तलाक में पति-पत्नी एक-दूसरे पर किसी तरह का आरोप नहीं लगाते हैं। नो-फॉल्ट डायवोर्स, तलाक की प्रक्रिया को आसान बनाता है जिसकी वजह कोर्ट भी इसे बढ़ावा देते हैं।
मीडिएटेड तलाक
मीडिएटेड डायवोर्स यानी मध्यस्थता तलाक में थर्ड पार्टी शामिल होती है, जो पति-पत्नी के बीच बातचीत कराता है और तलाक की शर्तों पर बीच का रास्ता निकालने में मदद करता है। मीडिएशन यानी मध्यस्थता का इस्तेमाल ज्यादातर विवादों से बचने और प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए होता है।
कोलेब्रेटिव तलाक
कोलेब्रेटिव डायवोर्स को सहयोगात्मक तलाक भी कहा जाता है। इसमें दोनों पक्षों के साथ वकील बैठता है और बातचीत के माध्यम से तलाक करवाता है। अगर बातचीत का नतीजा नहीं निकलता है, तो मामला कोर्ट तक जाता है।
समरी तलाक
इसे तलाक की सबसे आसान प्रक्रिया माना जाता है। यह ज्यादातर उन कपल्स के लिए होता है जिनकी शादी कम समय, बच्चे नहीं होने और कम से कम प्रॉपर्टी का बंटवारा आदि शामिल होता है। समरी डायवोर्स में कम से कम लीगल औपचारिकताएं होती हैं और खर्चीला भी कम माना जाता है।
इसे भी पढ़ें: आखिर क्यों टूटते हैं रिश्ते? ये हैं तलाक के 3 बड़े कारण, एक्सपर्ट से जानिए कैसे बचाई जा सकती है शादियां
डिफॉल्ट तलाक
यह तलाक तब होता है जब पति या पत्नी में से कोई एक डायवोर्स की अर्जी डालता है और दूसरा उसकी कार्यवाही में जवाब या हिस्सा नहीं लेता है। ऐसे मामलों में कोर्ट पति या पत्नी की स्थिति और शर्तों को देखकर तलाक दे सकता है। यह ज्यादातर तब होता है जब कोई एक सहयोग नहीं करता है या फिर उसे ढूंढा नहीं जा सकता है।
हमारी स्टोरी से रिलेटेड अगर कोई सवाल है, तो आप हमें कमेंट बॉक्स में बता सकते हैं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।
अगर आपको स्टोरी अच्छी लगी है, इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी से।
Image Credit: Freepik
HerZindagi ऐप के साथ पाएं हेल्थ, फिटनेस और ब्यूटी से जुड़ी हर जानकारी, सीधे आपके फोन पर! आज ही डाउनलोड करें और बनाएं अपनी जिंदगी को और बेहतर!
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों