आज एक बार फिर देश की राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहे हैं। 8 फरवरी को मतगणना होगी और एक बार फिर दिल्ली को उसका नया मुख्यमंत्री मिलेगा। दिल्ली इन दिनों चुनावी जंग का मैदान बनी हुई है, लेकिन इस शहर की सियासत बहुत पुरानी है। इस दिल्ली ने मौसम बदलते, सत्ता बदलते और हुकूमतें बदलते देखा है। यह दिल्ली बार-बार उजड़ी है और बार-बार बसी है। दिल्ली के हर गली-कूंचे में बदलाव की कहानी दर्ज है।
दिल्ली का प्राचीन नाम क्या है?
आज दिल्ली को मॉर्डन सिटी कहा जाता है, यहां पर चौड़ी सड़कें, मेट्रो, फ्लाईओवर और सभी तरह की सुविधाएं मौजूद हैं। हर कोई दिल्ली आकर रहना चाहता है और इस शहर को जीना चाहता है। लेकिन दिल्ली का सफर लगभग 5000 साल पुराना है और इसकी शुरुआत महाभारत काल से हुई थी।
महाभारत में दिल्ली का सबसे प्राचीन नाम इंद्रप्रस्थ था, इसे पांडवों ने अपनी राजधानी के तौर पर बसाया था। आज भी यमुना नदी के किनारे पांडवों के माया महल के अवशेष मिलते हैं। इसके बाद, 800 ईस्वी पूर्व में दिल्ली का नाम राजा ढिल्लू ने ढिल्लिका रखा था। कहा जाता है कि इस राजा ने अरावली और यमुना के बीच मध्यकाल में पहला शहर बसाया था। इस शहर का नाम योगिनीपुरा रखा था और उस समय लोग योगिनी नाम की प्राचीन देवी की पूजा किया करते थे।
खिलजी, तुग़लक़, सैयद और लोधी वंश ने शासन किया
फिर, 12वीं शताब्दी में राजा अनंगपाल तोमर ने दिल्ली में लालकोट नाम का शहर बसाया और यहां पर शासन किया। इसके बाद, अजमेर के चौहान राजा ने इस लालकोट को जीतकर इसका नाम किला राय पिथौरा रख दिया। चंद्रबरदाई द्वारा लिखित पृथ्वीराज रासो में, राजा अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है, जो लौह-स्तंभ दिल्ली लाए थे।
तोमर वंश ने दिल्ली पर 900-1200 ईस्वी तक राज किया। इसके बाद, 1206 ईस्वी के आसपास दिल्ली की गद्दी पर खिलजी, तुग़लक़, सैयद और लोधी वंश समेत कई दूसरे वंशों ने शासन किया। कहा जाता है कि मोहम्मद गौरी ने पृथ्वी राज चौहान को पराजित करने के बाद दिल्ली की सत्ता कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंप दी थी। कुतुबुद्दीन ने ही महरौली नामक शहर का निर्माण करवाया था, जिसे आज हम कुतुब कॉम्प्लेक्स के नाम से जानते हैं।
इसके बाद अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया था और महरौली को सीरी में तब्दील करवा दिया था। 1320 ईस्वी में तुग़लक़ वंश ने दिल्ली की सल्तनत पर शासन किया और गयासुद्दीन तुग़लक़ ने तुगलकाबाद का निर्माण करवाया था। उसी समय तुग़लक़ों ने एक नया शहर बसाया जिसे नाम फिरोजशाह दिया। 1500 ईस्वी में तुग़लक़ों के बाद दिल्ली पर मुगलों ने राज किया। मुगल शासक हुमायूं ने दिल्ली में दिनपनाह नाम का शहर बसाया। 1539 में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को पराजित करके दिनपनाह शहर को शेरगढ़ किला बना दिया था।
दिल्ली की सुरक्षा के लिए 14 गेट बनवाए गए थे
इसके बाद, 1545 में शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद हुमायूं ने फिर से दिल्ली की गद्दी पर कब्जा कर लिया था। 1638 में शाहजहां ने दिल्ली में शाहजहानाबाद का निर्माण करवाया था, जिसे आज हम पुरानी दिल्ली कहते हैं। आपको बता दें कि लाल किला, जामा मस्जिद, चांदनी चौक को शाहजहां ने ही बनवाया था। शाहजहां ने दिल्ली की सुरक्षा के लिए शहर के चारों तरफ एक दीवार बनवाई थी और जिसमें 14 गेट थे। आपको इनके कुछ हिस्से पुरानी दिल्ली में देखने को मिल सकते हैं।
दिल्ली पर शासन करने वाले आखिरी मुगल शासक बहादुरशाह ज़फर थे, जिन्हें अंग्रेज गिरफ्तार करके रंगून ले गए थे। इसके बाद दिल्ली पर ब्रिटिशों ने हुकूमत चलाई और 1911 को जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने की घोषणा की और नई दिल्ली बनाने का ऐलान किया। अंग्रेजों के शासनकाल में ही राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और संसद भवन का निर्माण हुआ था। आपको बता दें कि दिल्ली के कनॉट प्लेस को भी एडविन लुटियंस ने बनवाया था।
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दिल वालों की है दिल्ली
भले ही आज दिल्ली एक आधुनिक महानगर के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह शहर अभी भी अपनी समृद्ध विरासत को संजोकर रखे हुए है। यह शहर एक-दो बार नहीं बल्कि 7 बार राख से उठकर खड़ा हुआ है और हर बार अधिक मजबूत, शानदार, सांस्कृतिक रूप से अधिक समृद्ध होकर उभरा है। दिल्ली एक ऐसा शहर है, जो अतीत और वर्तमान को लेकर जीता है।
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