पाकिस्तान के लाहौर में स्थित हीरामंडी की कहानी मुगल काल से जुड़ी हुई है। शुरुआत में इसे अनाज बाजार के तौर पर बनाया गया था, लेकिन बाद में यह एक सांस्कृतिक केंद्र बन गया। हीरामंडी का नाम, महाराजा रणजीत सिंह के प्रधानमंत्री हीरा सिंह के नाम पर पड़ा था। हीरा सिंह ने ही यहां अनाज बाजार बनवाया था और बाद में यहां तवायफों को बसाया था। उस समय, अलग-अलग देशों से संगीत, नृत्य, तहजीब और कला से जुड़ी औरतों को लाया जाता था।
संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडी
मुगलों के समय में हीरामंडी को शाही मोहल्ला कहा जाता था। ऐसा इसलिए था क्योंकि मुगलों के शासनकाल में यह बाजार उनका ऐश-आराम का अड्डा बन चुका था। बताया जाता है कि यहां मुगल नृत्यकियों को अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से लाया जाता था। 1801 में जब 22 साल के रणजीत सिंह ने खुद को पंजाब का महाराजा घोषित किया, तो यहां चीजें और तेजी से बढ़ने लगीं।
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उन्होंने तवायफों की संस्कृति और उनके दरबारी डांस सहित मुगल शाही रीति-रिवाजों को फिर से शुरू किया। हीरामंडी की कहानी पर संजय लीला भंसाली ने एक वेब सीरीज भी बनाई है। यह सीरीज रेहाना और मल्लिका जान पर आधारित है। इसमें सोनाक्षी सिन्हा, मनीषा कोइराला, अदिति राव हैदरी, और ऋचा चड्ढा जैसे कई प्रतिभाशाली कलाकार हैं।
क्या है नथ उतराई, मिस्सी और अंगिया रस्म
संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज हीरामंडी में नथ उतराई और अंगिया रस्म का कई बार जिक्र आता है। तवायफ बनने के लिए कई रस्में पूरी करनी पड़ती थीं, जिनमें से एक रस्म नथ उतराई होती थी। इस रस्म में लड़की अपनी वर्जिनिटी बेचती थी। नथ उतराई की रस्म में, लड़की को दुल्हन की तरह सजाया जाता था और नाक के बाईं तरफ एक बड़ी नथ पहनाई जाती थी। ये नथ उसके कौमार्य का प्रतीक होती थी। फिर, कई अमीर लोगों को न्योता भेजा जाता था और वर्जिन लड़की के लिए बोली लगाई जाती थी। जो सबसे बड़ी बोली लगाता था, वह उस लड़की के साथ पहली बार संबंध बनाता था।
इस रात के बाद लड़की कभी भी नथ नहीं पहनती थी और उसे सिर्फ लौंग पहनने की इजाजत होती थी। नथ उतराई की रस्म के बाद लड़की आधिकारिक तौर पर तवायफ का दर्जा हासिल करती थी।
तवायफ बनने का पहला कदम
तवायफ बनने के लिए कई सालों का प्रशिक्षण होता था। जब कोई लड़की इन कलाओं में निपुण हो जाती थी, तब शहर के कद्रदानों को नथ उतराई का निमंत्रण दिया जाता था। ऐसे मौके पर नवाब तवायफ का मुजरा देखते थे और उसकी बोली लगाते थे। जिसकी बोली महंगी होती थी, वह तवायफ के साहब बन जाते थे। तवायफ बनने के लिए मिस्सी और अंगिया रस्में भी होती थीं। मिस्सी रस्म के तहत कोठे पर खास कार्यक्रम किया जाता था, जिसमें नाच-गाना और खाना-पीना होता था।
अंगिया रस्म, किसी लड़की के तवायफ बनने का पहला कदम होता था। इस रस्म में, जब लड़की के शरीर में बदलाव आने लगते हैं, तो कोठे की तवायफें उसे अंगिया पहनाती थीं। अंगिया का मतलब ब्रा होता है। यह रस्म बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी।
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पुराने जमाने में, लड़कियों को तवायफ बनने के लिए कई रस्मों से गुजरना पड़ता था। इन रस्मों में अंगिया, मिस्सी, और नथ उतराना बेहद जरूरी था। मिस्सी एक खास रस्म होती थी, जिसमें लड़की के दांतों को काला किया जाता था। उस जमाने में काले दांत और कत्थे से लाल होठ को काफी सुंदर माना जाता था। इस रस्म को सिर्फ कोठे की औरतें ही निभाती थीं। जब यह रस्म पूरी हो जाती, तो उस कोठे पर खास तरह के आयोजन और नाच-गाना किया जाता था।
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