महाभारत को भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण महाकाव्य माना जाता है। इसकी जगह ग्रंथों में है और इसे धर्म और अधर्म की लड़ाई का महायुद्ध माना जाता है। महाभारत का हर एक किरदार हमें कुछ ना कुछ सिखाता है। इस कहानी में भले ही युद्ध पुरुषों द्वारा किया गया हो, लेकिन असल द्वंद महिलाओं के बीच चल रहा था। महाभारत की कहानी में हर एक स्त्री नायिका थी जिसने धर्म और कर्म को लेकर हमें कुछ ना कुछ सीख दी है।
आज हम महाभारत काव्य की ऐसी ही नायिकाओं की बात करने जा रहे हैं जो शिक्षिका के रूप में भी देखी जा सकती हैं।
1. कुंती
शिक्षा- बिना स्वार्थ और मन में फर्क किए अपने परिवार का ध्यान देना
महाभारत की सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्त्रियों में से एक कुंती ही रही हैं जिन्हें शुरुआत से ही अपनों से दूर रहना पड़ा। उन्होंने अपने पति का प्यार पाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। कुंती ने पांचों पांडवों में कभी फर्क नहीं किया और हंसते-हंसते राज्य से अपना हक भी छोड़ दिया। कुंती की खास बात यह थी कि उन्होंने हमेशा ही स्त्रियों का सम्मान किया और हर जीव-जंतु को बचाने की कोशिश की। उन्होंने अपने बच्चों को धर्म का पाठ पढ़ाया और यह भी बताया कि कैसे आगे बढ़ना है। कुंती के मन में कभी स्वार्थ नहीं रहा और महाभारत की सबसे पारिवारिक स्त्रियों में से एक कुंती ही थीं।
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2. द्रौपदी
शिक्षा- अपने सम्मान की रक्षा सबसे ऊपर है
द्रौपदी के मान को ठेस पहुंची और महाभारत का युद्ध लड़ा गया। द्रौपदी ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए बहुत कुछ किया। द्रौपदी ने अपने बालों को खुला छोड़ा और सम्मान के हक में उन्हें कभी नहीं बांधा। द्रौपदी का तिरस्कार हुआ, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना धर्म नहीं छोड़ा। उन्होंने यह साबित किया कि अगर कोई महिलाओं की इज्जत नहीं करेगा, तो उसका सर्वनाश हो सकता है। द्रौपदी ने धैर्य और त्याग की भी परीक्षा दी और अपने पांचों पतियों में कभी भेदभाव नहीं किया।
3. सत्यभामा
शिक्षा- धर्म के नाम पर पुत्र मोह नहीं देखा करते
अगर आपने महाभारत को ठीक से देखा है, तो स्तयभामा की कहानी आपको पता ही होगी। सत्यभामा श्री कृष्ण की तीसरी पत्नी थीं और उन्होंने नरकासुर को खत्म करने में कृष्ण की मदद की थी। नरकासुर को ब्रह्मा का वरदान मिला था कि उसकी मृत्यु उसकी मां के हाथों ही हो सकती है। ऐसे में सत्यभामा ने नरकासुर का वध किया था। सत्यभामा को पृथ्वी देवी का अवतार माना जाता है और महाभारत के युद्ध में भी उन्होंने बहुत अहम भूमिका निभाई थी।
सत्यभामा एक कुशल सैनिक भी थीं और उन्होंने यह सिखाया था कि धर्म के आगे कुछ नहीं होता। इंसान के रिश्ते कर्म और धर्म से देखे जाते हैं।
4. सत्यवती
शिक्षा- स्वार्थ में लिए गए फैसले हमेशा खराब ही होते हैं
सत्यवती मत्स्यकन्या थी जिनके रूप से मोहित होकर राजा शांतनु ने उन्हें हस्तिनापुर की रानी बना दिया था। सत्यवती ने अपने स्वार्थ के लिए भीष्म को राजा नहीं बनने दिया था और अपने पुत्रों के स्वार्थ के लिए ही नियोग जैसी विधि को अपनाया था जिससे धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर पैदा हुए थे। सत्यवती ने अपने स्वार्थ के लिए ही काशी की राजकुमारियों अंबा, अंबिका और अंबालिका के स्वयंवर में भीष्म को भेजा था जिसके कारण राजकुमारी अंबा की जिंदगी बर्बाद हुई थी। असल में महाभारत के युद्ध की नींव सत्यवती के स्वार्थ ने ही रख दी थी।
यही कारण है कि स्वार्थ में किए गए कामों को हमेशा गलत ही माना जाता है।
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5. गांधारी
शिक्षा- अपने प्रेम के लिए त्याग किया जा सकता है
गांधारी महाभारत की सबसे सुंदर स्त्रियों में से एक मानी जाती हैं जिन्होंने अपने पति के लिए अपने आप को निस्वार्थ भाव से त्याग दिया। गांधारी ने सिखाया कि किस तरह से त्याग किया जा सकता है। अपने पति का साथ देने के लिए गांधारी ने पूरी ताकत लगा दी। इसके अलावा, उन्होंने द्रौपदी के अपमान पर दुर्योधन का साथ भी छोड़ने का निश्चय कर दिया था। गांधारी हमें सिखाती हैं कि बिना स्वार्थ के जिंदगी कैसे जी जा सकती है।
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