आज देश में भले ही लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को लेकर कई तरह की बातें होती हों, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। यह सच है कि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं ने अपने कौशल व मेहनत के दम पर अपना स्थान बनाया है, लेकिन फिर भी अभी स्थिति बराबरी की नहीं है। इतना ही नहीं, विभिन्न क्षेत्रों में अपना स्थान कायम करने के लिए कई महिलाओं को एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी। इन्हीं महिलाओं में से एक है चोनिरा बेलियप्पा मुथम्मा, जिन्हें भारत की पहली आईएफएस महिला के रूप में भी जाना जाता है।
24 जनवरी 1924 में कूर्ग में जन्मी सी बी मुथम्मा भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने वाली पहली महिला भी थीं। वह पहली भारतीय महिला राजनयिक भी थीं। अपने कार्यकाल के दौरान महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को देखकर उन्हें काफी दुख हुआ। यहां तक कि सरकार की दकियानूसी सोच को बदलने के लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका तक दायर की। जिसके बाद सरकार को उनके सामने झुकना पड़ा। तो चलिए आज इस लेख में हम आपको सी बी मुथम्मा की उपलब्धियां और उनके संघर्ष की कहानी के बारे में बताएंगे-
सी बी मुथम्मा का जन्म 24 जनवरी 1924 को कूर्ग के विराजपेट में हुआ था। उनके पिता एक फॉरेस्ट ऑफिसर थे और जब मुथम्मा मात्र नौ वर्ष की थ्ज्ञी, तो उनके पिता की मृत्यु हो गई थी। मुथम्मा की मां ने अपने चार बच्चों को सर्वोत्तम शिक्षा दिलाने का प्रयास किया। मुथम्मा ने अपनी स्कूली शिक्षा मदिकेरी के सेंट जोसेफ गर्ल्स स्कूल में पूरी की, और वुमन क्रिश्चियन कॉलेज, चेन्नई से ट्रिपल गोल्ड मेडल के साथ स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
यह विडियो भी देखें
इसे जरूर पढ़ें-भारतीय मूल की वो ताकतवर महिलाएं, जिन्होंने वर्ल्ड राजनीति में बनाया अपना मुकाम
सी बीम मुथम्मा 1948 में यूपीएससी परीक्षा पास करके भारतीय सिविल सेवा में शामिल होने वाली पहली महिला बनीं। उसके बाद उन्होंने भारतीय विदेश सेवा के लिए आवेदन किया और 1949 में वह आईएफएस अधिकारी बनी। जब उन्होंने भारतीय विदेश सेवा में प्रवेश किया, तो मुथम्मा से एक समझौते पर हस्ताक्षर करवाए गए। इस समझौते में लिखा था कि वह शादी के बाद अपनी नौकरी से इस्तीफा दे देंगी।
सी बी मुथम्मा उन महिलाओं में से थी, जिन्होंने देश सेवा में होने वाले लैंगिक भेदभाव को खत्म करने के लिए ना केवल एक लंबी लड़ाई लड़ी, बल्कि उसे जीतकर महिलाओं के लिए एक जमीन तैयार की। इस तरह वह भारत की पहली महिला राजदूत बनीं। दरअसल, जब वह एक आईएफएस ऑफिसर के रूप में अपनी सेवाएं दे रही थीं, तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने सीबी मुथम्मा को विदेश सचिव के पद पर पदोन्नत नहीं किया था। जिसके बाद मुथम्मा ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
उनका मत था कि सरकार के रोजगार कि नियमों में लिंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 1976 में न्यायमूर्ति वी आर कृष्ण अय्यर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ में अपना फैसला मुथम्मा के समर्थन में दिया। यह मुथम्मा के अथक प्रयासों का ही परिणाम था कि अब से आईएफएस महिला अधिकारियों को शादी करने से पहले सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।
इसे जरूर पढ़ें-नजरें पितृसत्ता की बुरी, पर्दा करें औरतें, बदलने चाहिए महिलाओं को लेकर ये नजरिये
सी बी मुथम्मा भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन यह उनके प्रयासों का ही परिणाम है कि वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ में भी महिलाएं भारत का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसी महान स्त्री को हमारा शत-शत नमन। अगर आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो इसे शेयर जरूर करें व इसी तरह के अन्य लेख पढ़ने के लिए जुड़ी रहें आपकी अपनी वेबसाइट हरजिन्दगी के साथ।
Image Credit- instagram, seithipunal, coorgnews
हमारा उद्देश्य अपने आर्टिकल्स और सोशल मीडिया हैंडल्स के माध्यम से सही, सुरक्षित और विशेषज्ञ द्वारा वेरिफाइड जानकारी प्रदान करना है। यहां बताए गए उपाय, सलाह और बातें केवल सामान्य जानकारी के लिए हैं। किसी भी तरह के हेल्थ, ब्यूटी, लाइफ हैक्स या ज्योतिष से जुड़े सुझावों को आजमाने से पहले कृपया अपने विशेषज्ञ से परामर्श लें। किसी प्रतिक्रिया या शिकायत के लिए, compliant_gro@jagrannewmedia.com पर हमसे संपर्क करें।