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छोटी, बड़ी और देव दिवाली में क्या है अंतर? आप भी जानें

दीपावली साल के बड़े त्योहार में से एक है, इस त्योहार को लगातार पांच दिनों तक मनाया जाता है। धनतेरस से लेकर भाई दूज तक इस त्योहार को पूरे धूमधाम से मनाया जाता है। <div>&nbsp;</div>
Editorial
Updated:- 2023-11-03, 18:15 IST

Diwali 2023: दीपावली कुल पांच दिनों का त्योहार होता है, पहले दिन धनतेरस, दूसरे दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली, तीसरे दिन दीपावली, चौथे दिन अन्नकूट जिसे गोवर्धन पूजा और पांचवें दिन भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दिवाली और अमावस्या के दिन बड़ी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। बता दें कि कार्तिक मास के पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली मनाई जाती है। बहुत से लोगों को छोटी और बड़ी दिवाली के बारे में तो पता है, लेकिन देव दिवाली के बारे में नहीं पता, इसलिए चलिए जानते हैं इन तीनों तरह की दिवाली के बारे में...

छोटी दिवाली

choti diwali

हर साल छोटी दिवाली कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। बहुत से जगह पर इसे नरक चतुर्दशी या नरक चौदस कहा जाता है। इस दिन नरकासुर नामक राक्षस का वध किया गया था। इस असुर के कैद से सोलह हजार स्त्रियों को कैद से आजाद करवाया था साथ ही, देव लोक को भी राक्षस के कब्जे से मुक्ति करवाया था। इस खुशी में नरक चतुर्दशी का त्योहार को मनाया जाता है। देवता और आजाद हुई स्त्री इस दिन बहुत खुश हुई थीं, इसलिए वे दीपक जलाकर त्योहार को मनाए थे। इसके अलावा इस दिन यम के नाम से दीपक जलाने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद नरक जाने से मुक्ति मिलती है।

बड़ी दिवाली

badi diwali

कार्तिक मास के अमावस्या तिथि को बड़ी दिवाली का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन रात में माता लक्ष्मी, गणेश और सरस्वती जी की पूजाहोती है। साथ ही बंगाल में माता काली की पूजा होती है। बहुत से जगह पर यह मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर आती है और उनके स्वागत में दीये जलाए जाते हैं। दीपावली या बड़ी दिवाली को लेकर यह भी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री राम लंका से अयोध्या आए थे। पूरे देशभर में इस त्योहार को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।

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देव दिवाली

कार्तिक मास की पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिवने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध कर देवताओं को राक्षसों के भय से मुक्ति दिलाई थी। त्रिपुरासुर ने देवताओं से युद्ध कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद देवता शिव जी के पास अपनी रक्षा के लिए जाते हैं और भगवान शिव राक्षस का वध कर स्वर्ग को पुनः देवताओं को सौंपते हैं। इस खुशी में देवता गण गंगा के तट पर स्नान कर दीप जलाते हैं और राक्षस के वध की खुशी मनाते हैं। तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन नदी के किनारे दीपदान करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु, तुलसी, माता लक्ष्मी, भगवान शिव और पार्वती की पूजा करने का विधान बताया गया है।

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Image Credit: Freepik  

 

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