बॉलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण अपनी शानदार एक्टिंग और सुपरहिट फ़िल्मों के लिए जानी जाती हैं। हाल ही में मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक्ट्रेस डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा की अपकमिंग फिल्म 'स्पिरिट' से बाहर हो गई हैं। बताया जा रहा है कि दीपिका ने फिल्म में काम करने के लिए 20 करोड़ रुपये फीस, 8 घंटे का शूटिंग शेड्यूल और फिल्म के मुनाफे में हिस्सेदारी की मांग की थी। इन्हीं मांगों को लेकर डायरेक्टर और एक्ट्रेस के बीच मतभेद हुए।
अप्रोफेशनल कहे जाने पर दीपिका पादुकोण का जवाब
27 मई को डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ने X पर एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने दीपिका का नाम लिए बिना उन पर स्क्रिप्ट लीक करने और 'डर्टी पीआर गेम' खेलने का आरोप लगाया। वहीं, पहली बार दीपिका पादुकोण ने भी एक वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए कहा कि जो चीज उन्हें संतुलित रखती है, वह उनका सच्चा और खरा होना है। उन्होंने कहा कि जब भी वह किसी मुश्किल हालात में होती हैं, तो वह हमेशा अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनती हैं, जिससे उन्हें शांति मिलती है और वह संतुलित महसूस करती हैं।
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नई बहस शुरू हो चुकी है
हालांकि, इस खबर ने फिल्म इंडस्ट्री में जेंडर बायसनेस , वर्किंग कंडीशन्स और पेमेंट इक्विलिटी को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब दीपिका पादुकोण ने फिल्म के सेट पर 8 घंटे की शिफ्ट करने की मांग की, तो मेकर्स ने उन्हें 'अनप्रोफेशनल' बताकर फिल्म से बाहर कर दिया। लेकिन, हम सभी जानते हैं कि हाल ही में दीपिका पादुकोण मां बनी हैं और एक नई मां के तौर पर 8 घंटे की शिफ्ट की मांग करना बिलकुल जायज है।
महिलाओं की मांगों को 'टैंट्रम्स' क्यों कहा जाता है?
दीपिका पादुकोण की मांगें जैसे सही फीस, काम के लिमिटेड घंटे और मुनाफे में हिस्सेदारी, अंतर्राष्ट्रीय फिल्म इंडस्ट्री में बिलकुल आम मानी जाती हैं। फिर भी, इंडियन फ़िल्म इंडस्ट्री में इन मांगों को तब 'अनप्रोफ़ेशनल' कहा जाता है, जब कोई एक्ट्रेस यह मांग करती है। जबकि सभी को पता है कि इंडस्ट्री के कई बड़े एक्टर्स भी भारी-भरकम फीस के साथ मुनाफे में हिस्सेदारी भी लेते हैं, लेकिन तब उन्हें फिल्मों से बाहर का रास्ता नहीं दिखाया जाता। वहीं, जब कोई एक्ट्रेस अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाती है, तो उसे 'टैंट्रम्स' कहा जाता है।
इंडियन फिल्म इंडस्ट्री मेंपे पैरिटी
इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में एक्टर और एक्ट्रेस की फीस में काफी अंतर है। फिल्मों में हीरो के साथ-साथ हीरोइन का रोल भी अहम होता है और वह भी उतनी ही मेहनत करती हैं और बराबर का योगदान देती हैं, लेकिन उन्हें हीरो से कम फीस मिलती है। दीपिका पादुकोण पहली एक्ट्रेस नहीं हैं जिन्होंने इस 'पे डिस्पैरिटी' के खिलाफ आवाज उठाई है। इससे पहले, अनुष्का शर्मा, प्रियंका चोपड़ा और करीना कपूर खान जैसी कई एक्ट्रेसेस ने भी इस मुद्दे पर अपने अनुभव साझा किए हैं।
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क्या बदलाव संभव है?
दीपिका पादुकोण का फिल्म 'स्पिरिट' से बाहर होना यह दिखाता है कि इंडियन फिल्म इंडस्ट्री आज भी पुरुष प्रधान है और यहां भले ही महिला सशक्तिकरण को लेकर फिल्में बनाई जाती हों, लेकिन असलियत में हीरोइनों को अभी भी लैंगिक समानता की दिशा में एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है। जब तक एक्ट्रेसेस को एक्टर के बराबर फीस और सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक यह असमानता बनी रहेगी।
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