बचपन से ही शांत थे कर्नल बी. संतोष बाबू
कर्नल बाबू तेलंगाना के सूर्यापेट शहर के रहने वाले थे। बचपन से उनका स्वभाव काफी शांत था। उनके अंदर गजब की समझदारी और जिम्मेदारी थी। उन्होंने कभी अपना ध्यान भटकने नहीं दिया, क्योंकि उनका पहले से ही सपना था कि उन्हें देश की सेवा करनी है। जहां बाकी बच्चे खेल-कूद में लगे रहते, वहीं संतोष बाबू पढ़ाई और अनुशासन में आगे रहते।
साल 2004 में उनका सपना पूरा हुआ जब वे भारतीय सेना में अफसर बने। उन्हें 16 बिहार रेजिमेंट में पोस्ट मिल गई थी। यहां उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत से खुद को एक ऐसे लीडर के तौर पर साबित किया, जो सैनिकों की तकलीफें समझता था और हर कदम पर उनके साथ खड़ा रहता था।
गलवान घाटी में उस दिन कर्नल के साथ क्या हुआ था?
15 जून, 2020 का वो दिन था जब, जब कर्नल बी. संतोष बाबू सैनिकों के अवैध निर्माण को हटाने के लिए पहुंचे थे। दरअसल, गलवान घाटी एक ऐसी खूबसूरत घाटी है, जिसे लेकर साल 1962 में भारत और चीन के बीच समझौता हुआ था। ऐसे समझौते के दौरान कहा गया था कि दोनों देश में से को भी हथियार लाएगा। गलवान घाटी एक खूबसूरत जगह है, जो ऊंचाई पर स्थित है। यहां से श्योक नदी, दौलत बेग ओल्डी रोड और काराकोरम पर निगरानी होती है। इसलिए यह जगह खूबसूरती के साथ-साथ रणनीतिक रूप से बहुत जरूरी है। इस क्षेत्र में अक्सर चीन कुछ न कुछ निर्माण कार्य करने लगता है, जिसकी वजह से तनाव बढ़ता है।
उस दिन भी यही हुआ था, समझौते के अनुसार कर्नल बी. संतोष बाबू अपने साथ हथियार लेकर नहीं गए थे। निहत्थे होने के बाद भी कर्नल ने बिना डरे कहा चीनी सैनिकों से कहा- यह निर्माण कार्य आपको रोकना होगा।
जब शांति से बात नहीं बनी, तो दोनों देशों में हाथापाई शुरू हुई। कर्नल बाबू ने आवाज लगाई- 'बिहार रेजिमेंट, आगे बढ़ो!' वो इस हमले में घायल होते रहे, लेकिन पीछे नहीं हटे। उनकी बहादुरी देखकर जवानों में भी जोश भर गया था। उनकी बहादुरी ने जवानों में जोश भर दिया। बिना हथियारों के भी सभी ने पूरे जोश के साथ चीनी सैनिकों का विरोध किया। इस युद्ध में भले ही उन्होंने जान गंवा दी, लेकिन उन्हें देश ने जाना, दुनिया ने पहचाना।
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उनकी शहादत पर देश को गर्व है
जब घर तक उनके शहीद होने की खबर पहुंची, तो आंखें नम थीं, लेकिन सीना गर्व से चौड़ा था। छोटी सी उम्र में उनकी बेटी की यह तस्वीर सभी की आंखें नम करती है। बच्ची की सलामी ने पूरे देश को भावुक कर दिया। उनके जाने के बाद उन्हें 'महा वीर चक्र' से सम्मानित भी किया गया।
(लेखक- लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान, पीवीएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम, वीएसएम, पीएचडी)
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