कितनी उम्र के बच्चे दे सकते हैं अदालत में गवाही? Lawyer से जानिए नियम

Children Testimony: अदालत में गवाही देने को लेकर क्या नियम है? किस उम्र के बच्चे गवाही दे सकते हैं? आदि जानकारी के लिए आप इस आर्टिकल को पूरा पढ़ सकते हैं। यहां लॉयर से बातचीत कर कोर्ट के नियमों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
Children Testimony

Children Testimony: आए दिन देश में जुर्म और हत्या के अजीबोगरीब मामले आते हैं। हाल ही में, मध्यप्रदेश की एक घटना सामने आई, जिसमें एक शख्स ने अपनी 7 साल की बेटी के सामने अपनी पत्नी की हत्या कर दी थी। जुर्म करने के बाद भी पति ने पूछताछ में पत्नी के मृत्यु कारण आत्महत्या बताया था, लेकिन कुछ समय बाद उसकी छोटी बच्ची की बनाई गई एक ड्रॉइंग ने पूरे सच से पर्दा हटा दिया। इस मासूम की कलाकृति ने दिखा दिया कि असल में पिता ने ही अपनी पत्नी की हत्या की थी।

दोषी की पहचान करने के लिए गवाही की जरूरत होती है और कई बार घटनास्थल पर बच्चे मौजूद होते हैं, जिनमें से कुछ की बातों को सीरियस लिया जाता है, पर कुछ बच्चे गवाही के लिए योग्य नहीं माने जाते हैं। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि आखिर अदालत में गवाही देने के लिए बच्चे की उम्र कितनी होनी चाहिए, किस उम्र के बच्चे कोर्ट में गवाही के लिए पेश किए जा सकते हैं और किसकी बातों को अनदेखा किया जा सकता है? इस विषय में कानून क्या कहता है और एक वकील की राय क्या है, आइए इस आर्टिकल में लॉयर धीरेंद्र कुमार से जान लेते हैं।

कितने छोटे बच्चे दे सकते हैं कोर्ट में गवाही?

Dhirendra Kumar Lawyer

अब तक इस बात को लेकर संदेह था कि बहुत छोटे बच्चे किसी अपराध के गवाह बन सकते हैं या नहीं। अक्सर यह तर्क दिया जाता था कि बच्चे घटनाओं को सही तरीके से समझ नहीं पाते और कभी-कभी उनकी बातें भरोसेमंद नहीं होती हैं, लेकिन लॉयर धीरेंद्र कुमार ने बातचीत के दौरान बताया कि गवाही देने के लिए उम्र की कोई न्यूनतम सीमा नहीं होती है। किसी भी अपराध की जांच में छोटे बच्चे भी महत्वपूर्ण गवाह बन सकते हैं, बशर्ते उनकी गवाही विश्वसनीय और प्रासंगिक हो।

भारतीय कानून में ऐसा कोई कठोर नियम नहीं है जो किसी विशेष उम्र से कम के बच्चों को गवाही देने से रोके। अदालत इस बात पर निर्भर करती है कि बच्चा अपनी बात को सही तरीके से समझ और बयान कर सकता है या नहीं। यानी, किसी भी उम्र का बच्चा गवाही दे सकता है अगर वह सच्चाई को समझने और उसे अदालत में स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में सक्षम है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम का प्रावधान

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भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 118 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो अदालत में साक्ष्य (गवाही) देने में सक्षम हो, उसे गवाह बनने की अनुमति दी जाती है, चाहे उसकी उम्र कोई भी हो। इसका अर्थ है कि बच्चों को भी गवाही देने की अनुमति दी जा सकती है, बशर्ते कि वे साक्ष्य की महत्ता को समझते हों।

जब कोई बच्चा अदालत में गवाही देता है, तो जज सबसे पहले यह परखता है कि बच्चा सच और झूठ में अंतर कर सकता है या नहीं। जज बच्चे से कुछ सामान्य सवाल पूछकर यह तय करता है कि वह सच्चाई को समझने में सक्षम है या नहीं। अगर अदालत को लगता है कि बच्चा किसी के दबाव में है या प्रभावित किया जा सकता है, तो उसकी गवाही को संदेह के दायरे में रखा जा सकता है।

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किन मामलों में बच्चों की गवाही अधिक महत्वपूर्ण होती है?

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बच्चे अक्सर उन मामलों में गवाह बनते हैं जहां वे स्वयं अपराध के शिकार हुए हों या उन्होंने किसी अपराध को होते हुए देखा हो। ऐसे मामलों में उनकी गवाही बेहद अहम होती है, जैसे-

  • यौन शोषण
  • घरेलू हिंसा या मारपीट के केस
  • हत्या या गंभीर अपराधों के चश्मदीद गवाह
  • अपहरण या तस्करी से जुड़े मामले

न्यायपालिका बच्चों की गवाही को कैसे सुनिश्चित करती है?

  • बच्चों से गवाही लेने के दौरान यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे किसी दबाव में न हों।
  • अगर कोई बच्चा बहुत छोटा है, तो उसकी मानसिक स्थिति जांचने के लिए विशेषज्ञों की राय ली जा सकती है।
  • कुछ मामलों में बच्चों को प्रत्यक्ष अदालत में पेश करने की बजाय कैमरे के सामने बयान देने की अनुमति दी जाती है, ताकि वे सहज महसूस कर सकें।
  • बच्चों के साथ हुए यौन अपराधों के मामलों में विशेष अदालतें होती हैं, जहां उनकी गवाही को संवेदनशील तरीके से दर्ज किया जाता है।

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Image credit- Freepik


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