कहते हैं पुरानी दोस्ती और पुरानी रंजिश दोनों ही अपना असर बहुत गहरा छोड़ती हैं। हमने आपसी जिंदगी में भी ऐसे कई किस्से देखे होंगे जहां पुराने दोस्त किसी कारण से एक दूसरे से अलग हो गए और उनके परिवार भी अब वैसा ही रिश्ता निभाते चले आ रहे हैं। कुछ ऐसा ही हमने देखा था बच्चन और गांधी परिवार के रिश्तों के साथ। जब देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हुआ करते थे तब से ही बच्चन परिवार और नेहरू-गांधी परिवार एक दूसरे के साथ था। हाल ही में एक खबर आई है कि राहुल गांधी ने अमिताभ बच्चन को ट्विटर से अनफॉलो कर दिया है। ये बात बताती है कि इन दोनों परिवारों के रिश्ते कितने बिगड़ चुके हैं।
अगर देखा जाए तो ये वो ज़माना था जब जवाहरलाल नेहरू को हरिवंश राय बच्चन की कविताएं बहुत पसंद हुआ करती थीं। इसके साथ ही इंदिरा गांधी और तेजी बच्चन की नजदीकियां भी किसी से छुपी नहीं थीं। ये दोनों ही बहुत पक्की सहेलियां हुआ करती थीं और दोनों को कई मौकों पर साथ देखा जाता था। दोनों के बच्चे भी एक दूसरे के बहुत करीब थे, लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों परिवार इतनी गहरी दोस्ती के बाद भी अलग हो गए?
आज बच्चन और गांधी परिवार की इसी दोस्ती और फिर अलगाव के बारे में बात करते हैं। ये बातें हैं उस दौर की जब स्मार्टफोन और इंटरनेट से परे ट्रंक कॉल पर सिर्फ 6 मिनट के लिए ही बातें हुआ करती थीं।
तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी की दोस्ती
आपको शायद ये न पता हो, लेकिन अमिताभ बच्चन में एक्टिंग के गुण कहीं न कहीं उनकी मां तेजी बच्चन से ही आए हैं। तेजी जी बहुत उम्दा कलाकार थीं और उन्होंने स्टेज प्ले भी किए थे। प्रयागराज (तब इलाहाबाद) में आनंद भवन में तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी की पहली मुलाकात हुई थी और दोनों उसी समय से दोस्त बन गईं।
ये दोनों काफी करीब रहीं और इनके बच्चे भी एक दूसरे के गहरे मित्र थे। इतना ही नहीं, राजीव गांधी के बच्चे प्रियंका गांधी और राहुल गांधी भी अमिताभ बच्चन को मामू कहकर पुकारते थे। कुछ समय पहले प्रियंका गांधी ने अपने ट्विटर अकाउंट से तेजी बच्चन को याद करते हुए एक ट्वीट भी किया था।
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श्रीमती तेजी बच्चन बड़ी हनुमान भक्त थीं। अक्सर मंगल को दिल्ली के हनुमान मंदिर में मुझे ले जाकर मेरे लिए काँच की चूड़ियाँ खरीदतीं और हनुमान जी की कथा सुनातीं। उनसे ही मैंने हनुमान चालीसा के कई छंद सीखे। आज वह नहीं रहीं मगर उनकी भक्ति का प्रतीक ह्रदय में बसा है।1/2#HanumanJayanti
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) April 8, 2020
2020 में सिलसिलेवार तरीके के किए गए ट्वीट्स को प्रियंका गांधी का तरीका माना गया था कि वो बच्चन परिवार से अपने रिश्तों में सुधार लाने की कोशिश कर रही हैं।
हरिवंशराय बच्चन जी जिन्हें हम अंकल बच्चन के नाम से जानते थे, इलाहाबाद के एक महान पुत्र थे। एक वक्त था जब मेरे पिता की मृत्यु के बाद बच्चन जी की रचनाओं को मैं देर-देर तक पढ़ती थी। उनके शब्दों से मेरे मन को शांति मिलती थी, इसके लिए मैं उनके प्रति आजीवन आभारी रहूँगी। pic.twitter.com/eOIgaF0Z4J
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) November 27, 2019
इंदिरा और तेजी बच्चन की दोस्ती काफी लंबी चली थी और पर उनकी दोस्ती में दरार भी एक चुनावी फैसले को लेकर आई थी।
शादी से पहले तेजी बच्चन के घर रही थीं सोनिया गांधी
जिस वक्त राजीव गांधी की शादी को लेकर इतने विवाद चल रहे थे उस वक्त 1967 में जब राजीव गांधी को वापस भारत बुलवाया गया था तब उन्होंने एक साल बाद सोनिया गांधी को भी भारत बुलवा लिया था। तब तक ये तय हो चुका था कि सोनिया गांधी ही राजीव की पत्नी बनेंगी।
पर भारत आकर सोनिया आखिर कहां रुकती और इसलिए तेजी बच्चन ने अपने घर के दरवाज़े खोल दिए। उस समय तक बच्चन परिवार और गांधी परिवार की दोस्ती बहुत गहरी हो गई थी।
हरिवंश राय बच्चन ने राजीव और सोनिया की शादी में पिता की भूमिका निभाई थी। दोनों की शादी 25 फरवरी 1968 में हो गई और रस्मों के हिसाब से सोनिया का मायका बच्चन परिवार का घर हो गया।
तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी की दोस्ती में फूट
अब बात करते हैं उस पहली दरार की जिसकी वजह से तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी की इतनी गहरी दोस्ती में फूट पड़ गई थी।
ये दौर था 1980 का जब इंदिरा गांधी ने तेजी बच्चन की जगह नरगिस को राज्यसभा का टिकट दे दिया था। तेजी बच्चन इस बात से बेहद नाराज़ हो गई थीं और इनके बीच कहा सुनी भी हुई थी। इस बात का खुलासा किया था मेनका गांधी की पत्रिका सूर्या ने। मेनका काफी समय तक इस पत्रिका की एडिटर रही थीं।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ट नेता और तत्कालीन कांग्रेस सेक्रेटरी एम.एल.फोटेदार ने 2015 में आई अपनी किताब में लिखा था कि तेजी बच्चन और इंदिरा गांधी के रिश्ते इसके बाद काफी खराब होते चले गए यहां तक कि 1984 में अपनी मौत से कुछ दिन पहले इंदिरा गांधी ने राजीव गांधी को ये हिदायत दी थी कि तेजी बच्चन के बेटे को कभी राजनीति में मत लेकर आना। फोटेदार के मुताबिक उस वक्त राजीव गांधी अपनी मां की बात सुनकर चौंक गए थे।
राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन के रिश्ते
राजीव गांधी और अमिताभ दोनों ही बहुत करीब हुआ करते थे। ये दोनों ही बचपन से साथ थे और एक लंबा वक्त दोनों ने साथ बिताया था। राजीव गांधी ही नहीं अमिताभ बच्चन सोनिया गांधी और उनके बच्चों के भी करीबी हुआ करते थे। इतने करीबी कि राहुल और प्रियंका उन्हें मामू कहते थे।
राजीव गांधी और बिग-बी के रिश्ते इतने नजदीकी थे कि दोनों एक दूसरे की बात कभी नहीं टालते थे। यहां तक कि रशीद किदवई ने अपनी किताब 'Neta–Abhineta: Bollywood Star Power in Indian Politics' में साफ लिखा है कि अमिताभ और राजीव गांधी की नजदीकियां इतनी थीं कि कई बार सरकार के कुछ अहम फैसले भी अमिताभ बच्चन से मशवरे के बाद लिए जाते थे।
बिग बी की पहले राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन राजीव गांधी ने इंदिरा गांधी की मौत के बाद अमिताभ बच्चन को राजनीति में आने को कहा।
8वें लोकसभा चुनाव में एच.एन.बहुगुणा जैसे कद्दावर नेता के खिलाफ मोर्चा संभाला। हज़ारों लोग अमिताभ के पीछे हो लिए और अमिताभ को 68.2% वोट मिले। अमिताभ की फैन फॉलोइंग काफी ज्यादा थी और इसलिए ही वो इतने बड़े नेता को हरा पाए।
हालांकि, अमिताभ पर इमरजेंसी के वक्त शांत रहने का इल्जाम लगा था और किशोर कुमार पर जब दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो ने बैन लगाया था तब भी अमिताभ को लोगों का कटाक्ष सहना पड़ा था, लेकिन उस वक्त अमिताभ राजीव के साथ थे।
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राजनीति में अमिताभ और गांधी बच्चन परिवार का अलगाव
एम.एल. फोटेदार के अनुसार अमिताभ बच्चन का छोटा, लेकिन प्रभावशाली राजनीतिक करियर रहा। 1985 से 1987 तक अमिताभ बच्चन कई अहम फैसलों में शामिल रहते थे और कई नेता उनकी इस बात से परेशान थे। फोटेदार की किताब 'The Chinar Leaves: A Political Memoir' के अनुसार अमिताभ की शिकायतों को लेकर राजीव गांधी से ज्यादा बात नहीं की जाती थी।
इसी के साथ, 1986-1987 के दौरान बोफोर्स स्कैम ने कांग्रेस की नींव हिला दी और इसमें अमिताभ का भी नाम घसीटा गया। अमिताभ ने इसके लिए लीगल बैटल लड़ा और उन्हें जीत भी हासिल हुई, लेकिन इसके कारण राजीव गांधी से रिश्ते खराब हो गए।
फोटेदार की किताब कहती है कि अमिताभ की फंक्शनिंग और स्कैम आदि के चलते अमिताभ का राजनीतिक करियर समाप्त हो गया।
अमिताभ बच्चन के इस्तीफे की बात कहते हुए उन्होंने लिखा, 'मुझे वो दिन बहुत अच्छी तरह से याद है। अमिताभ राजीव जी से मिलने आए थे और करीब 2.45 पर उनकी बातें शुरू हुई थीं। सफेद कुर्ता-पैजामा पहन अमिताभ काफी अच्छे लग रहे थे। 7 रेसकोर्स रोड (प्रधानमंत्री का घर) में जब ये लोग बैठे तो राजीवजी ने कहा, 'फोटेदार जी चाहते हैं कि आप इस्तीफा दे दें।', मैं स्तब्ध था क्योंकि इस बारे में दोनों से ही मेरी कोई बात नहीं हुई थी, लेकिन ऐसे में अमिताभ ने जवाब दिया कि अगर वो चाहते हैं तो मैं इस्तीफा दे दूंगा। उसी वक्त स्पीकर को इस्तीफा लिखा गया।'
अमिताभ ने बोफोर्स स्कैम के लिए जो लीगल बैटल लड़ा था उसमें स्वीडिश पुलिस चीफ की गवाही के बाद उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया गया और अमिताभ ने राजनीति की तरफ दोबारा मुड़कर नहीं देखा।
हालांकि, जब बच्चन परिवार के घर आर्थिक तंगी ने दस्तक दी तब समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह ने उनकी मदद की और यही कारण है कि जया बच्चन अब समाजवादी पार्टी की नेता हैं।
जो दोस्ती राजनीति से परे शुरू हुई थी वो राजनीति के साथ टूट गई। कुछ इस तरह से गांधी और बच्चन परिवार एक दूसरे से अलग हो गए। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।
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