5 साल से बड़े बच्चे को बनाना है समझदार, तो खुद न करें ये 3 गलतियां.. वरना उल्टा पड़ सकता है असर

हर माता-पिता अपने बच्चे को समझदार बनाना चाहते हैं। 5 साल से अधिक उम्र होने के बाद मस्तिष्क और सीखने के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान, बतौर पेरेंट्स आपकी भूमिका अहम होती है, लेकिन अनजाने में की गई कुछ गलतियां बच्चे के आत्मविश्वास और रचनात्मकता को नुकसान पहुंचा सकती हैं। अगर आप बच्चे को आत्मनिर्भर और समझदार बनाना चाहती हैं, तो इन 3 गलतियों को करने से आपको बचना होगा।
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हर माता-पिता की यही ख्वाहिश होती है कि उनका बच्चा पढ़ाई के साथ-साथ जीवन के हर क्षेत्र में समझदार, बुद्धिमान और सफल बने। साइकोलॉजिस्ट के मुताबिक, 5 साल की उम्र के बाद बच्चे का मस्तिष्क तेजी से विकसित होता है और वे दुनिया को समझना शुरू करते हैं। यह उम्र उनकी सीखने की क्षमता, तर्कशक्ति और सामाजिक कौशल को आकार देने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। इस समय माता-पिता की भूमिका सबसे अहम होती है, क्योंकि उनका हर व्यवहार और हर शब्द बच्चे के विकास पर गहरा प्रभाव डालता है। हालांकि, बच्चे को समझदार बनाने की चाह में, अनजाने में ही माता-पिता कुछ ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जिनका उल्टा असर हो जाता है। ये गलतियां बच्चे के आत्मविश्वास को कम कर देती हैं। उनकी रचनात्मकता को दबा सकती हैं या उन्हें स्वतंत्र रूप से सोचने से रोक सकती हैं। अगर आप चाहती हैं कि आपका 5 साल से अधिक उम्र का बच्चा वास्तव में समझदार और आत्मनिर्भर बने, तो आपको इन 3 गलतियों को करने से बचने की जरूरत है।

माता-पिता की ये 3 गलतियां छोटे बच्चे के लिए बन सकती है रुकावट

अगर आप चाहती हैं कि आपका 5 साल से बड़ा बच्चा वास्तव में समझदार और आत्मनिर्भर बने, तो इन गलतियों को करने से बचें। अपने बच्चे को समझदार और सफल बनाने के लिए, आपको खुद अपने व्यवहार और परवरिश के तरीके पर ध्यान देना होगा। इन गलतियों से बचकर आप अपने बच्चे को एक मजबूत नींव प्रदान करेंगी, जिससे वह आत्मविश्वास के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना कर पाएगा। आगे आप गलतियों के बारे में विस्तार से जान सकती हैं।

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हर बात पर 'न' कहना या अति-नियंत्रण करना

समझदार बनने के लिए बच्चों को स्वतंत्रता और प्रयोग करने की अनुमति देना जरूरी है। कई माता-पिता बच्चे की हर बात पर 'नहीं' कहते हैं। उन्हें हर चीज में रोकते-टोकते हैं या हर कदम पर अत्यधिक नियंत्रण रखते हैं। आपके द्वारा लगाई गई पाबंदियां जैसे- 'इसे मत छूओ', 'वहां मत जाओ', 'तुम यह नहीं कर सकते', आदि बच्चे के दिमाग पर असर डालती है। इससे बच्चे का आत्मविश्वास कम होता है। वे नए अनुभवों से डरने लगते हैं और जोखिम लेने से कतराते हैं। उनकी रचनात्मकता दब जाती है और वे खुद से निर्णय लेना नहीं सीख पाते। वे सोचते हैं कि वे सक्षम नहीं हैं, और हर काम के लिए माता-पिता पर निर्भर हो जाते हैं। बच्चों को सुरक्षित सीमा के भीतर स्वतंत्रता दें। उन्हें गलतियां करने दें (जहाँ वे सुरक्षित हों), ताकि वे उनसे सीख सकें। सवाल पूछने और खुद से समाधान खोजने के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें 'नहीं' कहने के बजाय 'यह ऐसे क्यों नहीं कर सकते?' या 'चलो दूसरा तरीका सोचते हैं' जैसे विकल्प दें।

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गलतियों पर अत्यधिक डांटना या शर्मिंदा करना

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गलतियों से सीखना स्वाभाविक है और यह विकास का एक हिस्सा है। जब बच्चा कोई गलती करता है, तो माता-पिता उसे बहुत ज़्यादा डांटते हैं, उसकी आलोचना करते हैं, या उसे दूसरों के सामने शर्मिंदा करते हैं। जैसे- 'तुम हमेशा यही गलती करते हो', 'तुम कितने बेवकूफ हो', 'देखो तुमने क्या कर दिया!' आदि बोलकर उन्हें शर्मिंदा करने से आपको बचना चाहिए। इससे बच्चा डरपोक और आत्म-संदेही बन जाता है। वह गलतियां करने से डरता है और इसलिए नई चीजें सीखने से भी कतराता है। वह अपनी गलतियों को छिपाने लगता है। बजाय इसके कि वह उनसे सीखे। उसका सीखने का उत्साह खत्म हो जाता है। गलतियों को सीखने के अवसर के रूप में देखें। बच्चे को डांटने के बजाय, उसे शांत होकर समझाएं कि क्या गलत हुआ और अगली बार उसे कैसे सुधारा जा सकता है। उसे बताएं कि गलतियां होना सामान्य है और उनसे डरने की जरूरत नहीं है, बल्कि सीखना जरूरी है। सकारात्मक प्रतिक्रिया दें और उसके प्रयासों की सराहना करें।

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बच्चे की हर इच्छा पूरी करना या अत्यधिक लाड़-प्यार करना

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बच्चे को हर चीज तुरंत दे देना उन्हें जिद्दी और अव्यवहारिक बना सकता है। कुछ माता-पिता बच्चे की हर छोटी-बड़ी इच्छा को तुरंत पूरा कर देते हैं। जैसे- उन्हें कभी 'ना' नहीं कहते, और उन्हें किसी भी तरह की निराशा या कठिनाई का सामना नहीं करने देते। इससे बच्चा जिद्दी, स्वार्थी और असंवेदनशील हो सकता है। ऐसे में, वह इंतजार करना या प्रयास करना नहीं सीख पाता है। उसे लगता है कि उसे हर चीज आसानी से मिल जाएगी। वह समस्याओं का सामना करना या उनका समाधान खोजना नहीं सीखता, जिससे भविष्य में उसे वास्तविक दुनिया में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बच्चे को हर चीज तुरंत न दें। उन्हें बताएं कि कुछ चीजों के लिए इंतजार करना पड़ता है या प्रयास करना पड़ता है। उन्हें अपनी उम्र के अनुसार जिम्मेदारियां दें, जैसे अपना कमरा साफ करना या खिलौने समेटना। उन्हें सिखाएं कि जीवन में हर इच्छा पूरी नहीं होती और निराशाओं को कैसे संभालना है। इससे वे अधिक समझदार, धैर्यवान और व्यावहारिक बनेंगे।

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Image credit- Freepik

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