प्रॉपर्टी विवाद में अक्सर टूट जाते हैं रिश्ते, झगड़े से बचने के लिए आपको पता होने चाहिए ये 5 कानून

आजकल भारत में कई परिवारों के बीच प्रॉपर्टी को लेकर झगड़े चल रहे हैं। इन झगड़ों की वजह से पारिवारिक रिश्तों में दरार आ जाती है और लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं। ऐसे में, अगर आप प्रॉपर्टी से जुड़े विवादों से बचना चाहते हैं, तो आपको भारत में संपत्ति से जुड़े 5 जरूरी कानूनों के बारे में पता होना बेहद जरूरी है।    
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भारत में एक छोटा-सा जमीन का टुकड़ा या पुश्तैनी घर भी कई बार पारिवारिक झगड़े का कारण बन जाता है। प्रॉपर्टी डिस्प्यूट होना यहाँ आम बात हो चुकी है, जिसकी वजह से रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है। कई बार तो परिवार के लोग ही प्रॉपर्टी के विवाद की वजह से एक-दूसरे से बात नहीं करते। वहीं, कुछ संपत्ति विवाद के मामले कोर्ट तक पहुंच जाते हैं और सालों तक वहां चलते रहते हैं।

दुख की बात यह है कि संपत्ति विवादों को लेकर किए जाने वाले झगड़े मानसिक तौर पर बहुत बुरा असर डालते हैं। लेकिन, अगर आपके परिवार में किसी को कानून की समझ है, तो ऐसे विवादों से बचा जा सकता है।

आज हम आपको इस आर्टिकल में 5 जरूरी संपत्ति कानूनों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपको पारिवारिक झगड़ों से बचा सकते हैं।

भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925(Indian Succession Act 1925)

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यह कानून भारत के सभी ईसाईयों, पारसियों और यहूदियों समुदायों के लिए लागू होता है। इसका मकसद यह है कि अगर किसी इंसान की मृत्यु हो जाती है और उसने वसीयत नहीं बनाई है, तो उसकी संपत्ति उसके कानूनी वारिसों के बीच कैसे बांटी जाएगी। इस कानून के तहत, संपत्ति का बँटवारा बराबरी से किया जाता है और यह सुनिश्चित किया जाता है कि सबको सही हिस्सा मिले। अगर किसी इंसान की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति को उसकी पत्नी और बच्चों के बीच बराबरी से बांटा जाता है।

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संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम 1882(Transferof Property Act 1882)

इस कानून के तहत यह बताया जाता है कि भारत में जमीन-जायदाद जैसी संपत्तियों को कानूनी तरीकों से कैसे बेचा, गिफ्ट में दिया, किराए पर दिया या गिरवी रखा जा सकता है। इसका मकसद यह है कि प्रॉपर्टी से जुड़े कोई भी लेन-देन को कानून के दायरे में रखा जाए। यह अधिनियम सुनिश्चित करता है कि प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में पारदर्शिता रहे, ताकि बाद में कोई विवाद या धोखाधड़ी न हो।

पंजीकरण अधिनियम 1908(Registration Act 1908)

जब आप कोई जमीन खरीदते या बेचते हैं, तो उसे रजिस्टर करवाना जरूरी होता है। इस अधिनियम के तहत अगर आपने कोई प्रॉपर्टी खरीदी है, तो उसकी सेल डीड को सरकारी दफ्तर में रजिस्ट्री करवाना जरूरी है। दरअसल, रजिस्ट्रेशन यह साबित करता है कि संपत्ति का असली मालिक कौन है और भविष्य में किसी विवाद या धोखाधड़ी से बचा जा सकता है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956(2005 में संशोधित)

इस अधिनियम को 2005 में बदला गया था और इसमें बेटियों को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हक दिया गया था। यह कानून हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के लोगों के बीच संपत्ति के बंटवारे और उत्तराधिकार के नियम तय करता है। अगर कोई पुरुष बिना वसीयत के मर जाता है, तो उसकी संपत्ति को उसके कानूनी वारिसों के बीच बराबर से बांट दिया जाता है। इसमें, पत्नी, बेटे-बेटियां और मां शामिल होते हैं। यह अधिनियम परिवार में प्रॉपर्टी के बँटवारे में पारदर्शिता रखने और बराबरी का हिस्सा देने में मदद करता है।

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पारिवारिक समझौता (Family Settlement)

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कई बार परिवारों में प्रॉपर्टी को लेकर गलतफहमी और विवाद हो जाते हैं। इससे बचने के लिए समझदारी भरा क़दम उठाना चाहिए और पारिवारिक समझौता एक सही विकल्प है। पारिवारिक समझौते का मतलब है कि परिवार के सदस्य आपस में बैठकर बातचीत से यह तय कर लें कि किसको कितनी और कौन-सी प्रॉपर्टी मिलेगी। यह समझौता बातों से या लिखित दोनों तरीक़ों से किया जा सकता है। अगर यह समझौता बिना किसी दबाव के और ईमानदारी से किया जाता है, तो इसे अदालत में भी वैध माना जाता है।

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Image Credit- freepik
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