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suspense story of the last auto ride of inspector nisha rao fiction

निशा के जीवन की वो रात इतनी खौफनाक निकलेगी उसे पता नहीं था, ऑटो में बैठते ही ड्राइवर ने...

निशा को थोड़ा सा रिलैक्स लगा कि कम से कम ऑटो तो मिला। सड़क पूरी तरह से भरी हुई थी और ऑटो बामुश्किल आगे बढ़ पा रहा था, लेकिन इतनी सुनसान सड़क पर ऑटो आया कहां से? निशा जो थोड़ी रिलैक्स हो गई थी एकदम से चौकन्ना हो गई।  
Editorial
Updated:- 2025-12-05, 12:15 IST

इंस्पेक्टर निशा राओ आज अपने घर पर तैयार हुई तो उसके मन में कुछ और ही चल रहा था। निशा पिछले कई दिनों से एक गुमशुदगी के केस में उलझी हुई है, लेकिन जिस तरह के हालात चल रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि केस में जो दिख रहा है वो असल में है नहीं। दरअसल, लगभग 10 दिन पहले बेंगलुरु में एक बड़ी फाइनेंस कंसल्टेंसी में काम करने वाले सीनियर एनालिस्ट आनंद कुलकर्णी गायब हो गए थे। आनंद गायब होने से कुछ दिन पहले बहुत ही अजीब व्यवहार करने लगा था। आनंद के घर वालों को ज्यादा कुछ पता नहीं था। रिपोर्ट लिखवाते वक्त उसके पिता और बहन पुलिस स्टेशन में रो रहे थे, लेकिन एक बात उन्हें भी अजीब लग रही थी। आनंद गायब होने के कुछ दिन पहले से ही घंटों फोन पर किसी से बात किया करता था।

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शाम हो चुकी थी और बेंगलुरु की सड़कें बारिश से भीगने लगीं थीं। पर निशा को कुछ तो करना ही था, उसे सब गलत लग रहा था। उसे लग रहा था कि अगर उसने अब आनंद को नहीं ढूंढा तो शायद नहीं ढूंढ पाएगी। निशा ने अपना यूनिफॉर्म नहीं पहना और सिविल कपड़ों के साथ एक ब्लैक जैकेट पहन लिया। अपने साथ एक छाता रखा और उसके बाद निकल पड़ी। बारिश का मौसम था और इतनी तूफानी बारिश के बारे में उसने सोचा नहीं था। आज सकड़ें पानी से भरने लगी थीं।

उसने घर में ताला लगाया और फोन की ओर देखा, मां ने सुबह से तीन बार कॉल किया था लेकिन निशा के पास उठाने और बात करने का वक्त नहीं था। वो जैसे ही अपनी गाड़ी के पास जाने लगी उसने देखा कि गाड़ी का टायर पंचर था, इतनी बारिश में कोई इसे ठीक करने भी नहीं आएगा। निशा ने अपने घर के बाहर इंतज़ार किया और आखिर एक ऑटो वाला उसे मिल ही गया। उसने आनंद के घर का पता बताया और निकल पड़ी।

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रास्ते में बारिश और तेज हो गई। ऑटो वाले ने कहा, "मैडम मैं और आगे नहीं जा पाऊंगा, आप चाहो तो यहां उतर जाओ,' निशा ने ऑटो वाले को पुलिस आई डी दिखाया और फिर वहीं बैठी रही। किसी तरह से ऑटो वाले ने सही जगह पहुंचा तो दिया, लेकिन उसने कह दिया कि वो इंतजार नहीं करेगा और वो घर जा रहा है। निशा के सिर पर इस केस को पूरा करने का जुनून सवार था। उसे ऊपर से ऑर्डर भी आ चुके थे कि इस केस पर ज्यादा ध्यान ना दे जिनकी वजह से उसे समझ आ गया था कि कुछ गड़बड़ है।

निशा ने आनंद के घर का दरवाजा खटखटाया। अंदर से आनंद की बहन बाहर आई, आंखें शायद रो-रोकर सूझ गई थीं। निशा ने अंदर जाते ही आनंद की बहन अंजली से कहा कि उसे आनंद का कमरा देखना है। अंजली थोड़ा परेशान थी, लेकिन उसने अनुमति दे दी। विभा सिविल ड्रेस में थी और हाई कमान से ऑर्डर भी आया था, इसलिए निशा को जल्दी ही कुछ करना था। वर्ना इस केस को बिना सॉल्व किए ही बंद कर दिया जाता।

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निशा एक बार फिर से आनंद के कमरे के अंदर गई। पहली बार में तो कुछ खास मिला नहीं था, लेकिन इस बार तो आलम कुछ और ही था। आनंद का कमरा ऐसा था मानो किसी ने प्रोफेशनली सफाई करवाई हो। निशा ने अंजली पर गुस्सा करते हुए कहा, 'आपसे कहा था इस कमरे को ऐसे ही रखना, फिर आपने क्यों इसे छेड़ा, इतना साफ कैसे?' अंजली खुद सक्ते में थी, 'दरअसल, ये कमरा तो पिछले 10 दिन से बंद ही है, ये ऐसे कैसे साफ हुआ नहीं पता, आपके सामने मैंने इसका ताला खोला...' अंजली ने कहा।

ये सुनकर निशा समझ गई कि मामला बहुत ही मुश्किल है। साफ किए गए कमरे में अब वो क्या ही ढूंढे। उसने अंजली से पूछा कि आनंद कमरे के अलावा घर में और कहां सबसे ज्यादा समय बिताता था? अंजली थोड़ा सकपकाई और फिर उसने कहा, 'आनंद ने पास ही के घर में एक कमरा किराए पर ले रखा था, इसके बारे में मेरे अलावा किसी को नहीं पता था। जब आनंद गायब हुआ मैं वहां गई भी थी, लेकिन वहां कुछ भी नहीं था।'

निशा ने अंजली का साथ लिया और फौरन उस जगह पहुंची। मकान मालिक ने दरवाजा खोलकर चिल्लाया तो निशा ने पुलिस का बैज दिखाकर मकान मालिक को साइड में किया और अंदर गई। वहां सब कुछ ऐसा ही था मानो आनंद अभी ही वहां से निकला है। निशा ने फिर अंजली से पूछा, "इसके बारे में किसको पता है?' अंजली ने कहा किसी को नहीं।

निशा ने ढूंढना शुरू किया और अंजली से भी कहा कि अगर उसे कुछ भी अजीब दिखे, तो वो बताए। दोनों ने लगभग 10 मिनट खोजा होगा कि निशा ने अलमारी के नीचे के निशान देखे, ऐसा लग रहा था जैसे अलमारी को थोड़ा खिसकाया गया है। निशा ने भी अलमारी को थोड़ा सा खिसकाया और देखा कि पीछे एक लैपटॉप बैग छुपाया गया था। उस बैग में से लैपटॉप निकाला तो उसके कीपैड पर एक पर्ची चिपकी हुई थी जिसमें एक नंबर लिखा हुआ था। निशा ने लैपटॉप ऑन करने की कोशिश की, लेकिन वो पासवर्ड प्रोटेक्टेड था। लैपटॉप ऑन होने और गलत पासवर्ड डालने पर उसमें से एक आवाज आने लगी, जैसे लैपटॉप कोई सिग्नल भेज रहा हो।

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उसे कुछ समझ नहीं आया, तो उसने उसी नंबर को डायल कर दिया। दो रिंग के बाद किसी ने फोन उठाया, उसने बोला ही था, 'हैलो, मैं इंस्पेक्टर निशा...' कि सामने वाले ने फोन काट दिया। निशा को समझ आ गया था कि कुछ होने वाला है। उसने अगला कॉल पुलिस स्टेशन में किया और बैकअप मंगवाया, लेकिन बारिश इतनी हो रही थी कि आसानी से बैकअप आ नहीं सकता था, अंजली और निशा दोनों को अब वापस अपने-अपने घर जाना था।

अंजली को तो किसी तरह से निशा ने अपने घर तक छोड़ दिया, लेकिन इतनी मूसलाधार बारिश में जहां सड़कों में पानी भर गया है और आगे का रास्ता तक नहीं दिख रहा, वहां ऑटो ढूंढना बहुत मुश्किल था। वो अपने फोन से ऑटो बुक करने लगी, लेकिन उसे भी पता था कि इस वक्त कुछ नहीं मिलेगा। इसके बाद उसने थोड़ी दूर तक पैदल चलने के बारे में सोचा। बारिश इतनी ज्यादा थी कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। उसके हाथ में अब वही लैपटॉप बैग था जिसे वो पुलिस स्टेशन ले जाना चाहती थी।

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आगे थोड़ी दूर पर चलते-चलते उसका पैर किसी पत्थर से टकरा गया। पानी ज्यादा भरा होने के कारण उसे वो पत्थर दिखा नहीं। लंगड़ाते हुए वो पास के पेड़ के नीचे जाकर खड़ी हो गई। उसने लैपटॉप वाले बैग को कसकर पकड़ा हुआ था कि किसी तरह से वो भीग ना जाए। तभी उसे दूर से एक ऑटो आता दिखाई दिया। ऑटो उसी तरफ आ रहा था, निशा ने उसे हाथ देकर रोका। ऑटो वाले ने पहले तो हाथ दिखाकर मना किया, लेकिन फिर भी उसके पास आकर खड़ा हो गया और उसे बैठने को कहा।

निशा को थोड़ा सा रिलैक्स लगा कि कम से कम ऑटो तो मिला। सड़क पूरी तरह से भरी हुई थी और ऑटो बामुश्किल आगे बढ़ पा रहा था, लेकिन इतनी सुनसान सड़क पर ऑटो आया कहां से? निशा जो थोड़ी रिलैक्स हो गई थी एकदम से चौकन्ना हो गई। निशा ने उस ऑटो वाले की ओर देखने की कोशिश की और बैकमिरर में खूंखार आंखें दिखीं। निशा को समझ आ गया कि ये ऑटो इतनी रात में उसका काम तमाम करने ही आया है।

निशा को अंजली की बात याद आई, सबसे पहली बार पूछ-ताछ में अंजली ने कहा था कि गायब होने के कुछ दिन पहले आनंद बहुत अजीब हो गया था। उसने कहा था कि उसने ऐसे सवाल पूछ लिए थे जो नहीं पूछने चाहिए थे।

निशा ने ऑटो से बाहर छलांग लगाने की कोशिश की, लेकिन ऑटो ड्राइवर ने उसी समय उसकी आंखों में कुछ डाल दिया। पानी की वजह से ऑटो तेज तो नहीं चल रहा था, लेकिन आंखों में पेपर स्प्रे जैसा कुछ चले जाने के कारण निशा ऑटो से बाहर नहीं जा पा रही थी।

"तूने वो सवाल पूछ लिए जो नहीं पूछने थे, अपनी नाक अपने चेहरे पर ही रखती, किसी और के मामले में क्यों घुसाई? आनंद ने भी यही किया था, देखा उसका क्या हाल हुआ?" ऑटो वाला ऑटो चलाए जा रहा था और निशा खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी। 'आज तुम्हारा आखिरी दिन है...' ऑटो वाले ने कहा ही था कि अचानक निशा ने खुद को संभालकर ऑटो वाले के हाथ में चाकू मार दिया। निशा भले ही अपनी सर्विस रिवॉल्वर नहीं ले जा सके, लेकिन निशा हमेशा अपने साथ चाकू रखती थी। जब ऑटो वाले का ध्यान नहीं था, तब निशा ने अपने बैग से चाकू निकालकर उसे मार दिया।

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ऑटो एकदम से डिस्बैलेंस होकर लड़खड़ाया और फिर पलट गया। निशा और उस आदमी दोनों को चोट आई थी। अभी भी निशा की आंखों से धुंधला ही दिख रहा था। निशा बाहर निकली और वो आदमी भी बाहर आया। उस आदमी ने निशा पर हावी होने की कोशिश की और इसी उधेड़बुन में वो लैपटॉप बैग निशा के हाथ से गिर गया। पानी में कहीं खो जाने के कारण वो आदमी भी उसे ढूंढने की कोशिश कर रहा था। इसका फायदा उठाकर निशा ने उसपर पीछे से वार किया। पहले पीठ पर चाकू की खरोंच और फिर पैर अड़ाकर गिरा लेना। वो आदमी संभल पाता उससे पहले ही निशा उसपर हावी हो चुकी थी।

निशा ने किसी तरह उस आदमी को पकड़ा और तब तक पीछे से पुलिस साइरन की आवाज आने लगी। निशा ने जो बैकअप के लिए कॉल किया था, वो आ गया था। निशा अपनी जगह पर नहीं थी, तो उन लोगों ने उसका फोन ट्रैक करना शुरू कर दिया था।

तीन दिन बाद उस इंसान का कच्चा-चिट्ठा निकाला गया। निशा ने जो लैपटॉप रिकवर किया था उसकी रिपोर्ट भी साइबर सेल से आ गई थी। दरअसल, आनंद की फर्म फाइनेंशियल सिक्योरिटी पर काम करती थी और वहां एक बहुत बड़े स्कैम का पता आनंद ने लगा लिया था। उसे लॉग्स में कई करोड़ की धांधली के बारे में पता चल गया था। इसमें बेंगलुरु के एमएलए भी शामिल थे। इतना हाई-प्रोफाइल केस था। आनंद ने अपने बॉस से इसका जिक्र किया था और इसका सारा लॉग अपने लैपटॉप में रखा था।

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आनंद को पता नहीं था कि बॉस भी इसमें शामिल था। आनंद की बात एमएलए तक पहुंच गई थी। जिस दिन आनंद ऑफिस से गायब हुआ था, उसी दिन उसे मारकर चामुंडी हिल्स के पास दफना दिया गया था। उन लोगों ने आनंद का कमरा पूरी तरह से छान लिया था, लेकिन उन्हें कोई सबूत नहीं मिले थे। हालांकि, आनंद उनकी सोच से ज्यादा अकलमंद था जिसने पहले ही एक किराए के घर में सारे सबूत रख दिए थे।

निशा केस की रिपोर्ट शेयर करने के लिए आखिरी बार अंजली से मिली थी। उसने अंजली को बताया था कि कैसे आनंद ने जाते-जाते भी अपने देश के लिए बड़ा काम किया था। करोड़ों का स्कैम पकड़ा था।

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केस को खत्म करने के बाद ऑर्डर ना मानने के लिए निशा का ट्रांसफर भी हो गया था। निशा एक बार फिर अपने बैग्स पैक करके आगे चल दी थी। एक बार फिर फोन की घंटी बजी थी। बस स्टैंड की ओर जाते-जाते, निशा ने अपनी मां का फोन उठा ही लिया था। निशा चल दी थी अपनी नई मंजिल की ओर, वो खुश थी कि कम से कम अब आनंद को इंसाफ दिलाकर ही जा रही है।

यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।

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