अक्टूबर का महीना होने की वजह से मौसम में ठंडक थी। ठंडी सी हवा चल रही थी, पर दिल्ली की उस सड़कों पर धूल और धुआं...सीने पर चिपक रहा था। सुबह के 6 ही बज रहे थे, ट्रैफिक का शोर, हॉर्न की आवाजे और सड़क किनारे जलते कचरे की बदबू बड़ी बड़ी बिल्डिंगों में रहने वाले लोगों को आम लगने लगी थी, सब कुछ एकदम आम था… पर आज का दिन आम नहीं था। ऐसा इसलिए क्योंकि दिवाली को बस 2 दिन बचे थे। हर किसी की दिवाली की तैयारियां जोरो शोरों पर थी। हर दुकान रोशनी से जगमगा रही थी। बच्चे नए कपड़ों में इतराते हुए पटाखों की थैलियान हाथ में लिए हंसते हुए इधर-उधर दौड़ रहे थे। कहीं ‘फूलझड़ी’ की चमक थी, तो कहीं ‘चक्री’ की आवाज़ गूंज रही थी।
बाजारों में माता पिता बच्चों के साथ शॉपिंग करने निकले थे। एक से एक नई नई चीजें बच्चों के लिए खरीदी जा रही थी लेकिन उसी भीड़ के एक कोने में, फुटपाथ पर बैठा था 12 साल का सोनू, सबको टुक टुक निहार रहा था।
उसकी मुट्ठी बंद थी और हाथों में पेन का गुच्छा पकड़ा हुआ था। दूसरी तरफ एक हाथ में पुराने थैले में 10-10 रुपये के रंग-बिरंगे पेन थे। बच्चा मुस्कुराते हुए सबकी तरफ देख रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे बच्चों की खुशी देख कर उसके मन में भी खुशियों की लहर दौड़ रही है। तभी साइड ट्रैफिक कर्मचारी की आवाज आई,
A यहां क्या बैठा है, यहां पेन नहीं बेचना इधर से जा, सड़क पर पेन बेचने की कोशिश की तो तेरे सारे पेन छीन लूंगा।
सोनू ने कहा.. अरे भैया 2.. पेन बेचने दो न .. क्या चला जाएगा आपका।
ट्रैफिक पुलिस ने कहा -नहीं किसी गाड़ी से टक्कर लग गई न, सारी अकाल ठिकाने आ जाएगी। हट यहां से।
सोनू गुस्से में ट्रैफिक पुलिस को देखते हुए वहां से जाने लगा। तभी रेड लाइट हो गई। ट्रैफिक पुलिस वाला एक गाड़ी का चालान काटने निकल गया। सोनू ने देखा ट्रैफिक पुलिस का ध्यान नहीं है, वह फौरन गाड़ियों की खिड़कियों पर पेन बेचने के लिए पहुंच गया। किसी ने भी सोनू से पेन नहीं खरीदा था।
तभी ग्रीन लाइट हो गई और गाड़ियां चलने लगी। सोनू गाड़ियों की भीड़ में फंस गया था। फौरन बचते हुए वो एक दीवार की तरफ कोने में खड़ा हो गया।
सोनू पर ट्रैफिक पुलिस की नजर पड़ गई थी। वह गुस्से में उसको इशारा कर रहे थे, तू इधर आ फिर मैं बताता हूं।
फिर से रेड लाइट होते ही। ट्रैफिक पुलिस कर्मी गुस्से में उसके पास गया और हाथ पकड़ कर सड़क के किनारे लेकर आया।
ट्रैफिक पुलिस कर्मी का नाम राघव था, सोनू ने बोला, अरे राघव भैया मेरा तो ये रोज का काम है, आप क्यों इतना परेशान होते हो।
राघव ने कहा- बस बहुत हो गया, आज पूरे दिन तू मेरे सामने बैठा रहेगा और यहां से हिलेगा नहीं….
सोनू ने कहा- नहीं भैया, प्लीज ऐसे मत करो, देखो ने दिवाली आ रही है, प्लीज मुझे काम करने दो…
ट्रैफिक पुलिस कर्मी राघव बहुत गुस्से में था, उसने उसे अपने पास ही बिठाए रखा…
सोनू मन ही मन सोच रहा था.. अगर मैंने एक भी पैन नहीं बेचा… तो मां और बहन दिवाली पर क्या करेंगे. मेरी बहन तो फूलजड़ी भी नहीं जला पाएंगी। दुखी मन से बस सोनू गाड़ियों में बैठे बच्चों को देख रहा था..
सोनू की आंखों में नमी थी, पर चेहरा अब भी मुस्कराने की कोशिश कर रहा था। उसने नीचे देखा — धूल से सने अपने पैरों पर, जिनमें टूटी हुई चप्पलें थीं। उसे याद आया, पिछले साल की दिवाली पर भी उसने यही सोचकर काम किया था कि अगले साल बहन के लिए नई चप्पल खरीदेगा, पर इस साल भी वही टूटी चप्पलें उसके पैरों में थीं।
राघव अब भी अपनी कुर्सी पर बैठा, ट्रैफिक पर नजर रख रहा था। कभी-कभी सोनू की तरफ देख लेता, पर मन ही मन कुछ सोच भी रहा था। उसकी जेब में रखा मोबाइल बार-बार बज रहा था - शायद घर से कॉल थी। उसने फोन उठाया, उधर से किसी बच्चे की आवाज आई -पापा, कब आओगे? दिवाली की लाइट्स लगानी हैं।राघव ने हल्की मुस्कान दी- बस बेटा, थोड़ी देर में।
फोन रखते ही उसकी नजर फिर सोनू पर गई, जो अब भी चुपचाप बैठा था, हाथों में अपने पेन को ऐसे पकड़े जैसे वो ही उसका सब कुछ हो।
राघव कुछ देर तक उसे देखता रहा, फिर धीरे-धीरे उठकर उसके पास गया। बोला- सोनू इस बार दिवाली पर क्या प्लान है तेरा.. मेरे घर चलेगा…
सोनू ने कहा- क्या भैया शाम के 6 बज गए हैं, पूरे दिन मैंने एक भी पेन नहीं बेचा.. दिवाली पर क्या प्लान होगा…
राघव ने मुस्कुराते हुए कहा.. अरे तो मेरे घर चल ना.. तुझे मजा आएगा.. मेरा बच्चा भी तेरी ही उम्र का है…
सोनू ने कहा- नहीं भैया… मैं नहीं जा सकता… राघव उसे बार-बार जिद्द कर रहा था.. लेकिन फिर भी सोनू उसकी बात नहीं मान रहा था.. राघव समझ नहीं पा रहा था कि इसे इतना अच्छा ऑफर दे रहा हूं. तो भी ये साथ चलने को तैयार नहीं…
धीरे-धीरे रात के 10 बज गए थे.. सोनू निराश शक्ल से बस सिर नीचे करके बैठा था.. अब जैसे उसके मन से सारी आस खत्म हो चुकी थी.. जब पूरा दिन बीत गया, तो अब क्या फायदा।
राघव की भी अब ड्यूटी खत्म हो गई थी.. उसने सोनू से कहा- बेच ले अपना पेन.. क्यों बैठा है.. मैं घर जा रहा हूं..
सोनू ने कहा- नहीं भैया…अब कुछ नहीं फायदा…ये बोतले हुए सोनू हाथ में पकड़े पैन को थैली में डालकर निकल गया…
राघव पीछे से आवाज लगा रहा था.. लेकिन सोनू ने उसकी तरफ एक बार भी नहीं देखा…
राघव को लगा कि सोनू उससे नाराज हो गया है.. इसलिए उसने तुरंत दुकान से चॉकलेट खरीदी और उसके पीछे-पीछे जाने लगा।
जैसे ही वह आगे बढ़ा… सोनू ऐसे-ऐसे रास्तों से होकर जा रहा था, जिसे उसने कभी देखा भी नहीं था.. गंदी बदबूदार नाली खुली हुई थी..
वो सोनू के पीछे-पीछे चुपचाप चलता जा रहा था, ताकि उसे दिखे नहीं।सोनू अपने छोटे से थैले को सीने से लगाए चल रहा था। उसकी चाल थकी हुई थी, पर आंखों में एक अजीब-सी जिम्मेदारी झलक रही थी।
करीब दस मिनट चलने के बाद वो एक पुराने, टूटी दीवारों वाले इलाके में पहुंचा। वहां कुछ झुग्गियां बनी हुई थीं — टिन की छत, प्लास्टिक के पर्दे, और सामने मिट्टी का आंगन।
पूरे रास्ते वह दुखी मन से था,, लेकिन जैसे ही घर के बाहर पहुंचा.. उसने अपने बाल ठीक किए, हाथ में पकड़ी थैली को एक ड्रम में डाला और भागते हुए अंदर पहुंचा।
उसे देखते ही घर के अंदर से एक बच्ची की आवाज आई.. भईया आज कितने पैसे मिले हैं..
सोनू ने मुस्कुराने की कोशिश की, लेकिन उसकी मुस्कान अधूरी रह गई।उसने झुककर अपनी छोटी बहन की तरफ बोला और कहा- बहन आज तो सारे पैन बिक गए हैं.. पैसे कल मिलेंगे, मैं कल तेरे लिए बहुत सारा सामान लेकर आऊंगा..
राघव बाहर से खड़ा होकर सब सुन रहा था.. उसकी आंखें आंसु से भर आई थी..
अंदर सोनू की बहन गुड़िया खुशी से उछल रही थी।सच भईया? कल हम भी नए कपड़े पहनेंगे?सोनू ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा, हां, बिल्कुल… और मिठाई भी लाएंगे। मां को लड्डू बहुत पसंद हैं न।
मां ने धीरे से कहा, बेटा, तू बहुत थक गया होगा… थोड़ा पानी पी ले।सोनू ने मुस्कुराकर कहा, नहीं मां, मैं ठीक हूं।फिर धीरे से गुड़िया के पास जाकर बोला, अब तू सो जा, कल सुबह जल्दी उठेंगे।
राघव के हाथ में चॉकलेट थी, उसने चॉकलेट उसी ड्रम में डाल दी, जिसमें उसने अपने पैन डाले थे और बिना कुछ बोले वहां से निकल गया..
अगले दिन फिर, सोनू पेन बेचने के लिए सड़क पर पहुंच गया था.. राघव भी वहीं था और सोनू को देख रहा था.. उसने सोनू को आज पेन बेचने से नहीं रोका..
सोनू उससे नाराज था और बात नहीं कर रहा था.. पूरे दिन बीत जाने के बाद वह सोनू के पास गया और बोला.. मुझसे नाराज है क्या… सोनू ने कहा.. अरे नहीं मैं नाराज नहीं हूं… बस थोड़ा काम कर रहा हूं न… सोनू ने मुस्कुराते हुए कहा..
राघव भी यह देखकर खुश था कि चलो कमसेकस सोनू नाराज नहीं है.. राघव ने फिर सोनू से कहा- अच्छा सुन आज मुझे जल्दी घर जाना है.. मैं दोपहर 3 बजे ही निकल जाउंगा.. सोनू ने कहा..ठीक है भैया..
छोटी दिवाली का दिन था.. और राघव घर के लिए जल्दी निकल गया था… सोनू ने आज जैसे तैसे काफी पेन खरीद लिए थे… वह आज खुशी-खुशी घर जा रहा था.. जेब में पैसे और हाथ में पेन थामे .. सोनू भागते हुए घर की तरफ जा रहा था… तभी उसने देखा.,. घर के बाहर किसी के जूते रखे हैं.. उसके घर में कोई आया था.. लेकिन कौन हो सकता है.. अंदर से थोड़ी आवाज भी आ रही थी… जैसे ही वह अंदर गया .. उसने देखा.. यह राघव था..
राघव अपने साथ बहुत सारे कपड़े, खिलौने और पटाखे लेकर आया था.. बहन और मां बहुत खुश थे.. राघव को देखते ही सोनू के आखों में आंसू भर आए.. वह रोते हुए जाकर राघव के गले लग गया और तेज-तेज रोने लगा…
भैया आप यहां क्यों आए हैं.. सोनू की मां ने कहा..बेटा ये हमे अपने घर लेने के लिए आए हैं.. कह रहे हैं, दिवाली हम उनके साथ मनाए… तभी पीछे से आवाज आई.. सोनू भैया.. ये राघव के बेटे रोहित की आवाज थी..
राघव अपने साथ बेटे को लेकर भी आया था.. रोहित ने कहा- भैया प्लीज मेरे साथ दिवाली पर पटाखे जलाओ न.. मेरा कोई दोस्त नहीं है.. आप मेरे दोस्त बन जाओ न…
ये सुनकर सोनू खुद को रोक नहीं पा रहा था.. उसने देखा की मां और बहन बहुत ज्यादा खुश हैं.. उसने राघव से कहा.. ठीक है भैया हम कल आएंगे आपके घर..
राघव ने कहा- मैं सुबह ही लेने आऊंगा, ठीक है.. तैयार रहना.. ये बोलते हुए वह निकल गया..
अगल दिन सुबह 10 बजते ही राघव अपने बेटे और पत्नी के साथ उन्हें लेने के लिए उनके घर पहुंच गया था.. इतना प्यार देखकर सोनू की मां के आंखों में भी आंसू आ गए थे.. इस बार की दिवाली पर ऐसा लग रहा था जैसे कोई लॉट्री लग गई है.. किसी ने पहली बार उन्हें इतनी इज्जत दी थी.. सोनू के परिवार की यह पहली दिवाली थी
सोनू की मां कांपते हाथों से राघव की पत्नी के पैरों की तरफ झुकीं, बहनजी, आप लोगों ने जो किया है, वो हम जिंदगी भर नहीं भूलेंगे।
राघव की पत्नी ने झट से उन्हें रोक लिया, अरे नहीं, ऐसा मत कहिए। आज हमारा भी सौभाग्य है कि हम आपके घर आए। दिवाली तो सबकी होती है - अमीरों की नहीं, दिल वालों की।
थोड़ी देर बाद सब राघव की गाड़ी में बैठे।गुड़िया खिड़की से बाहर देखते हुए खुश हो रही थी- उसने कभी इतने बड़े-बड़े घर, रंग-बिरंगे लाइट्स और साफ सड़कों को इतने पास से नहीं देखा था।राघव के बेटे ने गुड़िया से कहा, चलो, हम मिलकर दीए जलाएंगे, और तुम मेरे साथ मिठाई खाओगी!गुड़िया खिलखिलाकर हंस पड़ी - सच में? इतनी सारी मिठाई?
सोनू के पास धन नहीं था, लेकिन उसके भीतर मेहनत और सच्चाई थी। वहीं राघव के पास सब कुछ होते हुए भी दिल में इंसानियत थी। दोनों ने एक-दूसरे की जिंदगी में वो रोशनी जलाई, जो आज की दुनिया में शायद ही कोई किसी के लिए करता है.. इस बार दिवाली पर अगर सड़क पर इस बार दिवाली पर अगर सड़क पर आपको कोई सोनू जैसा बच्चा दिखे , जो छोटी-छोटी चीजें बेचकर अपनी दुनिया रोशन करने की कोशिश कर रहा हो , तो बस एक पल के लिए रुकिए। इस बार की दिवाली उसकी भी अच्छी होनी चाहिए..
बड़ी-बड़ी दुकानों से महंगे सामान खरीदने की बजाय इस बार छोटी-छोटी चीजें खरीदकर लोगों को खुश करें..
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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