मशहूर शायर मुनव्वर राना का एक चर्चित शेर है, "जब भी कश्ती मिरी सैलाब में आ जाती है, मां दुआ करती हुई ख़्वाब में आ जाती है" कितना अच्छा शेर है न! यह दिखाता है कि एक मां की दुआ में कितनी ताकत होती है। हमारी हर तकलीफ का हल मां की दुआ ही होती है, लेकिन सवाल है कि मां की तकलीफ के बारे में किसने सोचा है?
कहते हैं एक महिला अपने जीवन में कई चरणों से गुजरती है और मां बनना उसके जीवन का सबसे बड़ा सुख होता है। जब वह मां बनती है, तो समाज उससे एक अलग अपेक्षा करने लगता है और महिलाएं अक्सर एक 'अच्छी मां' बनने के बोझ तले दबती चली जाती हैं। कोई कैसे इस परिणाम तक पहुंच सकता है कि एक मां 'अच्छी मां' है कि नहीं। क्या एक मां का मां होना काफी नहीं है?
हम हरजिंदगी के Good Mother Project के तहत ऐसी महिलाओं या कहिए ऐसी मदर्स से आपको मिलवाएंगे, जिन्होंने समाज के इन बेतुके पैमाने को तोड़ा है और अपने सपनों को पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। इसी कड़ी में चलिए आज आपको सुचेता पाल से जिनका हेल्थ और वेलनेस में बड़ा नाम है। सुचेता एक फिटनेस ट्रेनर और जुम्बा क्वीन हैं और अपने काम से वह अन्य महिलाओं को भी इंस्पायर कर रही हैं।
सुचेता पाल एक इंजीनियर से जुम्बा ट्रेनर बनीं। उन्होंने न केवल देश में बल्कि 17 देशों में हजारों उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करने में मदद की है।
सुचेता एक किस्सा साझा करती हैं कि जब मां बनने के बाद वह वापस स्टेज पर आईं तब उन्हें इस बात का अंदाजा हुआ कि उन्हें अपना ख्याल रखने की कितनी जरूरत है। स्टेज पर लगभग 500 लोगों के बीच उन्होंने अपनी पैंट में पेशाब करती और तब उन्हें पता चला कि उन्हें यूरिनरी इनकंटिनेंस है। इस दौरान वह पोस्टपार्टम ब्लूज से गुजरी थीं और तभी उन्होंने Mom.Bod.Strong पोस्टपार्टम प्रोग्राम की शुरुआत की। सुचेता को महिला कल्याण के लिए उनके काम के लिए महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है।
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एक महिला के लिए मां बनने का फैसला बहुत बड़ा होता है। ऐसा ही कुछ सुचेता के साथ भी था। मां बनना उनके प्लान में कहीं भी शामिल नहीं था, लेकिन उन्हें पता था कि एक दिन वह मां बनेंगी और सुचेता ने मां बनने का फैसला तब किया जब वह करियर की बुलंदियां छू रही थीं। वह कहती हैं, "मैं यह बाकी महिलाओं से कहना चाहूंगी कि जब आप यह फैसला लें तो इसके पीछे का असली कारण आपको पता होना चाहिए और वह आपके लिए सही और असली होना चाहिए।"
जब सुचेता ने एक मां बनने का सफर तय किया तो उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। वह बताती हैं, "हम कितना ही दूसरों से सुन लें, लेकिन यह जब तक खुद में नहीं बीतती तो इसका पता नहीं चलता। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मेरे शरीर के साथ हो क्या रहा है, क्योंकि यह मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मुझे जो चीज़ें पसंद थी मैं वो नहीं खा पा रही थी क्योंकि मुझे उनकी खुशबू से ही उल्टियां आने लगती थी। मुझे अंडे खाना बहुत पसंद है, लेकिन उस दौरान मैं अंडों की स्मेल से उकाई करने लगती थी। इसके अलावा ऐसी कई उलझनें थीं जिनसे मैं गुजर रही थी।"
सुचेता कहती हैं, "मां बनने के 3 महीने के बाद तक मुझे नहीं लगता कि मेरे अंदर की ममता जागी होगी, क्योंकि सब कुछ मेरे लिए भी नया था। इससे पहले तकह मैं हमेशा स्टेज पर होती थी। आपकी एक पर्सनैलिटी होती है, लेकिन मां बनने के बाद अचानक उसे दरकिनार करके लोग कहने लगते हैं कि अब तुम मां बन गई हो। लोग भूल जाते हैं कि एक महिला भी पहली बार मां बनी है और उसे हजार नई चीजों से गुजरना पड़ता है। मुझे भी चीज़ें समझने में समय लगा।"
सुचेता ने यह तय किया था कि वह वेजाइनल डिलिवरी नहीं चाहती हैं। वह चाहती थीं कि उनका सी-सेक्शन हो, लेकिन फिर भी उन्हें 24 घंटे के लिए उस दर्द से गुजरना पड़ा था। सुचेता कहती हैं कि एक मां बनने से पहले मैं उन तमाम दबावों से गुजरी थीं जो समाज हमारे ऊपर डालता है (सुचेता पाल की जर्नी)।
वह आगे कहती हैं, "यह मेरा फैसला होना चाहिए कि मुझे वेजाइनल डिलिवरी से गुजरना है या सी-सेक्शन करना है। मुझे बच्चे को दूध पिलाना है या नहीं और ऐसा इसलिए क्योंकि मैं उन चीजों से सहज नहीं हूं न कि इसलिए क्योंकि मैं एक अच्छी मां नहीं हूं।"
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बच्चे के बाद एक महिला की जिंदगी में अचानक सब कुछ बदल जाता है और उस बदलाव को एक्सेप्ट करने में उसे समय लगता है। कई महिलाएं प्रेग्नेंसी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार होती हैं और इसी दर्द से सुचेता भी गुजरी हैं। बातचीत में उन्होंने बताया, “मैं इसे अपनी खुशकिस्मती मानती हूं कि मैं पोस्टपार्टम ड्रिप्रेशन का शिकार नहीं हुई। हालांकि मुझे पोस्टपार्टम ब्लूज हुए जो डिप्रेशन से कहीं गुना कम है और मैं शायद इसकी कल्पना भी नहीं कर सकती हूं, क्योंकि मेरे कुछ क्लाइंट्स इससे गुजर रहे हैं। हां लेकिन ऐसा समय आया था जब मैं बहुत गुस्सा होती थी। मुझे यह भी महसूस हुआ कि भगवान मैंने यह फैसला आखिर क्यों ले लिया। इस बात को हम महिलाएं कभी नहीं स्वीकारती हैं। मैं कह सकती हूं कि 99 प्रतिशत महिलाओं ने एक बार यह जरूर महसूस किया होगा, क्योंकि उनकी दुनिया पल में बदल जाती है।”
जब बच्चा होने के बाद सबका ध्यान आपसे हटकर अचानक आपके बच्चे पर चला जाता है, तो वह हम महिला को खराब लग सकता है। बच्चे से पहले सब आपके बारे में बात करते हैं, लेकिन बच्चे के बाद प्राथमिकताएं बदल जाती है और इसके कारण एक मां गुस्सा और ईष्या महसूस करती है, जिसमें कोई बुराई नहीं है। इन सभी इमोशन से सुचेता भी गुजरी हैं।
इसी के चलते सुचेता ने एक पोस्टपार्टम प्रोगाम शुरू किया, जिसका नाम Mom.Bod.Strong पोस्टपार्टम प्रोग्राम है। इसके बारे में आप बाकी जानकारी इस साइट से ले सकते हैं।
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एक मां अगर कुछ समय अपने लिए निकाल रही है तो हम तुरंत उसे जज करने लगते हैं कि अरे ये कैसी मां है जो अपने बच्चे पर ध्यान नहीं दे रही है। मगर एक अच्छी मां की परिभाषा क्या है? इसका जवाब देते हुए सुचेता कहती हैं, "अगर एक मां खुद ठीक नहीं है, तो वह कैसे अपने बच्चे का ख्याल रख सकती है। मैं समझती हूं कि एक अच्छी मां होने का कोई मैन्युअल नहीं है। आप अगर खुद ख्याल रख रही हैं और समाज आपको जज कर रहा है या सेल्फिश कह रहा है तो हां मैं हूं सेल्फिश!"
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सुचेता बताती हैं कि एक मदरहुड हमारे जीवन का हिस्सा है, लेकिन हमारी कोर आइडेंटिटी इससे बिल्कुल अलग है। मेरी कोर आइडेंटिटी यह है कि मैं एक टीचर हूं और मैं कोशिश करती हूं कि मैं अपने बच्चे क्या सिखा रही हूं वो मायने रखता है। सरल शब्दों में कहूं तो हमारी आइडेंटिटी वर्क रोल पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। आप कौन हैं यह मायने रखता है (जानें कौन हैं फाल्गुनी वसवाड़ा)।
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मैंने और मेरे पार्टनर ने शुरू में ही यह तय कर लिया था कि इस माइंडसेट के साथ बच्चा नहीं करेंगे कि हमें उसके लिए बदलना पड़ेगा। यह एक महिला को ही फैसला करना है क्योंकि इसका पछतावा पिता को नहीं होता है। हां यह बहुत मुश्किल है, लेकिन जरूरी है कि हम यह तय करें कि हमारे लिए यह त्याग जैसा नहीं होना चाहिए। मुझे अपना काम करने के लिए आज 4 घंटे मिलते हैं, लेकिन मुझे पता है कि मैं टाइम एफिशिएंट हूं और सारे काम करने के बाद मैं अपने बच्चे को हर बार उसी खुशी से मिलती हूं। यह फैसला था जो मैंने लिया और हमें यह देखना जरूरी है कि हम क्या फैसला ले रहे हैं और उसे कैसे अप्रोच कर रहे हैं। क्योंकि जब इसका गिल्ट हमें होता है, तो वह गिल्ट हम अपने बच्चे पर भी थोप देते हैं।
ऐसा नहीं है कि सुचेता को कभी यह गिल्ट नहीं हुआ कि वह अपने बच्चे को समय नहीं दे पाती, लेकिन वह इससे उबरना जानती हैं। सुचेता कहती हैं, "ऐसा कई बार होता है कि जब मेरा बच्चा स्कूल से घर आता है तो मैं बहुत एनर्जी के साथ उसे मिलती हूं, लेकिन ऐसा भी समय होता है जब मैं अपने काम में व्यस्त रहती हूं। जब वह मेरे पास आता है तो मैं उसे समझाती हूं, लेकिन फिर यह गिल्ट मुझे रहता है कि मैं अपने काम में व्यस्त हूं। हालांकि मेरे पार्टनर और नैनी सब रहते हैं, लेकिन मेरा ध्यान भटक जाता है। मैं इस बात से अवगत हूं कि ऐसा होता है और इसे छुपाती नहीं हूं, क्योंकि यह सामान्य है।"
सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर सुचेता पाल सभी बाधाओं के बावजूद अपने सपनों को धैर्य और जुनून के साथ जीने का आदर्श उदाहरण देती हैं।
आपको उनकी यह इंस्पायरिंग स्टोरी कैसी लगी, हमें कमेंट करके जरूर बताएं। हमें उम्मीद है यह लेख आपको पसंद आएगा। इसे लाइक और शेयर करें और ऐसे ही लेख पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी के साथ।
Image Credit: Instagram@sucheta pal
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