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inspiring story of shrimati mali who saved poonch in the 1971 indo pak war

1971 की जंग में पाक सेना से भिड़ी थी गुज्जर महिला, बहादुरी से बचाया पुंछ...पढ़िए श्रीमती माली की कहानी

1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान को आजादी दिलाकर उसे बांग्लादेश बना दिया गया था। लेकिन, इस युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना ने पुंछ पर हमला करने की पूरी योजना बना डाली थी, लेकिन एक साहसिक गुज्जर महिला की वजह से वह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाई थी। आइए जानते हैं कि आखिर वह महिला कौन थी? 
Editorial
Updated:- 2025-05-18, 09:00 IST

अक्सर युद्धों को सैनिकों की बहादुरी या शहादत के लिए याद किया जाता है। लेकिन, इन बड़ी लड़ाइयों में आम लोग भी अपनी हिम्मत दिखाते हैं। ऐसा ही एक बहादुरी का काम 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में एक मुस्लिम गुज्जर महिला ने किया था। उन्होंने अपनी समझदारी और बहादुरी से जम्मू-कश्मीर के पुंछ को बचाने में बड़ी मदद की थी। आज हम आपको उसी गुमनाम नायिका, श्रीमती माली की कहानी बताने जा रहे हैं।

श्रीमती माली के बारे में

श्रीमती माली का जन्म पुंछ जिले के अराई गाव के एक गुज्जर परिवार में हुआ था। लगभग 1930 में उनकी शादी कम उम्र में ही अब्दुल गफ्फार से हो गई थी। उनके पति की दिमागी हालत ठीक नहीं थी, इसलिए शादी के बाद माली अपने पिता के घर लौट आई थीं। वहां उनके बड़े भाई जलाल-उन-दीन ने उनकी देखभाल की। पहाड़ों पर जिंदगी गुजारना बहुत मुश्किल था और वहां लोग मजदूरी करके या जानवर पालकर अपना और अपने परिवार का पेट भरते थे। उस समय महिलाओं की जिंदगी बहुत कठिन थी, क्योंकि वे पढ़ी-लिखी नहीं होती थीं और उन पर कई तरह की रोक-टोक थी। श्रीमती माली की कोई संतान नहीं थी, इसलिए वह अपने भाई के बेटे को अपना बेटा मानने लगी थीं।

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1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान

Shrimati Mali

दिसंबर 1971 में जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ, तो पुंछ जिले को युद्ध का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान ने 1965 में हाजीपुर दर्रा खो दिया था और वह पुंछ पर कब्जा करना चाहता था। पाकिस्तान ने पुंछ पर कब्जा करने के लिए हमले की योजना बनाई। पाकिस्तानी सेना ने पुंछ पर पीछे से हमला करने की एक योजना बनाई। इस योजना के तहत, पाकिस्तानी सेना को पीछे के इलाकों में घुसकर पुंछ पर पीछे से हमला करना था, ताकि भारतीय सेना का ध्यान भटक जाए और पुंछ पर कब्जा किया जा सके। योजना के अनुसार, पाकिस्तान की तरफ से एक सेना भेजी गई और उसने चुपचाप घुसपैठ करते हुए पुंछ के पिछले इलाके पर कब्जा कर लिया। इससे मुख्य सेना के लिए घुसपैठ शुरू करने का रास्ता खुल गया।

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श्रीमती माली जानवरों को चराने गई थीं

13 दिसंबर 1971 को अराई टॉप और पिलानवाली के इलाके पूरी तरह से बर्फ से ढके हुए थे। श्रीमती माली, जिनकी उम्र उस समय लगभग 40 साल थी, जानवरों के लिए चारा लेने पिलानवाली पहुंची थीं। जब माली वहां पहुंचीं, तो उन्होंने झोपड़ियों से धुआं निकलते हुए देखा। उन्हें यह बहुत अजीब लगा और उन्हें शक भी हुआ। थोड़ा आगे चलने पर उन्होंने देखा कि कुछ सैनिक बैठे हुए अपनी बंदूकें साफ कर रहे थे। यह देखकर उन्हें डर लगा, लेकिन उन्होंने समझ लिया कि ये भारतीय सैनिक नहीं हैं। इसलिए, बहुत समझदारी से और बिना शोर किए, सावधानी के साथ वह घुटनों तक बर्फ को पार करते हुए दूसरा रास्ता पकड़कर जल्दी से अराई पहुंच गईं।

श्रीमती माली ने बहादुरी और देशभक्ति दिखाई थी 

उन्होंने पूरी घटना अपने भाई को बताई और उनके भाई ने उन्हें चुप रहने को कहा। उनके भाई ने कहा कि अगर वह यह बात किसी को बताएंगी तो मुसीबत में पड़ जाएंगी। लेकिन, श्रीमती माली का मन नहीं माना और वह गांव के सरपंच मीर हुसैन के पास पहुंच गईं। माली की हालत देखकर सरपंच को लगा कि वह बीमार हैं। माली ने सरपंच को देखते ही पूरी घटना बता दी। उन्होंने सरपंच से कुछ करने का आग्रह किया। सरपंच जानते थे कि यह युद्ध का समय है और उन्हें परेशानी हो सकती है। इसलिए, सरपंच ने माली की बात को टाल दिया और उन्हें घर वापस जाने को कहा। 

मगर, माली नहीं मानीं और वह पास के सेना शिविर की ओर भागीं। रास्ता बहुत ऊबड़-खाबड़ था और बर्फ से ढका हुआ था। लेकिन वह गिरते-पड़ते हुए सेना चौकी पहुंच गईं और वहां पर ITBP की एक टुकड़ी थी। वह ITBP चौकी पहुंचीं और पूरी घटना बताना शुरू किया। लेकिन भाषा उनके लिए मुश्किल बन गई। माली सिर्फ गोजरी भाषा ही बोल पाती थीं, इसलिए एक ट्रांसलेटर की जरूरत पड़ी। चौकी प्रभारी ने एक स्थानीय व्यक्ति की मदद से माली की पूरी बात समझी।

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श्रीमती माली ने सेना की मदद की थी 

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उस चौकी पर कुछ ही सैनिक थे, इसलिए उन्हें पास की सेना यूनिट में ले जाया गया। पुंछ से कुछ ही दूरी पर एक सिख बटालियन तैनात थी और वहां पर कमांडिंग ऑफिसर भी थे। जब उन्होंने माली की बात सुनी, तो वह खतरे को समझ गए। उन्होंने अपनी यूनिट को तुरंत तैयार किया। श्रीमती माली ने उस यूनिट का स्वेच्छा से मार्गदर्शन किया और बड़ी मुश्किल से उन्हें उस जगह पहुंचाया जहां उन्होंने पाकिस्तानी सैनिकों को देखा था। सेना यूनिट ने तुरंत कार्रवाई की और परिणामस्वरूप पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और कुछ को पकड़ लिया गया। कैदियों से पूछताछ करने पर पता चला कि पाकिस्तान की सेना डोडा और सौजियन के बीच नालों और जंगलों के रास्ते घुसपैठ कर रही थी और पुंछ पर पीछे से हमला करने वाली थी।

पद्मश्री से सम्मानित किया गया 

श्रीमती माली की समझदारी, बहादुरी और देशभक्ति की वजह से पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ करने वाली टुकड़ियों को उनके ठिकाने तक पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया। इस तरह पुंछ में सेना के लिए एक बड़ा खतरा टल गया और हमारी सेना के हथियार और जरूरी सामान के ठिकाने बच गए। माली की इस बहादुरी भरे काम को सेना ने सराहाया और उन्हें 25 मार्च 1972 को पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। वह यह राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली जम्मू और कश्मीर की पहली गुज्जर महिला थीं।

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