इन दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की वजह से 1999 में हुए कारगिल युद्ध की बहुत चर्चा हो रही है। उस युद्ध में हमारे देश के कई बहादुर जवानों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी, और उसमें भारत की महिला पायलटों ने भी अहम भूमिका निभाई थी। ज्यादातर लोगों को कारगिल युद्ध की महिला पायलट के तौर पर गुंजन सक्सेना का नाम याद आता है, लेकिन उनके साथ एक और महिला चीता पायलट थीं, जिनका नाम श्रीविद्या राजन था।
आज हम आपको इस आर्टिकल में केरल की रहने वाली कारगिल गर्ल श्रीविद्या राजन की असली जिंदगी की कहानी बताने वाले हैं।
कारगिल युद्ध की महिला चीता पायलट श्रीविद्या राजन का जन्म केरल के पलक्कड़ जिले के थाथमंगलम नामक एक छोटे से गांव में हुआ था। बचपन में वह एक नॉर्मल लड़की थीं और उन्हें अपने लंबे बालों पर गर्व था और वह हर दिन चमेली के फूलों से बालों को सजाया करती थीं। उनका फैमिली बैकग्राउंड सेना से आता था।
श्रीविद्या राजन के पिता भारतीय सेना में सेबूदार मेजर के पद पर कार्यरत थे और उनकी मां एक टीचर थीं। उनके 4 भाई-बहन थे और सब गांव में रहा करते थे। छुट्टियों में श्रीविद्या अपनी मां और भाई-बहनों के साथ पापा की पोस्टिंग वाली जगह पर जाया करती थीं। उस समय सेना में महिलाओं को केवल मेडिकल फील्ड में काम करने की अनुमति थी और इसमें श्रीविद्या को रुचि नहीं थी। लेकिन, उनके अंदर पायलट बनने की चाह थी। उस समय एविएशन स्कूल में भेजने के लिए बहुत पैसे लगते थे। इसलिए, उन्होंने केमिस्ट्री से स्नातक करने का फैसला कर लिया। लेकिन, जब भारत सरकार ने महिलाओं को पायलट बनने का मौका दिया, तो उन्होंने इंडियन एयर फोर्स के लिए आवेदन कर दिया।
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श्रीविद्या राजन ने रिटेन टेस्ट पास कर लिया, लेकिन दूसरे लेवल की स्क्रीनिंग में उन्हें बहुत कठिनाई हुई। वह निराश होकर घर वापस लौट आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी कमजोरियों पर काम किया। दरअसल, वह बहुत दुबली-पतली थीं और उनका वजन 49 किलो था। उन्होंने अपनी हेल्थ और फिटनेस पर फोकस करना शुरू कर दिया। साथ ही, उन्होंने पलक्कड़ में ‘ब्रिलियंट कंप्यूटर’ नाम की एक कंपनी में एकेडमिक काउंसलर के रूप में नौकरी करनी शुरू कर दी। इस नौकरी की वजह से उन्हें इंग्लिश बोलनी आ गई। उनकी मेहनत रंग लाई और वह भारतीय वायु सेना की पहली महिला हेलीकॉप्टर पायलट बनीं। उन्होंने अखिल भारतीय स्तर पर टॉप किया।
श्रीविद्या राजन इंडियन एयरफोर्स के चौथे पायलट बैच की मेंबर थीं। उनकी ट्रेनिंग आंध्र प्रदेश के डुंडीगल में एयरफोर्स एकेडमी में हुई थी। शुरुआत में, वह बहुत एक्साइटेड थीं, लेकिन ट्रेनिंग के कुछ महीने बहुत मुश्किलभरे गुजरे थे। श्रीविद्या को जल्दी उठना पड़ता था और नहाने के लिए टाइम नहीं मिलता था। रात 10 बजे के बाद लाइट्स बंद हो जाया करती थीं। श्रीविद्या ने ट्रेनिंग के चलते अपने बालों को कटवा लिया था और लंबे नाखून और शैंपू करना छोड़ दिया था। 1.5 साल की कड़ी मेहनत के बाद, जब श्रीविद्या राजन को कमीशन मिला, तो वह जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में तैनात की गईं। वहां पर उन्होंने उड़ान भरने की ट्रेनिंग ली। श्रीविद्या जिस टीम में शामिल हुई थीं, उसमें कुल 22 पायलट थे, जिसमें गुंजन सक्सेना भी एक थीं।
साल 1999 में कारगिल युद्ध शुरू हुआ और इंडियन एयरफोर्स ने पूरी ताकत झोंक दी। श्रीविद्या राजन को कारगिल युद्ध ड्यूटी के लिए श्रीनगर भेज दिया गया। हालांकि, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी। जब उन्हें पता चला, तो वह काफी डरी हुई थीं। उस समय श्रीविद्या को कारगिल युद्ध क्षेत्र से घायल सैनिकों को श्रीनगर आर्मी बेस हॉस्पिटल तक पहुंचाने का काम मिला था। श्रीविद्या के लिए श्रीनगर में फाइटर जेट उड़ाना चुनौतीपूर्ण था, लेकिन उन्होंने घायल सैनिकों को अस्पताल पहुंचाने और राशन सप्लाई करने का काम बखूबी किया था।
श्रीविद्या राजन की कामयाबी ने भारतीय सेना और वायुसेना में महिलाओं को लेकर सोच बदलने में मदद की। अब महिलाएं भी पायलट, तकनीकी अधिकारी और युद्ध से जुड़ी जिम्मेदार भूमिकाओं में अपनी जगह बना रही हैं।
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