घर के छोटे से छोटे काम के लिए हम किसी बाहरी पुरुष को अपने घर के अंदर आने देते हैं। प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, कारपेंटर आदि की जरूरत आए दिन घरों में पड़ती रहती है। पर क्या कभी सोचा है कि अगर यही काम कोई महिला करे, तो क्या होगा? वह महिला किसी मिसाल से कम नहीं होगी जो अपने काम को बेहतर तरीके से कर भी रही है और अपनी जिंदगी को जिंदादिली से जी रही है। कुछ ऐसी ही कहानी है उड़ीसा की शताब्दी साहू की।
शताब्दी अब तक 2000 से ज्यादा पुरुषों को प्लंबिंग की ट्रेनिंग दे चुकी हैं और हर दो सालों में वह अपने सर्टिफिकेट को अपग्रेड भी करती हैं। लगातार प्लंबिंग की फील्ड से जुड़ी होने के बाद शताब्दी रोजाना अपने काम को बेहतर बनाने की कोशिश में लगी रहती हैं। शताब्दी अपने घर में भी प्लंबिंग सॉल्यूशन्स का काम करती हैं और यही नहीं वह अपने पूरे इलाके के लिए प्रेरणा हैं। हरजिंदगी की खास सीरीज 'शक्ति रूपेण संस्थिता' में हम आपको ऐसी ही महिलाओं से मिलवा रहे हैं जो अपने काम और बल के कारण शक्ति के स्वरूप से कम नहीं हैं। इसी कड़ी में हमने शताब्दी से खुलकर बात की और उनकी जिंदगी से जुड़े पहलुओं के बारे में जानने की कोशिश की।
बचपन से ही बिल्डिंग बनाने के काम में आता था शताब्दी को मजा
शताब्दी उन बच्चों में से एक थीं जिन्हें हमेशा कुछ नया करने का मन करता और उन्हें बिल्डिंग्स बहुत आकर्षित करती थीं। उन्हें लगता था कि बड़ी होकर उन्हें भी बिल्डिंग बनानी हैं और बस इसी फील्ड में काम करना है। शताब्दी ने हमसे बात करते हुए कहा...
'मैं बचपन से ही सिविल इंजीनियर बनने के बारे में सोचती थी। वो कहते हैं ना कि एक बार जो सोच लिया वह सोच लिया। मैंने यही सोचा था कि सिविल इंजीनियर बनकर बड़ी सी बिल्डिंग बनाऊंगी और ड्राइंग-पेंटिंग आदि में भी यही करती थी। 10वीं के बाद मैंने सिविल में डिप्लोमा किया और फिर बीटेक भी सिविल से ही की। इसके बाद मैंने एक जॉब के लिए अप्लाई किया जिसमें मुझे लगा था कि मैं कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करूंगी, लेकिन असल में वहां स्किल डेवलपमेंट के लिए ट्रेनिंग होनी थी। उन्होंने बोला कि सिविल इंजीनियर हो तो प्लंबिंग और वॉटर मैनेजमेंट के लिए आपको ट्रेनर सर्टिफिकेट लेना होगा और उसके बाद ही आपको जॉब मिलेगी। मैंने वह ट्रेनिंग एग्जाम पास कर लिया और फिर मैं प्लंबर बन गई।'
'हमारा TOT सर्टिफिकेट (Training of Trainer's) सर्टिफिकेट हर दो साल में रिन्यू होता है और अब धीरे-धीरे मैं अपनी फील्ड की बारिकियों को भी जानने लगी हूं।'
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लड़कों को ट्रेनिंग देने में शताब्दी को होती थी यह दिक्कत
शताब्दी उस फील्ड में काम कर रही हैं जिसमें उन्हें हर रोज 30-35 लड़कों के बैच को खड़े होकर ट्रेनिंग देनी होती है। अधिकतर महिलाएं ऐसे मौके पर घबराती हैं या डरती हैं, लेकिन शताब्दी का जज्बा उन्हें और काम करने के लिए प्रेरित करता है। हां, यह भी होता है कि उनके काम में उन्हें थोड़ी सी समस्या महसूस होती है।
शताब्दी कहती हैं, 'मैं 10वीं और 12वीं के बाद आए लोगों को प्लंबिंग की ट्रेनिंग देती हूं जिसमें सभी टेक्निकेलिटीज को भी सिखाती हूं। उदाहरण के तौर पर कैसे पाइप को काटा जाता है, कैसे ब्लॉकेज क्लियर किया जाता है, किस तरह के पाइप को कैसे लगाना जरूरी है। घर के लीकेज को किस तरह से बचाएं। घर बनवाते समय किस तरह का सामान लगवाएं आदि। इस ट्रेनिंग के बाद 100% जॉब प्लेसमेंट की गारंटी भी दी जाती है।'
बगैर बाथरूम गांव-गांव जाकर प्लंबिंग के गुण सिखाती हैं शताब्दी
शहरों में हर तरह की सुविधा उपलब्ध होती है, लेकिन गांव का क्या? जरा सोचिए अगर आपको लंबे समय तक खड़े होकर किसी को ट्रेनिंग देनी पड़े और आपके आस-पास एक भी टॉयलेट ना हो, तो कैसा लगेगा? शताब्दी के साथ भी ऐसा ही होता है जब वह आउटडोर ट्रेनिंग पर जाती हैं। अपनी मुश्किलों के बारे में बात करते हुए शताब्दी ने कहा, 'असल में जिन्हें मैं ट्रेनिंग देती हूं वह सभी गांव के होते हैं। उन लोगों को अगर इंग्लिश में या टेक्निकल शब्दों में जानकारी देते हैं, तो उन लोगों को समझने में और हमें समझाने में बहुत दिक्कत होती है। यह शॉर्ट टर्म टेक्निकल कोर्स होता है और इसमें 3 महीने में सभी टेक्निकल चीजों के बारे में बताना काफी मुश्किल है। ऐसे ही अगर मैं गांव में जाकर ट्रेनिंग दें, तो वहां प्लंबिंग छोड़िए सैनिटाइजेशन की भी बहुत दिक्कत होती है। वहां तो ट्रेनिंग देते समय हमारे लिए सही तरीके के टॉयलेट भी नहीं होते हैं।'
शताब्दी मानती हैं कि उनका कॉन्फिडेंस सिर्फ TOT परीक्षा क्लियर करने के बाद ही बढ़ने लगा। उन्हें तो अपनी परीक्षा के बाद समझ आया कि वह ट्रेनर भी बन सकती हैं और आगे अपनी अलग पहचान बना सकती हैं। बिल्डिंग बनाने के काम में उन्हें अभी भी मजा आता है, लेकिन फिर भी शताब्दी को कुछ नया सीखना और करना था।
24 लड़कों के बीच अकेली शताब्दी, ऐसे बीती उनकी स्टूडेंट लाइफ
क्लास में अगर कोई अकेली लड़की हो तो उसे थोड़ी हिचकिचाहट महसूस होती है। भारत की रूढ़िवादी सोच यह ख्याल हमारे दिमाग में डाल देती है कि इतने लड़कों के बीच आप अकेली हैं तो या तो आप सुरक्षित नहीं या फिर आप सही नहीं। पर ऐसा पर यही सोच अगर शताब्दी ने रखी होती, तो उन्हें खुद को लेकर इतना कॉन्फिडेंस नहीं आता।
शताब्दी कहती हैं, नहीं ऐसा कभी नहीं हुआ। मैं जब फॉर्म भर रही थी तभी मुझे पता था कि मैं अकेली लड़की हूं और क्लास में सभी लड़के हैं। पर मुझे बिल्कुल डर नहीं लगा क्योंकि मैं अपना सपना पूरा करने जा रही थी। अगर उस वक्त डरती, तो आगे बढ़ना मुश्किल था, लेकिन मुझे कोई डर नहीं था।'
अपनी जॉब की परेशानियों को लेकर शताब्दी कहती हैं, 'मेरे एक बैच में 30-35 कैंडिडेट होते हैं। अब सब एक साथ समझ नहीं पाते हैं। लोग एक दूसरे से मिलते नहीं हैं, आधे लोगों को कोई और भाषा आती है और हमें लोगों को ग्रुप्स में डिवाइड करना पड़ता है। कुछ लोग ऐसे भी वीक होते हैं जिनके लिए एक्स्ट्रा क्लास लगती है। यह लर्निंग में दिक्कत पैदा करता है।'
परिवार के साथ के कारण इतना आगे बढ़ पाईं शताब्दी
अपने खाली समय में पेंटिंग करने और बिल्डिंग बनाने के बारे में सीखने के अलावा, शताब्दी पड़ोसियों की प्लंबिंग की समस्याओं को भी ठीक कर देती हैं। उन्हें अपने काम को लेकर घर वालों का पूरा सपोर्ट मिला और उन्होंने हमेशा ही अपने इस काम को लेकर गर्व महसूस किया। इस मामले में शताब्दी खुद को लकी मानती हैं कि उनका परिवार हमेशा उनके साथ रहा। हमसे बात करते हुए शताब्दी ने कहा, 'यह मेरी मर्जी थी और मेरे माता-पिता ने भी यही कहा कि जो तुम्हें अच्छा लगा है वो करो। कभी किसी ने मुझसे यह नहीं कहा कि लड़कों का काम क्यों कर रही हो। मुझे जो अच्छा लगता था उसके लिए मुझे हमेशा घर से सपोर्ट मिला।'
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शताब्दी इसके आगे उड़ीसा के 'घर-घर में जल' टेक्निकल स्किल प्रोग्राम में हिस्सा लेना चाहती हैं। वह अपनी ही फील्ड में और आगे बढ़ना चाहती हैं।
शताब्दी का सीखने और सिखाने का जज्बा ही है जो उन्हें सबसे अलग बनाता है। यही कारण है कि शताब्दी की जिंदादिली को हम सलाम करते हैं।
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