दक्षिणेश्वर काली मंदिर के बारे में जानें कुछ अनसुनी रोचक बातें, जानें मंदिर बनने के पीछे की कहानी

दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्‍थापना एक महिला ने की थी। कौन थीं वो और कैसे करवाया इस मंदिर का निमार्ण। जानें, इसकी रोचक कहानी।

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स्‍वामी विवेकानंद और उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस की पहली मुलाकात और फिर भगवान के दर्शन तक के सारे किस्‍से दक्षिणेश्वर काली मंदिर से ही जुड़े हुए हैं। विश्‍व को एक नया संदेश देने वाले स्‍वामी विवेकानंद का आध्‍यात्‍म का सफर यही से शुरू हुआ था। स्‍वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस इसी मंदिर में पूजारी थें। इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है और आज हम आपको इसकी स्‍थापना से जुड़ी बातें बताने वाले हैं।

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आपको बता दें कि 1847 में अंग्रेजों के शासनकाल में इस मंदिर का निमार्ण किया गया था। मंदिर की स्‍थापना से जुड़ा किस्‍सा बहुत ही रोमांचक है। दरअसल इस मंदिर को एक रानी ने बनवाया था जिनका नाम रानी रासमनी था। वैसे तो रासमनी गरीब परिवार से थीं लेकिन उनकी शादी कोलकाता केजानबाजार के राजा राजचंद्र से हुई थी। रासमनी बचपन से ही धार्मिक प्रवृति की थीं और उनका पूजा-पाठ में बहुत मन लगता था। जब राजा मौत हो गई तो रानी ने तीर्थयात्रा की योजना बनाई और बनारस जाने का सोचा। उन दिनों बनारस और कोलकाता के बीच रेल लाइन की सुविधा नहीं थी। कोलकाता से बनारस लोग नाव से जाया करते थे। रानी रासमनी ने भी गंगा नदी से जाने का रास्ता अपनाया और फिर उनका काफिला बनारस जाने के लिए तैयार हुआ। लेकिन यात्रा पर जाने के ठीक एक रात पहले रानी रासमनी के साथ एक अजीब घटना घटी। ऐसा कहते है कि मां काली ने उनके सपने में आकर उन्‍हें कहीं नहीं जाने और यही मंदिर बनवाने को कहा।

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इसके बाद बनारस जाने का कार्यक्रम रद्द कर रानी ने गंगा के किनारे मां काली का मंदिर (ऐसे मंदिर जहां नहीं बुझती माता की जोत) बनवाने का निर्णय लिया और मंदिर के लिए जगह की खोज शुरू कर दी। कहते हैं कि जब रानी गंगा के घाट पर जगह की तलाश करते हुए आईं तो उनके दिल से एक आवाज आई कि इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए। फिर ये जगह खरीद ली गई और मंदिर बनाने का काम तेजी से कर दिया गया। 1847 में मंदिर का निमार्ण कार्यशुरू हुआ और पूरे आठ सालों बाद इसका काम 1855 को पूरा हुआ । इस मंदिर की भव्‍यता को देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है।

रामकृष्ण परमहंस का इस मंदिर से जुड़ने का किस्‍सा भी काफी रोच‍क है। दरअसल मंदिर निमार्ण के बाद राज पूरोहित को यहां पूजा-अर्चना करने का जिम्‍मा सौपा दिया गया। रामकृष्ण परमहंस के बड़े भाई रानी रासमनी के यहां राज पूरोहित थें और वो अपने भाई परमहंस को यहां अपने साथ लेकर आए थें।

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दक्षिणेश्वर काली मंदिर जाने-माने धार्मिक स्‍थलों (अक्षरधाम मंदिर के बारे में जानें) में से एक है जहां देश के कोने-कोने से लोग आते हैं और घंटो कतार में खड़े होकर देवी के दर्शन का इंतजार करते हैं। कहते हैं कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर ही वह मंदिर (इन मंदिरों में जरूर टेके माथा) है जहां रामकृष्ण परमहंस को मां काली ने दर्शन दिया था और स्‍वामी विवेकानंद को भी भगवान के दर्शन इसी मंदिर में हुए थे।

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आपको बता दें कि दक्षिणेश्वर काली मंदिर में परमहंस देव का कमरा है, जिसमें उनका पलंग और दूसरे चीजें सुरक्षित रखी हुई हैं और वो वट वृक्ष है, जिसके नीचे परमहंस देव ध्यान किया करते थे। दक्षिणेश्वर काली मंदिर के बाहर परमहंस की धर्मपत्नी शारदा माता और रानी रासमनीकी समाधि बनी हुई है। अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी तो जुड़ी रहिए हमारे साथ। इस तरह की और जानकारी पाने के लिए पढ़ती रहिए हरजिंदगी।

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