भारत एक ऐसा देश है जहां हर 10 कदम पर एक अजूबा देखने को मिल जाता है। ऐसे ही अजूबों में से एक अजूबा साउथ इंडिया में चिन्नई के एक छोटे से कस्बे महाबलीपुरम में देखने को मिलता है। इस अजूबे का नाम है 'कृष्णा बटर बॉल'। जी हां, अपने नाम की ही तरह यह जगह बेहद डिफ्रेंट है।
क्यों है खास
बेशक आपने बहुत से पत्थरीले स्थानों पर बड़े-बड़े पत्थर देखे होंगे मगर यहां एक ऐसा रहस्यमयी पत्थर मौजूद है, जो आकार में गोल है और बेहद विशाल है। साथ ही यह पत्थर ढलान वाली पहाड़ी पर वर्षों से टिका हुआ है। इससे भी हैरानी वाली बात यह है कि इस पत्थर के आसपास ऐसा कोई भी दूसरा पत्थर मौजूद नहीं है। यहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि यह पत्थर नहीं भगवान कृष्ण का मक्खन है, जो स्वर्ग से यहां पर गिरा है। इसी वजह से लोगों ने इस जगह को कृष्णा बटर बॉल नाम दे दिया है। यह जगह पहले सूनसान थी मगर अब यह टूरिस्ट एट्रैक्शन बन चुकी है। चिन्नई आने वाले टूरिस्ट इस जगह को देखने जरूर आते हैं। इसलिए यहां हर रोज देशी और विदेशी टूरिस्टों की भीड़ लगी रहती है।
पत्थर पर हो चुकी है रिसर्च
45 डिग्री के कोण पर बिना लुढ़के टिके इस पत्थर पर कई रिसर्च हो चुकी हैं और लगातार होती भी जा रही हैं मगर इस पत्थर की हिस्ट्री के बारे में अब तक कुछ भी पता नहीं लग सका है। केवल पुराणों के आधार पर लोगों ने यह मान लिया है कि यह पत्थर भगवान कृष्ण के प्रिय भोजन मक्खन का सिम्बल है। लोग यह भी मानते हैं कि स्वर्ग में बैठे भगवान कृष्ण द्वारा किसी रोज मक्खन खाते वक्त उसका कुछ हिस्सा पृथ्वी पर गिर गया होगा और बाद में पत्थर बन गया होगा।
आपको बता दें कि यह पत्थर आकार में 20 फीट ऊंचा और 5 मीटर चौड़ा है. इसका वजन लगभग 250 टन है। अपने विशाल आकार के वाबजूद कृष्णा की यह बटर बॉल भौतिक विज्ञान के ग्रेविटी के नियमों धज्जियां उड़ाते हुए 4 फीट की पहड़ी पर वर्षों से एक ही जगह टिकी हुई है। इस पत्थर को देखने वालों को क्षण भर के लिए यह लग सकता है कि यह पत्थर कुछ ही समय में उन्हें कुचल कर आगे बढ़ जाएगा। मगर यह पत्थर अपनी जगह से कुछ इस तरह से टिका हुआ है मानो जैसे चिपका दिया गया हो।
कई बार हटाने की जा चुकी है कोशिश
ऐसा नहीं है कि इस पत्थर को कभी हटाने की कोशिश नहीं की गई । सबसे पहले दक्षिण भारत में राज करने वाले पल्लव वंश के राजा ने इस पत्थर को हटाने का प्रयास किया, लेकिन कई कोशिशों के बाद उनकी सेना में मौजूद शक्तिशाली से शक्तिशाली लोग भी इस पत्थर को एक इंच भी नहीं खिसका सके थे। इसके बाद वर्ष 1908 में मद्रास के गवर्नर ने इस स्थान पर कुछ बनवाना चाहा और इस पत्थर को हटाने के आदेश दिए। लोगों ने इसे साधार ढंग से हटाने की कोशिश की मगर वे पत्थर का एक टुकड़ा तक नहीं टोड़ सके। इसके बाद पत्थर को हटाने के लिए 7 हाथियों की मदद ली गई मगर पत्थर टस से मस भी नहीं हुआ।
क्या मानते हैं विशेषज्ञ
जियोलॉजिस्ट का मनना है कि इस पत्थर के पीछे कुछ तो रहस्य छुपा ही हुआ है। क्योंकि कोई भी पत्थर नेचुरल तरीके से इतने वर्षों से एक ही स्थान पर बिना किसी नुकसान के यूं टिक कर नहीं रह सकता है मगर वे इसे भगवान का चमत्कार भी नहीं मानते इसलिए इस पत्थर पर लगातार रिसर्च चलती आ रही है।
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