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कब और क्यों मनाई जाती है काल भैरव जयंती? भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा करने की सही विधि जानें

हिंदू धर्म में भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा का विशेष महत्व है। उनको जयंती को पापों को दूर करने के अवसर के रूप में देखा जाता है। आइए जानें क्यों मनाई जाती है काल भैरव जयंती और उनकी पूजा की सही विधि क्या है?
Editorial
Updated:- 2025-11-10, 17:05 IST

काल भैरव जयंती या कालाष्टमी हिंदू धर्म का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह दिन भगवान शिव के रौद्र रूप काल भैरव के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने ब्रह्मांड की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए काल भैरव का रूप धारण किया था। काल भैरव जयंती भगवान शिव के रौद्र रूप ‘भैरव’ जी के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है। यह तिथि मार्गशीर्ष महीने की कालाष्टमी को मनाई जाती है। हर महीने के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली अष्टमी तिथि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व दोनों ही अत्यंत गहरा है। ऐसा माना जाता है कि जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश स्वयं को सर्वोच्च बताया तब भगवान शिव ने अपने क्रोध से काल भैरव का अवतार लिया, उन्होंने ब्रह्मा जी के अहंकार का नाश किया। उसी समय से किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए लोग उनकी सवारी काले कुत्ते को भोजन कराते हैं। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें कब और क्यों मनाई जाती है काल भैरव जयंती और उनकी पूजा की सही विधि क्या होती है।

क्यों मनाई जाती है काल भैरव जयंती

पुराणों के अनुसार, जब ब्रह्मा जी ने अहंकारवश भगवान शिव का अपमान किया, तब भगवान शिव के रौद्र रूप से काल भैरव का जन्म हुआ, भगवान शिव के इस अवतार ने ब्रह्मा जी के अहंकार को समाप्त किया।

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इसी कारण इन्हें ‘दंडपाणि’ कहा गया, जिसका मतलब है जो पापियों को दंड देते हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं। ‘भैरव’ शब्द का अर्थ होता है भय को हरने वाला। इस दिन शिव जी के रौद्र रूप काल भैरव की पूजा करने से जीवन के सभी भय, संकट और नकारात्मक ऊर्जाएं समाप्त होती हैं। हर महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी के नाम से जाना जाता है और वहीं मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को काल भैरव जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस साल काल भैरव जयंती 12 नवंबर 2025, बुधवार को मनाई जाएगी।

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काल भैरव जी की पूजा विधि

ऐसी मान्यता है कि काल भैरव जयंती के दिन भगवान शिव के रौद्र स्वरूप काल भैरव जी की पूजा का विशेष महत्व है। आइए जानें किस तरह से की गई पूजा लाभकारी मानी जाती है-

  • काल भैरव जयंती के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्ति होकर भगवान शिव और उनके रौद्र स्वरुप भैरव जी का पूजा करें।
  • मान्यता है कि काल भैरव की पूजा आपको घर में नहीं बल्कि मंदिर में जाकर ही करनी चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि आपको घर पर काल भैरव की प्रतिमा नहीं रखनी चाहिए।
  • मंदिर में सबसे पहले काल भैरव का गंगाजल से अभिषेक करें। फिर फल, फूल, धूप, दीप, मिठाई, पान, सुपारी जैसी सामग्री अर्पित करें और धूप-दीप जलाएं।
  • काल भैरव को इस दिन इमरती या जलेबी का भोग जरूर लगाएं। इस दिन काले कुत्ते को भोजन अवश्य कराएं। इससे आपको पूजा का पूर्ण फल मिलता है।
  • इस दिन आप घर पर भी दीपक जलाएं और मुख्य द्वार पर चौमुखी दीपक जलाएं तो बहुत शुभ माना जाता है और पितृ दोष दूर होते हैं।
  • घर पर दीपक जलाते समय सरसों के तेल का प्रयोग करें और धूप, काले तिल, उड़द और नीले फूल अर्पित करें।

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कालाष्टमी का महत्व

हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी मनाई जाती है, लेकिन मार्गशीष माह की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी को विशेष फलदायी माना गया है। ऐसा कहा गया है कि इस दिन काल भैरव की पूजा करने से जीवन में किए गए सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से शुद्ध होता है। शिव पुराण में भी इस बात का उल्लेख है कि जो भक्त इस दिन उपवास रखकर काल भैरव जी की पूजा करता है, वह मृत्यु के भय, रोग, और संकटों से मुक्ति प्राप्त करता है।

काल भैरव जयंती के दिन यदि आप भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा करती हैं तो आपके जीवन में इसके शुभ योग दिखाई देते हैं। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह के अन्य आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से।

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