
हिंदू धर्म में भगवान शिव को देवों के देव महादेव का दर्जा दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि उनका स्वरूप जितना अद्वितीय है, उतना ही रहस्यमयी भी है। भगवान शिव जिन भी चीजों से खुद को सुसज्जित करते हैं वो भिन्न हैं। जैसे गले में सर्प, जटाओं में गंगा, शरीर पर भस्म और मस्तक पर त्रिनेत्र - ये सभी उनके स्वरूप को और भी दिव्य बनाते हैं। ऐसे ही भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा का स्वरूप और स्थान बिलकुल भिन्न है। चंद्रमा शिव जी के मस्तक की शोभा बढ़ाते हैं और उन्हें चंद्रशेखर का रूप प्रदान करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा बाईं ओर ही क्यों स्थित हैं? आखिर क्यों मस्तक पर विराजमान होने के लिए चंद्रमा का ये विशेष स्थान सुसज्जित किया गया? आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें इसके पीछे के रहस्य और इससे जुड़ी कथा के बारे में।
पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय निकले विष को जब भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया, तब उनकी जटाओं से निकली उग्र गर्मी को शीतल करने के लिए चंद्रदेव ने उनके मस्तक पर स्थान लिया। इस कारण आज भी वो भगवान शिव के मस्तक पर ही विराजमान हैं और शिव जी की शोभा बढ़ा रहे हैं। चंद्रमा शीतलता, शांति और मानसिक संतुलन का प्रतीक माने जाते हैं, जो शिवजी के उग्र रूप को संतुलित करते हैं।

चंद्रमा को ज्योतिष में मन, भावनाओं, सौंदर्य और शीतलता का प्रतीक माना जाता है। वहीं भगवान शिव तपस्या, वैराग्य और कठोर साधना के प्रतीक हैं। ऐसे में जब चंद्रमा उनके मस्तक पर सुशोभित हुए तब यह दोनों की ऊर्जा को संतुलित करने में मदद मिली और शिव और चंद्रमा एक दूसरे के पूरक बने। वहीं शिव को कठोर और चंद्रमा को कोमलता से जोड़ा जाता है और दोनों का संतुलन कठोरता में कोमलता और वैराग्य में शीतलता को दिखाता है। यह स्थिति यह संदेश देती है कि जीवन में तपस्या और वैराग्य आवश्यक हैं, किंतु भावनाओं और करुणा का भी उतना ही महत्व है।
ज्योतिष की मानें तो मनुष्य का शरीर भी एक प्रकार का ब्रह्मांड है, जिसके इसके दो पक्ष हैं- दाहिना पक्ष और बायां पक्ष। दाहिना पक्ष सूर्य, पुरुष तत्व और पिंगला नाड़ी का प्रतीक है और बायां पक्ष चंद्रमा, स्त्री तत्व और इड़ा नाड़ी का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा का बाईं ओर स्थित होना इसी ज्योतिषीय सत्य को प्रकट करता है कि चंद्रमा स्त्री तत्व और भावनात्मक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। चूंकि बायां भाग इड़ा नाड़ी का स्थान होता है, जो शांति, ठंडक और मानसिक स्थिरता प्रदान करता है, इसलिए चंद्रमा को भगवान शरीर के मस्तक के बाएं हिस्से में स्थान मिला।

पौराणिक दृष्टि से भी चंद्रमा को माता पार्वती का प्रतीक माना जाता है। जिस तरह से शिव के बाएं हिस्से में ही माता पार्वती का वास है और जिन्हें जिसे अर्धनारीश्वर स्वरूप में देखा जाता है। अतः जब शिव के बाईं ओर पार्वती जी विराजमान रहती हैं, तो चंद्रमा का उसी स्थान पर होना भी स्वाभाविक माना जाता है। इस प्रकार यह दिखाता है कि शिव और शक्ति एक-दूसरे के पूरक हैं।
इसके साथ ही, भगवान शिव का स्वरूप उग्र और तप्त माना जाता है। उनके गले में विष धारण है, त्रिनेत्र में अग्नि है और वे तांडव के संहारक हैं। ऐसे में चंद्रमा उनके मस्तक को शीतलता प्रदान करता है। अगर यह शीतलता न हो, तो उनका तेज और भी प्रचंड हो सकता था। इसलिए चंद्रमा को उनके बाईं ओर रखकर यह संतुलन साधा गया है।
भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा का विराजमान होना वास्तव में एक अलग स्वरुप दिखाता है। चंद्रमा भगवान शिव के स्वरुप को और ज्यादा प्रभावी बनाता है।
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