रामचरितमानस में श्री राम द्वारा शिव धनुष तोड़े जाने को लेकर लिखा गया है कि 'लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुं न लखा देख सबु ठाढ़ें। तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।' जिसका अर्थ है कि श्री राम ने इतनी तीव्र गति से सीता स्वयंवर के दौरान शिव धनुष को उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे तोड़ा था कि सभा में मौजूद किसी भी राजा को पता ही नहीं चला कि क्या घटना घटित हो गई। सीता स्वयंवर के दौरान राजा जनक की शर्त पूरी करते हुए श्री राम ने माता सीता से विवाह रचाया, लेकिन क्या आपको पता है कि सीता स्वयंवर के बाद उस शिव धनुष का क्या हुआ। आइये जानते हैं ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से कि सीता वरण के बाद शिव धनुष कहां गायब हो गया।
कैसे मिला था राजा जनक को शिव धनुष?
देव शिल्पी विश्वकर्मा ने जब शिव जी के लिए धनुष का निर्माण किया था तब उन्होंने भगवान विष्णु के लिए भी एक धनुष बनाया था। दोनों देवों को धनुष देने के बाद विश्वकर्मा जी ने एक याचना की।
देव शिल्पी विश्वकर्मा जी ने भगवान शिव और भगवान विष्णु से यह प्रार्थना की कि वह दोनों युद्ध करें जिससे यह पता चल सके कि कौन सा धनुष सबसे ज्यादा शक्तिशाली है।
भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों ने यह प्रार्थना स्वीकार की, लेकिन ब्रह्मा जी के आग्रह पर यह युद्ध रुक गया क्योंकि अगर युद्ध होता तो सृष्टि का विनाश समय से पहले निश्चित था।
जब ब्रह्म देव ने शिव जी और श्री हरि नारायण से युद्ध न करने के लिए कहा तो शिव जी ने अपने धनुष को पृथ्वी पर फेंक दिया था जो राजा जनक के पूर्वज राजा देवरथ को मिला और फिर उन्होंने राजा जनक को दिया।
क्या थी शिव धनुष की विशेषता?
माता सीता के स्वयंवर में जिस शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त राजा जनक ने रखी थी वह शिव जी का पिनाक धनुष था जिसका निर्माण देव शिल्पी विश्वकर्मा ने किया था।
रामायण के बालकांड के 67वें सर्ग में इस बात का उल्लेख मिलता है कि जब गुरु विश्वामित्र के साथ श्री राम और लक्ष्मण जनकपुर पहुंचे थे, तब गुरुवर ने शिव धनुष के दर्शन की इच्छा जताई थी।
राजा जनक ने जब उस शिव धनुष को सभा में मंगवाया था तब सभी राजा उस धनुष को देख कर समझ गए थे कि राजा जनक की शर्त को पूरा करना इतना सरल नहीं होगा।
शिव धनुष को राजा जनक द्वारा एक लोहे के संदूक में रखा गया था जिसमें 8 बड़े पहिये लगे हुए थे और खास बात यह थी कि सभा में उस संदूक को 5000 लोग खींचकर लाए थे।
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सीता स्वयंवर के बाद शिव धनुष का क्या हुआ?
शास्त्रों में बताया गया है कि जिस समय श्री राम ने धनुष तोडा था उस समय धनुष के 3 टुकड़े हुए थे। शिव धनुष भयंकर आवाज के साथ तीन टुकड़ों में विभाजित हो गया था।
जहां एक टुकड़ा आकाश में चला गया था तो वहीं, दूसरा टुकड़ा पाताल लोक में जा गिरा। वहीं, तीसरा हिस्सा जो धनुष के मध्य का था वो पृथ्वी पर आज भी स्थापित है।
पृथ्वी पर तीसरा हिस्सा जहां विराजित हुआ वह स्थान आज नेपाल में है और उस स्थान पर बना मंदिर धनुषा धाम के नाम से जाना जाता है। यहां शिव जी के धनुष की विधिवत पूजा होती है।
ऐसी मान्यता है कि धनुषा धाम में आकर जो भी कोई शिव जी के धनुष के टुकड़े की पूजा करता है या सिर्फ दर्शन भी कर लेता है तो उसके जीवन में चल रही परेशानियों का अंत हो जाता है।
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