जगन्नाथ पुरी की रसोई का अनोखा व्यंजन जहां भगवान को लगाया जाता है नीम के चूर्ण का भोग, जानें इसके पीछे की कहानी

हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ को जगत का नाथ कहा जाता है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति की सभी समस्याएं दूर हो जाती है। अब ऐसे में भगवान जगन्नाथ के भोग में नीम चूर्ण का भोग क्यों लगाया जाता है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
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हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ पूजनीय देवता हैं। उन्हें भगवान विष्णु के पूर्ण कला अवतार श्रीकृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। वे 'जग के नाथ' यानी पूरे संसार के स्वामी के रूप में पूजे जाते हैं। भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु के अवतार, विशेष रूप से भगवान कृष्ण का रूप माना जाता है। पुराणों में पुरी को 'धरती का वैकुंठ' भी कहा गया है। उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का विश्व प्रसिद्ध मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। इन चार धामों की यात्रा को हिंदू धर्म में मोक्षदायक माना जाता है। पुरी में भगवान जगन्नाथ अकेले नहीं, बल्कि अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। ऐसी मान्यता के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ को बुखार आता है और वे 15 दिनों तक बीमार रहते हैं। इस दौरान उन्हें दवाई दी जाती है और वे एकांत में रहते हैं। अब ऐसे में जगन्नाथ पुरी की रसोई में बेहद खास और अनोखा व्यंजन भगवान जगन्नाथ को चढ़ाया जाता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

भगवान जगन्नाथ को नीम चूर्ण का भोग लगाने की परंपरा

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भगवान जगन्नाथ को 56 भोग लगाने के बाद नीम का चूर्ण चढ़ाने की एक विशेष परंपरा है। कथा के अनुसार, पुरी के राजा भगवान जगन्नाथ को प्रतिदिन 56 प्रकार के भोग लगाते थे। मंदिर से कुछ दूरी पर एक वृद्धा रहती थी, जो भगवान जगन्नाथ को अपना पुत्र मानती थी। वह रोज मंदिर जाकर भगवान को इतना सारा भोग खाते हुए देखती थी। एक दिन उसके मन में यह विचार आया कि इतना सारा भोजन करने के बाद उसके "बेटे" के पेट में दर्द हो जाएगा।

इसलिए, उसने भगवान जगन्नाथ के लिए नीम का चूर्ण, जो आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर होता है और पेट की समस्याओं में लाभकारी माना जाता है। इसे तैयार किया और उन्हें खिलाने के लिए मंदिर पहुंची। लेकिन, मंदिर के द्वार पर खड़े सैनिकों ने उसके हाथ से नीम का चूर्ण फेंक दिया और उसे अंदर जाने से रोक दिया। वृद्धा रोते हुए वापस लौट गई। उसी रात भगवान जगन्नाथ ने राजा को सपने में दर्शन दिए और उनसे कहा कि उनके सैनिक मेरी माता को मुझे दवा यानी कि नीम का चूर्ण देने से क्यों रोक रहे हैं। सपने में भगवान की बात सुनकर राजा तुरंत उस वृद्धा के घर गए और उनसे माफी मांगी। वृद्धा ने तब दोबारा नया नीम का चूर्ण बनाया और भगवान जगन्नाथ को भोग लगाया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि भगवान जगन्नाथ को 56 भोग लगाने के बाद नीम का चूर्ण का भोग भी लगाया जाता है।

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भगवान जगन्नाथ को नीम के चूर्ण का भोग लगाने का महत्व

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भगवान जगन्नाथ का 56 भोग जिसमें विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन होते हैं। यह जीवन के सुख और समृद्धि का प्रतीक हैं। वहीं, नीम का कड़वा चूर्ण जीवन की कड़वाहट या कठिनाइयों का प्रतीक है। यह भोग व्यक्ति के जीवन में सुख और दुख दोनों का संतुलन महत्वपूर्ण माना जाता है।

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Image Credit- HerZindagi

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FAQ

  • देव देव जगन्नाथ को प्रणाम करने का मंत्र क्या है?

    देव देव जगन्नाथ का प्रणाम मंत्र है: "नीलाचल निवासाय, नित्याय परमात्मने। बलभद्र सुभद्राभ्यां, जगन्नाथाय ते नमः
  • जगन्नाथ मंदिर में क्या चढ़ाया जाता है?

    जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ को भोग लगाने के पश्चात प्रसाद विमलादेवी यानी कि माता पार्वती के मंदिर में अर्पित किया जाता है और यही कारण है कि कोई भी भक्त प्रसाद कभी भी अर्चा विग्रह के सामने बैठकर ग्रहण नहीं करता है।