Shani Jayanti Vrat Katha 2025: शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनि जयंती पर जरूर पढ़ें ये व्रत कथा

ऐसा माना जाता है कि शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा के दौरान उनकी व्रत कथा पढ़ने से शनि दोष दूर होता है और जीवन की विपरीत परिस्थितियां भी पलट जाती हैं। 
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शनि जयंती ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाई जाती है। यह दिन भगवान शनिदेव के जन्म का प्रतीक है, जिन्हें न्याय का देवता और कर्मों का फल देने वाला माना जाता है। शनि जयंती पर उनकी पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही, ऐसा माना जाता है कि शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा के दौरान उनकी व्रत कथा पढ़ने से शनि दोष दूर होता है और जीवन की विपरीत परिस्थितियां भी पलट जाती हैं। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं शनि जयंती की व्रत कथा के बारे में।

शनि जयंती की पहली व्रत कथा (Shani Jayanti Vrat Katha 2025)

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पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनिदेव सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं। एक बार की बात है, सूर्यदेव की पत्नी संज्ञा अपने पति के तेज से बहुत परेशान रहती थीं। वे उनके तेज को सहन नहीं कर पाती थीं। इसलिए, उन्होंने अपनी एक परछाई छाया बनाई, जिसका नाम संवर्णा था, और उसे अपनी जगह सूर्यदेव की सेवा में लगा दिया। संज्ञा ने संवर्णा से कहा कि वह उनके बच्चों मनु, यमराज और यमुना की देखभाल करे और यह रहस्य किसी को न बताए। इसके बाद, संज्ञा स्वयं अपने पिता के घर चली गईं।

संवर्णा ने पूरी निष्ठा से संज्ञा का रूप धारण कर सूर्यदेव की सेवा की और उनके बच्चों की देखभाल की। कुछ समय बाद, संवर्णा गर्भवती हुईं और उनके गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। जब शनिदेव का जन्म हुआ, तो उनका रंग काला था और उनका स्वभाव भी थोड़ा गंभीर था। सूर्यदेव को संवर्णा पर संदेह हुआ कि यह उनका पुत्र नहीं हो सकता, क्योंकि यह उनके जैसा तेजस्वी नहीं था। उन्होंने संवर्णा और शनिदेव का अपमान किया।

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यह देखकर संवर्णा बहुत दुखी हुईं। कहा जाता है कि शनिदेव की मां छाया ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की थी, जिससे उनके शरीर में इतनी शक्ति आ गई कि गर्भ में पल रहे शनिदेव का रंग काला पड़ गया और उनका स्वभाव भी तपस्वी जैसा हो गया। जब सूर्यदेव ने शनिदेव का अपमान किया, तो शनिदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने सूर्यदेव की ओर देखा। उनकी दृष्टि पड़ते ही सूर्यदेव काले पड़ गए और उन्हें कुष्ठ रोग हो गया।

सूर्यदेव अपनी इस दशा से बहुत परेशान हुए। उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। तब भगवान शिव ने सूर्यदेव को बताया कि शनिदेव उनके ही पुत्र हैं और उनका अपमान करने के कारण ही उन्हें यह कष्ट मिला है। भगवान शिव के समझाने पर सूर्यदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने शनिदेव से क्षमा मांगी। इसके बाद सूर्यदेव को उनका पूर्व रूप वापस मिल गया।

तब से यह मान्यता है कि शनिदेव अपने भक्तों पर कृपा करते हैं, लेकिन जो लोग गलत कर्म करते हैं या उनका अपमान करते हैं, उन्हें उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। शनिदेव को 'न्याय का देवता' और 'कर्मफल दाता' भी कहा जाता है।

शनि जयंती की दूसरी व्रत कथा

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एक और प्रसिद्ध कथा राजा विक्रमादित्य और शनिदेव की है। एक बार सभी नवग्रहों सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु में बहस छिड़ गई कि उनमें सबसे बड़ा कौन है। जब वे कोई निर्णय नहीं ले पाए, तो वे राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे क्योंकि राजा विक्रमादित्य बहुत न्यायप्रिय थे।

राजा विक्रमादित्य ने ग्रहों को बैठने के लिए आसन दिए। उन्होंने सबसे ऊंचे आसन पर बृहस्पति को, फिर धीरे-धीरे छोटे आसनों पर अन्य ग्रहों को बिठाया। सबसे अंत में उन्होंने शनिदेव को सबसे छोटे आसन पर बिठाया। यह देखकर शनिदेव क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा, 'राजन! तुमने मुझे सबसे छोटा बताया है, इसका फल तुम्हें भुगतना पड़ेगा। मैं राजा रंक और रंक को राजा बना देता हूं। अभी मेरी साढ़े साती तुम पर आने वाली है।'

शनिदेव की बात सुनकर राजा विक्रमादित्य ने घमंड में कहा, 'ठीक है, मैं भी देखना चाहता हूं कि तुम क्या कर सकते हो।' जब शनिदेव की साढ़ेसाती शुरू हुई, तो राजा विक्रमादित्य पर संकट आने लगे। उनका राजपाट चला गया, उन्हें दर-दर भटकना पड़ा। एक बार वह एक तेली के घर काम करने लगे और घोड़ों की देखरेख कर रहे थे। उसी दौरान उन पर चोरी का झूठा आरोप लगा, जिससे उनके हाथ-पैर काट दिए गए। वह अपाहिज होकर एक कोल्हू पर बैठकर गीत गाने लगे।

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एक दिन, उस राज्य की राजकुमारी ने उनके गीत सुने और उनसे प्रभावित होकर उनसे विवाह कर लिया। कुछ समय बाद, जब राजा विक्रमादित्य की साढ़ेसाती समाप्त हुई, तो शनिदेव उनके सपने में आए और बोले, 'देखा राजन मुझे छोटा कहकर तुमने कितना कष्ट झेला।' राजा विक्रमादित्य ने अपनी गलती मानी और शनिदेव से क्षमा मांगी। उन्होंने शनिदेव से प्रार्थना की कि ऐसा कष्ट किसी और को न मिले।

शनिदेव प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा विक्रमादित्य को वापस उनका राजपाट और हाथ-पैर लौटा दिए। इसके बाद, राजा विक्रमादित्य ने अपने राज्य में शनिदेव की महिमा का गुणगान किया और उनके व्रत और पूजा का प्रचार किया। यह कथा हमें बताती है कि शनिदेव कर्मों का फल अवश्य देते हैं और जो लोग उनके प्रति श्रद्धा रखते हैं और अच्छे कर्म करते हैं, उन्हें शनिदेव की कृपा अवश्य मिलती है। शनि जयंती पर इन कथाओं को सुनना और व्रत रखना बहुत शुभ माना जाता है।

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image credit: herzindagi

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FAQ

  • शनि जयंती के दिन शनिदेव को क्या भोग लगाएं?

    शनि जयंती के दिन भगवान शनि देव को काली उड़द दाल से बनी खिचड़ी का भोग लगाएं।