सावन शिवरात्रि का दिन भगवान शिव को समर्पित सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र दिनों में से एक है। यह दिन भक्तों को भगवान भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करने और उनकी कृपा पाने का एक सुनहरा अवसर प्रदान करता है। इस दिन शिवलिंग का पूजन करने और व्रत कथा सुनने या पढ़ने का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि सावन शिवरात्रि पर सच्ची श्रद्धा और भक्ति से व्रत रखने तथा कथा सुनने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, साथ ही मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। इस साल सावन शिवरात्रि 23 जुलाई को पड़ रही है। ऐसे में आइये जानते ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से सावन शिवरात्रि की व्रत कथा के बारे में।
सावन शिवरात्रि की व्रत कथा (Shivratri Vrat Katha 2025
पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव घोर तपस्या में लीन हो गए थे। दूसरी ओर, हिमालयराज और मैना की पुत्री पार्वती ने जन्म लिया। बचपन से ही पार्वती भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने का संकल्प ले चुकी थीं। उन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी। उन्होंने वर्षों तक अन्न-जल त्याग कर केवल पत्तों का सेवन किया, जिसके कारण उन्हें 'अपर्णा' भी कहा जाने लगा।
माता पार्वती की तपस्या इतनी तीव्र थी कि उससे तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। देवताओं ने कामदेव को भगवान शिव की तपस्या भंग करने के लिए भेजा, ताकि शिव का विवाह पार्वती से हो सके और तारकासुर का वध हो सके। लेकिन कामदेव अपने प्रयास में विफल रहे और भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उन्हें भस्म कर दिया। इसके बाद भी माता पार्वती ने अपनी तपस्या जारी रखी। उनकी अटूट श्रद्धा और तपस्या से शिव बहुत प्रसन्न हुए।
भगवान शिव ने पार्वती की परीक्षा लेने के लिए सप्त ऋषियों को भेजा, लेकिन पार्वती अपनी प्रतिज्ञा पर अडिग रहीं। अंत में भगवान शिव स्वयं एक वेश बदलकर पार्वती के समक्ष प्रकट हुए और उनकी भक्ति देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने माता पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। जिस दिन माता पार्वती का विवाह भगवान शिव से हुआ वह फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी और इसी दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
आगे की कथा के अनुसार, ऐसे कई असुर, राजा, ऋषि-मुनि थे जो उस समय में घोर तपस्या में लीन थे एवं कई ऐसे भी थे जो उस समय में जन्में ही नहीं थे। उन सभी ने भगवान शिव और माता पार्वती से प्रार्थना की कि उन्हें भी शिव-शक्ति का विवाह देखना है। असुर, राजा, ऋषि-मुनि इन सभी की श्रद्धा और भक्ति देख भगवान शिव और माता पार्वती ने दोबारा विवाह रचाया सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर जिसे सावन शिवरात्रि कहते हैं।
सावन शिवरात्रि पर शिवलिंग पूजन के बाद इस व्रत कथा को सुनने या पढ़ने से भगवान शिव और माता पार्वती प्रसन्न होते हैं और भक्तों को सुख-समृद्धि तथा अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देते हैं। माना जाता है कि सच्ची श्रद्धा से कथा सुनने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह कथा सुनने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और अंत में मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। अविवाहित कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है।
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इस कथा को सुनने से विवाहित महिलाओं के वैवाहिक जीवन में प्रेम और खुशहाली बनी रहती है। कथा श्रवण से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। इस प्रकार, सावन शिवरात्रि पर शिवलिंग पूजन के बाद व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना अत्यंत फलदायी होता है। यह न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि भक्तों को जीवन में धैर्य, निष्ठा और समर्पण का पाठ भी सिखाता है।
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