ओडिशा के पुरी में स्थित विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की तैयारियां खूब जोरों-शोरों से चल रही है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह भव्य यात्रा हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। वहीं आज ज्येष्ठ पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भगवान जगन्नाथ को स्नान कराया जाएगा, जिसे स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है और यह भगवान जगन्नाथ का शाही स्नान होता है। स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए अस्वस्थ रहते हैं। इस दौरान भगवान जगन्नाथ का दर्शन भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है। जब भगवान जगन्नाथ पूरी तरह से स्वस्थ हो जाते हैं तो उशके बाद जगत के नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है औ वे अपने भक्तों को दर्शन देते हुए नगर भ्रमण पर निकल जाते हैं।
अब ऐसे में भगवान जगन्नाथ का शाही स्नान कुल 108 स्वर्ण घड़ों से किया जाता है। आखिर इसका महत्व क्या और स्नान करने के बाद प्रभु बीमार क्यों पड़ जाते हैं। इसके बारे में आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
भगवान जगन्नाथ का 108 स्वर्ण घड़ों से स्नान कराने का महत्व
भगवान जगन्नाथ का 108 स्वर्ण घड़ों से स्नान कराना, जिसे स्नान यात्रा के नाम से जाना जाता है, पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रथ यात्रा से पहले आयोजित होने वाला यह सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। आज भगवान जगन्नाथ के साथ देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को गर्भगृह से मंडप में लाया जाएगा। उन्हें 108 घड़ों के पवित्र जल से स्नान कराया जाएगा। इस परंपरा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ को 35 घड़े, देवी सुभद्रा को 22 घड़े, भगवान बलभद्र को 33 घड़े और भगवान सुदर्शन को 18 घड़े जल से स्नान कराया जाएगा। इस जल में कई तरह की औषधियां, सुगंधित फूल, चंदन, केसर और कस्तूरी मिलाई जाती है। जो इस जल को बेहद पवित्र बनाती है। आपको बता दें, 108 स्वर्ण घड़ों से स्नान का अर्थ है भगवान को पवित्र और शुद्ध करना। वहीं 108 अंक हिंदू धर्म में बेहद शुभ माने जाते है। ज्योतिष शास्त्र में 108 यानी की नवग्रहों और 12 राशि का मेल है। 108 अंक पूरे जगत के ऊर्जा को दर्शाती है। इसलिए भगवान जगन्नाथ का 108 स्वर्ण घड़ों से स्नान की जाती है।
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भगवान जगन्नाथ शाही स्नान के बाद क्यों हो जाते हैं बीमार?
भगवान जगन्नाथ के शाही स्नान के बाद बीमार पड़ने को अनासार और गुप्ता काल कहा जाता है। इस दौरान भगवान को एकांत में रखा जाता है, और भक्तों को उनके दर्शन की अनुमति नहीं दी जाती है। इस अवधि में भगवान जगन्नाथ को विशेष औषधीय लेप के साथ-साथ तुलसी लेप लगाए जाते हैं और उनका उपचार किया जाता है, जिसे राज वैद्य करते हैं। अनासार काल खत्म होने के बाद भगवान जगन्नाथ की पूरे धूमधाम के साथ 27 जून को रथ यात्रा निकाली जाएगी। जिसमें वह अपनी बहन सुभद्रा और भई बलभद्र के साथ अपनी मौसी के घर जाएंगे।
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