Paush Kalashtami vrat 2024: साल की आखिरी कालाष्टमी के दिन करें इस स्तोत्र का पाठ, कालभैरव करेंगे रक्षा

हिंदू पंचांग के अनुसार पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सकती है। आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं। 
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हिंदू धर्म में सभी तिथियों का विशेष महत्व है। वहीं पौष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन विशेष रूप से कालभैरव बाबा की पूजा विधिवत रूप से करने का विधान है। ऐसा कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में किसी भी प्रकार का ग्रहदोष है, तो इससे जातकों को छुटकारा मिल सकता है और मनोवांछित फलों की भी प्राप्ति हो सकती है। आपको बता दें, कालाष्टमी का व्रत भगवान शिव के स्वरूप काल भैरव बाबा को समर्पित है। इनकी पूजा करने से व्यक्ति को सभी समस्याओं का समाधान मिल सकता है। अब ऐसे में साल के आखिरी कालाष्टमी व्रत के दिन काल भैरव के स्तोत्र का पाठ करने का विधान है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

कालाष्टमी के दिन करें कालभैरव स्तोत्र का जाप

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कालाष्टमी के दिन कालभैरव बाबा की पूजा करने के दौरान स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से करें। इससे व्यक्ति को उत्तम परिणाम मिल सकते हैं।

ओम महाकाल भैरवाय नम:
जलद् पटलनीलं दीप्यमानोग्रकेशं, त्रिशिख डमरूहस्तं चन्द्रलेखावतंसं!
विमल वृष निरुढं चित्रशार्दूलवास:, विजयमनिशमीडे विक्रमोद्दण्डचण्डम्!!

सबल बल विघातं क्षेपाळैक पालम्, बिकट कटि कराळं ह्यट्टहासं विशाळम्!
करगतकरबालं नागयज्ञोपवीतं, भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम्!!
यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।1

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रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।2

लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम्।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम्।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।3

वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम्।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्।।
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम्।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।4।।

kalbhairav baba


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खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम्।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम्।।
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।5।।

ओम तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहन प्रभो!
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातु महर्षि!!

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Image Credit- HerZindagi

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