निर्जला एकादशी का व्रत इस साल 6 जून को रखा जाएगा। निर्जला एकादशी का व्रत अन्य एकादशी तिथियों में सबसे ज्यादा कठिन माना जाता है क्योंकि इस व्रत में अन्न और जल दोनों के बिना उपवास रखना होता है। शास्त्रों में बताया गया है कि जो भी कोई व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत रखता है उसके जीवन और घर से कभी भी सुख-समृद्धि नहीं जाती है और मां लक्ष्मी एवं भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। हालांकि इस व्रत का पूर्ण फल तभी मिलता है जब निर्जला एकादशी के व्रत से जुड़े नियमों का पालन किया जाए। ऐसे में आइये जानते हैं ज्योतिषाचार्य राधाकत वत्स से निर्जला एकादशी के व्रत नियमों के बारे में।
निर्जला एकादशी व्रत नियम
यह इस व्रत का सबसे मुख्य नियम है। निर्जला एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक व्रती को अन्न तो क्या, जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करनी होती। इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। सिर्फ गर्भवती महिलाएं या बीमार व्यक्ति को इस व्रत के दौरान खाने-पीने की आज्ञा होती है।
व्रत रखने वाले व्यक्ति को एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। स्नान के बाद भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं, उन्हें पीले वस्त्र, फूल खासकर पीले फूल, तुलसी दल, फल और मिठाई अर्पित करें। घी का दीपक जलाएं और धूप-अगरबत्ती करें।
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पूजा शुरू करने से पहले हाथ में जल और फूल लेकर व्रत का संकल्प लेना बहुत जरूरी है। संकल्प लेते समय अपनी मनोकामना और व्रत रखने का उद्देश्य बताएं। व्रत के पूरे दिन मन को शांत और शुद्ध रखना चाहिए। किसी से भी क्रोध नहीं करना चाहिए, अपशब्द नहीं बोलने चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए और किसी की बुराई नहीं करनी चाहिए। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना भी आवश्यक है।
दिन भर भगवान विष्णु के मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जाप करना चाहिए। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना और एकादशी व्रत की कथा सुनना बहुत फलदायी होता है। कुछ लोग रात में जागरण कर भगवान का भजन-कीर्तन भी करते हैं। एकादशी तिथि पर दिन में सोना वर्जित माना जाता है। रात में भी जमीन पर सोना शुभ होता है।
निर्जला एकादशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गर्मी का मौसम होने के कारण जल, शरबत, पंखा, छाता, खरबूजा, तरबूज, अनाज और वस्त्र जैसी चीजों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। प्यासे लोगों को पानी पिलाना या पानी के बर्तन जैसे मटका या सुराही दान करना अत्यंत पुण्यदायक होता है। एकादशी का व्रत द्वादशी तिथि के दिन सूर्योदय के बाद ही खोला जाता है।
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पारण करने से पहले भगवान विष्णु की एक बार फिर से पूजा करनी चाहिए। पारण करने के लिए सबसे पहले जल ग्रहण करें और फिर सात्विक भोजन करें। चावल और लहसुन-प्याज का सेवन पारण में भी नहीं करना चाहिए। एकादशी का व्रत हरि वासर समाप्त होने के बाद ही खोलना चाहिए।
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