निर्जला एकादशी पर क्यों पानी पीना है वर्जित? जानिए

हिंदू धर्म में निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्षमी की पूजा करने का विधान है। अब ऐसे में इस दिन निर्जला यानी पानी पीना क्यों वर्जित माना गया है। इसके बारे में इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
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हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि के दिन निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। 'निर्जला' का अर्थ है 'बिना जल के', और इस व्रत में भक्त अन्न और जल दोनों का त्याग करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसे कभी भी किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है और सभी एकादशियों का एकसाथ पुण्य प्राप्त होता है। इतना ही नहीं, इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करने का भी विधान है। अगर किसी जातक को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है तो निर्जला एकादशी के दिन पूजा-पाठ करने से व्यक्ति को आर्थिक तंगी से छुटकारा मिल सकता है। अब ऐसे में निर्जला एकादशी के दिन पानी पीना क्यों वर्जित माना गया है। इसके बारे में इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।

निर्जला एकादशी के दिन क्यों नहीं पीता हैं पानी?

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धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत रखने से साल भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त हो जाता है. यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और माना जाता है कि इसे करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और सभी पाप धुल जाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भीमसेन, जो कि पांडवों में सबसे शक्तिशाली थे, अपनी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते थे। उन्होंने व्यास जी से ऐसा व्रत बताने का अनुरोध किया जिससे उन्हें सभी एकादशियों का फल मिल सके और उन्हें बार-बार भूखा न रहना पड़े. तब व्यास जी ने उन्हें निर्जला एकादशी का व्रत रखने की सलाह दी। उन्होंने बताया कि इस व्रत में बिना पानी के रहने से ही पूर्ण फल की प्राप्ति होती है।

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यह व्रत संयम का प्रतीक है। पानी त्याग कर भक्त अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण स्थापित करते हैं और परमात्मा के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा प्रकट करते हैं। यह शरीर और मन को शुद्ध करने का एक तरीका भी माना जाता है। गर्मी के मौसम में होने के बावजूद, भक्त भगवान के प्रति अपनी आस्था और समर्पण दिखाने के लिए इस कठिन व्रत का पालन करते हैं। हालांकि, जो लोग शारीरिक रूप से कमजोर हैं या किसी बीमारी से ग्रसित हैं, उन्हें अपनी क्षमतानुसार ही व्रत करना चाहिए। धार्मिक ग्रंथों में ऐसे व्यक्तियों के लिए छूट का प्रावधान भी बताया गया है।

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Image Credit- HerZindagi

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