सनातन धर्म में सर्व पितृ अमावस्या को ही महालया अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए विधिवत रूप से पूजा-अर्चना करने का विधान है। इस दिन खासतौर से पितरों की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। पंचांग के हिसाब से यह अमावस्या अश्विन मास की अमावस्या को पड़ता है। वहीं इस साल यह तिथि 02 अक्टूबर को है। ऐसा कहा जाता है कि अगर आपने पितृपक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध न किया हो, तो महालया अमावस्या के दिन करने से व्यक्ति को पितृदोष से छुटकारा मिल जाता है और पितरों को मोक्ष भी मिल जाता है। इस दिन किए गए तर्पण से जातकों के सुख-समृद्धि भी वृद्धि होती है। अब ऐसे में महालया अमावस्या के दिन श्राद्ध करने का शुभ समय कब है, पितरों की पूजा की विधि क्या है। इसके बारे में इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
महालया अमावस्या कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार महालया अमावस्या पितृपक्ष का अंत और शारदीय नवरात्रि के आरंभ का प्रतिक माना जाता है। आश्विन माह की अमावस्या तिथि 01 अक्टूबर को रात 09 बजकर 38 मिनट से आरंभ हो रहा है और इस तिथि का समापन 02 अक्टूबर को रात 12 बजकर 19 मिनट पर होगा। उदया तिथि के आधार पर इस साल महालया अमावस्या 02 अक्टूबर को मनाई जाएगी।
महालया अमावस्या के दिन पितरों की पूजा कैसे करें?
- महालया अमावस्या के दिन सबसे पहले स्नान-ध्यान के बाद एक साफ और पवित्र स्थान पर बैठें।
- पितरों के चित्र के सामने बैठकर उन्हें याद करें और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
- कुश के द्वारा जल में तिल मिलाकर पितरों को तर्पण दें।
- पूजा स्थल पर और अपने ऊपर गंगाजल का छिड़काव करें।
- पितरों को जल अर्पित करें।
- पितरों को मिठाई और फल का भोग लगाएं।
- पितरों के लिए मंत्र का जाप करें।
- इस दिन पितरों के नाम का भोजन निकालकर दक्षिण दिशा में रख दें।
- उसके बाद ब्राह्मण को भोजन खिलाएं। अगर आप कौए, कुत्ता और गाय मिलें। तो आप उन्हें भी भोजन दें।
- शाम के समय दक्षिण दिशा में दीया भी जलाएं।
- इस दिन दान-पुण्य करना बेहद शुभ माना जाता है।
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महालया अमावस्या का महत्व क्या है?
महालया अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त श्राद्ध कर्म किया जाता है। श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और उन्हें संतुष्टि मिलती है। अगर किसी व्यक्ति पर पितृ दोष होता है, तो वह कई तरह की समस्याओं से ग्रस्त रहता है। महालया अमावस्या के दिन श्राद्ध करने से पितृ दोष का निवारण होता है। पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन में शांति और सुख आता है। महालया अमावस्या के बाद ही शारदीय नवरात्र शुरू होता है। माना जाता है कि महालया अमावस्या के दिन पितरों को संतुष्ट करके ही देवी की पूजा शुरू की जाती है।
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Image Credit- HerZindagi
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