हरियाली तीज का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। यह व्रत पति की लंबी उम्र और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का उत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान शिव से विवाह के बाद माता पार्वती का पहला सावन आया तो शिवजी ने उन्हें कैलाश में झूला झुलाया था और माता पार्वती ने उनके लिए व्रत रखा था। उसी दिन को आज हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है।
जो भी सुहागिन महिला इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करती है उसका वैवाहिक जीवन सुख और सौभाग्य से भर जाता है। इस साल हरियाली तीज 27 जुलाई को पड़ रही है। ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स के अनुसार, इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है। साथ ही, अगर इस दिन व्रत कथा पढ़ी या सुनी जाए तो इससे वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ता है और रिश्ता और भी मजबूत होता है।
हरियाली तीज की व्रत कथा
बहुत समय पहले की बात है, पार्वती जी ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उन्होंने हिमालय पर्वत पर अपनी सहेलियों के साथ यह तपस्या की थी। यह तपस्या इतनी कठिन थी कि उन्होंने अन्न और जल का त्याग कर दिया था। वे सिर्फ सूखे पत्ते खाकर रहती थीं, और कई सालों तक ऐसे ही भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप करती रहीं। उनकी इस कठोर तपस्या को देखकर उनके पिता, हिमालय राज, बहुत चिंतित हो गए। उन्हें डर था कि कहीं उनकी बेटी का स्वास्थ्य बिगड़ न जाए।
एक दिन देवर्षि नारद हिमालय राज के पास आए और बताया कि भगवान विष्णु माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न हैं और उनसे विवाह करना चाहते हैं। यह सुनकर हिमालय राज बहुत खुश हुए, क्योंकि भगवान विष्णु जैसे महान देवता से अपनी बेटी का विवाह करना उनके लिए गौरव की बात थी। उन्होंने अपनी बेटी से बात की, लेकिन माता पार्वती ने साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उनका जीवन सिर्फ भगवान शिव के लिए समर्पित है और वे उन्हीं को पति के रूप में पाना चाहती हैं।
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जब माता पार्वती को पता चला कि उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से कराना चाहते हैं, तो वे और भी चिंतित हो गईं। वे अपनी एक सहेली के साथ घने जंगल में चली गईं, ताकि कोई उन्हें ढूंढ न सके। वहां जाकर उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए और भी कठोर तपस्या शुरू कर दी। यह श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी, जब उन्होंने रेत से एक शिवलिंग बनाया और पूरी श्रद्धा से उसकी पूजा की। माता पार्वती की इस तपस्या से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने माता पार्वती को दर्शन दिए और उनसे वरदान मांगने को कहा। माता पार्वती ने कहा कि अगर वे सचमुच प्रसन्न हैं, तो उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें। भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूरी करने का वचन दिया।
इसके बाद, माता पार्वती अपनी तपस्या पूरी कर अपने घर लौट आईं। उन्होंने अपने पिता को बताया कि भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया है। यह सुनकर हिमालय राज बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने विधि-विधान से माता पार्वती का विवाह भगवान शिव से कर दिया। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्ची श्रद्धा और लगन से की गई तपस्या कभी व्यर्थ नहीं जाती। इसी कारण सुहागिन महिलाएं हरियाली तीज का व्रत रखती हैं ताकि उन्हें माता पार्वती जैसा सौभाग्य मिले और उनके पति को लंबी उम्र और सुख-समृद्धि प्राप्त हो।
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